‘भारत अटैक करे तो…’: पाकिस्तान के साथ अब क्या करना चाहिए? पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का Exclusive इंटरव्यू

India-Pakistan Tension: राष्ट्रपति ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे जॉन बोल्टन ने NDTV के इंटरव्यू में बताया कि अगर डिप्लोमेटिक तरीके फेल हो जाएं तो पाकिस्तान के साथ क्या करना चाहिए.

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अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने NDTV को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दिया

भारत अपनी संप्रभुता और अपने लोगों की रक्षा के लिए "जवाबी कार्रवाई करने और आतंकवादी खतरों को खत्म करने का प्रयास करने का हकदार है". यह कहना है अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन का. आतंकवाद के खिलाफ भारत के एक्शन पर उन्होंने यह बात पहलगाम आतंकवादी हमले में 26 लोगों की मौत के लगभग दो सप्ताह बाद एनडीटीवी से कही है.

जॉन बोल्टन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे. उन्होंने एनडीटीवी से बात करते हुए यह स्वीकार किया कि आतंकवाद के खतरे का सामना करने पर भारत के पास "आत्मरक्षा का वैध अधिकार" है. लेकिन साथ ही उन्होंने दिल्ली से जवाबी हमला शुरू करने से पहले सभी राजनयिक रास्ते अपनाने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा कि यह जरूरी है. भारत ने बाकि दुनिया के लिए एक कीर्तिमान स्थापित किया है कि उसने लंबे समय से चली आ रही इस समस्या का शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास किया है. उन्होंने सुझाव दिया कि पाकिस्तान पर उसके सदाबहार सहयोगी चीन द्वारा दबाव बनाया जा सकता है कि उसकी धरती पर मौजूद आतंकवादी समूहों के खिलाफ वह कार्रवाई करे.

2019 के आम चुनाव से कुछ हफ्ते पहले जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए हमले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में इसी तरह की घटना से निपटने के लिए काफी संयम बरता था, जिसमें पाक स्थित जैश-ए-मोहम्मद के हमले में 40 सैनिक शहीद हो गए थे."

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तब भारत ने तीव्र प्रतिक्रिया दी थी थी, उसने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश के आतंकी शिविरों पर एयरस्ट्राइक किया था. पहलगाम हमले पर एक सैन्य प्रतिक्रिया की उम्मीद की जा रही है. पीएम मोदी ने कथित तौर पर सशस्त्र बलों को टारगेट का आकलन करने, योजना बनाने और जवाबी हमलों को अंजाम देने के लिए 'खुली छूट' दे दी है.

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जॉन बोल्टन ने कहा, "...2019 पहली बार नहीं था जब भारत में कोई आतंकी हमला हुआ था. यह (कश्मीर मुद्दा) दो परमाणु शक्तियों के बीच तनाव और जोखिम का एक निरंतर स्रोत है. लेकिन, और मुझे इसे 'अवसर (अपॉर्चुनिटी)' कहने से नफरत है, यह एक क्षण है जब हम, यानी, अमेरिका और अन्य देश, दोनों पक्षों से एक बार फिर यह कहने का आग्रह कर सकते हैं, 'आइए हम प्रयास करें और भविष्य में ऐसा होने से रोकने का एक तरीका खोजें'',

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उन्होंने कहा, "यह एक बहुत ही कठिन समस्या है...इसमें कोई संदेह नहीं है." जॉन बोल्टन ने पाकिस्तान से कहा कि वो "अपने क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करे और सुनिश्चित करें कि वहां से भारत या किसी अन्य देश के खिलाफ आतंकवादी हमले शुरू नहीं किए जाएं." इसके लिए पाकिस्तान पर डिप्लोमेटिक दबाव बनाने के उन्होंने दो रास्ते बताए.

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"मुझे लगता है कि दो संभावित दृष्टिकोण अपनाए जा सकते हैं और मुझे यकीन है कि भारत सरकार ने पहले ही इस बारे में सोचा है. नंबर 1. मैं पाकिस्तान पर बढ़ते चीनी प्रभाव के बारे में चिंतित हूं. इसे भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की मेज पर रखने की जरूरत है... भारत को पाक से कहना चाहिए, 'हमें इसे हल करना चाहिए और दूसरों को इस पर प्रभाव नहीं डालने देना चाहिए. पाक को भी इस बारे में चिंतित होना चाहिए."

"और, नंबर 2. भारत को चीन के पास जाना चाहिए और कहना चाहिए 'हम आपसे उम्मीद करते हैं कि, हमारे साथ एक सीमावर्ती देश के रूप में, आप पाकिस्तान पर इन आतंकवादी समूहों को नियंत्रित करने के लिए दबाव डालेंगे. यदि ये दोनों विफल हो जाते हैं तो भारत कह सकता है कि हमने कूटनीतिक दृष्टिकोण से सब कुछ करने की कोशिश की और तनाव बहुत आगे बढ़ने से बचाने की कोशिश की."

जॉन बोल्टन ने इस बात पर भी जोर दिया कि यदि भारत सरकार को लगता है कि अब वास्तव में कोई डिप्लोमेटिक विकल्प नहीं हैं, तो उसे किसी भी सैन्य प्रतिक्रिया को "सटीक" करने की आवश्यकता है.

"मुझे लगता है कि अगर भारत की जवाबी कार्रवाई केवल उस समूह के खिलाफ होगी जिसने हमला किया था... अगर यह सटीक होगा... तो यह प्रदर्शित करेगा कि भारत की कोई बड़ी महत्वाकांक्षा नहीं है (और) यह पाकिस्तान को चेहरा बचाने का मौका देगा... उसके पास पीछे हटने और राजनयिक वार्ता फिर से शुरू करने का मौका होगा."

जॉन बोल्टन ने कहा, "दो पड़ोसी भी असहमत हो सकते हैं... और असहमति का स्तर बहुत ऊंचा हो सकते हैं... लेकिन आतंकवाद का सहारा लेना कभी भी असहमति व्यक्त करने का स्वीकार्य तरीका नहीं है."

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