हैदराबाद में हुआ भारत का पहला अत्याधुनिक ब्रीदिंग लंग ट्रांसप्लांट

ब्रीदिंग लंग ट्रांसप्लांट: अत्याधुनिक प्रक्रिया फेंफड़े की कटाई और प्रत्यारोपण के बीच उपलब्ध समय को बढ़ाने में मदद करती है

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हैदराबाद में ब्रीदिंग लंग ट्रांसप्लांट करती हुई विशेषज्ञों की टीम.
हैदराबाद:

हैदराबाद (Hyderabad) के कृष्णा इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में भारत का पहला ब्रीथिंग लंग ट्रांसप्लांट (Breathing Lung Transplant) हुआ है. इससे पहले ऐसा ट्रांसप्लांट अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रिया में कुछ ही जगहों पर हुआ था. अब भारत भी इस लिस्ट में शामिल हो चुका है. हैदराबाद के अस्पतालों में भारत के 80 प्रतिशत लंग ट्रांसप्लांटेशन होते हैं. सर्जरी में शामिल डॉक्टरों की टीम में डॉ संदीप पतावर भी थे. उन्होंने कहा कि आम तौर पर जब हम लंग्स ट्रासंप्लांट करते हैं तो, डोनर अस्पताल से जिस अस्पताल में ट्रासंप्लांट ऑपरेशन होने वाला होता है वहां लंग्स को आइस बॉक्स के द्वारा ट्रासंप्लांट किया जाता है. इस लंग्स में ब्रीदिंग की कोई इफिसियंसी नहीं होती है उसमें एक स्पेशल सोलुशन होता है जो उनको प्रिजर्व करके रखता है. प्रिजर्वेशन 6 से 8 घंटे तक लाजमी है. दुनिया में मौजूद सारे लंग्स उत्तम कवालिटी के नहीं होते हैं. पहले कुछ घंटे लगते हैं उसकी क्वालिटी सुधारने में. ये शरीर के अंदर होता है.

भारत अमेरिका और कनाडा सहित उन मुट्ठी भर देशों में से एक बन गया है जहां एक "ब्रीदिंग लंग्स का प्रत्यारोपण" किया जा सकता है. यह एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि नए फेफड़े पाने की प्रतीक्षा करने वालों की लिस्ट बढ़ रही है. कोरोना वायरस ने फेफड़ों की समस्या के मामले बढ़ा दिए हैं. यह अत्याधुनिक प्रक्रिया अंग को काटने और प्रत्यारोपण के बीच उपलब्ध समय को बढ़ाने में मदद करती है. यह संक्रमण को दूर करके और दान किए गए फेफड़ों के "वेस्टेज" को कम करके प्राप्तकर्ता शरीर में अधिक आसानी से स्वीकार करने की क्षमता को भी बढ़ाता है. इस तरह की पहली प्रक्रिया शनिवार को हैदराबाद के कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में की गई.

"वेस्टेज" तब होता है जब संक्रमण और आंतरिक भागों के कोलेप्स होने के कारण दान किए गए फेफड़े का उपयोग नहीं किया जा सकता हो. प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ संदीप अट्टावर ने यह बात समझाई. वास्तव में इन कारणों से आधे से अधिक उपलब्ध फेफड़ों का उपयोग उन रोगियों के लिए नहीं किया जा सकता है जिन्हें प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है. दिन पर दिन प्रतिरोपण की आवश्यकता वाले लोगों की संख्या बढ़ना एक गंभीर स्थिति है.

एक दान किया गया फेफड़ा "ब्रीदिंग" बन जाता है जब इसे "ऑर्गन रिकंडीशनिंग बॉक्स" नामक एक मशीन में भली भांति सील करके डाल दिया जाता है और फिर फिर एक न्यूट्रीएंट सोल्यूशन के साथ इलाज किया जाता है जिसमें एंटीबायोटिक्स और अन्य आवश्यक तरल पदार्थ होते हैं जो संक्रमण को दूर करते हैं.

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फिर इसे वेंटिलेटर के माध्यम से कृत्रिम रूप से सांस लेने के लिए बनाया जाता है जो कोलेप्स्ड हिस्सों को सक्रिय करता है. ब्रोंकोस्कोपी के माध्यम से वायु मार्ग को साफ किया जाता है और फेफड़े के प्रदर्शन को और अधिक मूल्यांकन और बढ़ाने के लिए एक साथ कई परीक्षण किए जा सकते हैं. पूरी प्रक्रिया की निगरानी विभिन्न विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा की जाती है जो यह भी ध्यान रखते हैं कि फेफड़ा कितनी अच्छी तरह काम कर रहा है.

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जब अंत में प्रत्यारोपण होता है, तो रोगी को एक बेहतर स्थिति में एक ऐसा अंग मिलता है जो शरीर को इसे सुचारू रूप से स्वीकार करने में मदद करता है और इसे लंबे समय तक टिकाऊ बनाए रखता है.

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डॉ अट्टावर की 50 विशेषज्ञों की टीम पिछले छह महीने से इस तकनीक को बेहतर बनाने के लिए काम कर रही है. उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया प्रयोग करने योग्य अंगों की संख्या में 30 प्रतिशत की वृद्धि करती है.

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"ब्रीदिंग लंग" का विचार एक ऐसे उपकरण के माध्यम से फेफड़ों को चलाना है जो सांस लेते समय अंग को ठंडा करता है, इसे एक सब्सट्रेट समृद्ध समाधान के साथ पोषण देता है जिसमें एंटीबायोटिक्स होते हैं जो संक्रमण के छोटे निशानों को मिटा देते हैं.

अस्पताल में प्रत्यारोपण पल्मोनोलॉजी के प्रमुख डॉ विजिल राहुलन ने कहा कि न्यूट्रिएंट सोल्यूशन और एंटीबायोटिक्स एक आइसबॉक्स में ठंडे इस्केमिक परिवहन से फेफड़ों की चोट को कम करते हैं. इसका उपयोग फेफड़ों के विकास कारकों के साथ फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ाने और फेफड़ों की सूजन को कम करने के लिए भी किया जाता है.

डॉ अट्टावर ने कहा कि यह प्रक्रिया "अंग पुनर्जनन अवधारणा" का हिस्सा है. यह "दीर्घावधि में सर्वोत्तम परिणाम" दे सकती है. उन्होंने कहा कि "संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रिया में केवल कुछ चुनिंदा प्रत्यारोपण संस्थान फेफड़ों के प्रत्यारोपण के परिणामों को बढ़ाने के लिए इस दृष्टिकोण को अपनाते हैं." 

हैदराबाद देश के लंग ट्रांसप्लांट कैपिटल के रूप में उभर रहा है और देश के 80 प्रतिशत ट्रांसप्लांट यहीं हो रहे हैं. केआईएमएस अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ अभिनय बोलिनेनी ने कहा "एक अत्यधिक जटिल प्रक्रिया से गुजरकर इस टीम ने एक बार फिर साबित कर दिया कि यह न केवल भारत में, बल्कि संभवतः पूरे एशिया में सबसे अच्छी प्रत्यारोपण टीम है." 

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