खालिस्तानी आतंकवाद के मुद्दे पर भारत और कनाडा (India-Canada Row)के बीच सियासी गतिरोध बना हुआ है. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो (Justin Trudeau) ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर (Hardeep Singh Nijjar) की हत्या को लेकर भारत पर संगीन आरोप (Khalistan Terrorism) लगाए थे, जिसे भारत ने सिरे से खारिज किया. धीरे-धीरे बात बिगड़ती गई. अब इंडियन एंबेसी ने कनाडा के नागरिकों को वीजा देना बंद कर दिया है. बारे में जानकारी देने के बावजूद हालात नहीं सुधरे हैं. जस्टिन ट्रूडो के लगाए गए आरोपों के संदर्भ में जो शब्द बार-बार इस्तेमाल हो रहा है, वह राजनीतिक सुविधा या राजनीतिक मजबूरी. कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो के लिए आखिर किस राजनीतिक सुविधा की बात कही जा रही है. आइए समझते हैं:-
अमेरिका में काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशन्स में बोलते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने भी कहा कि पिछले कुछ सालों से कनाडा में संगठित अपराध, आतंकवाद और चरमपंथ फल-फूल रहा है. ये राजनीतिक वजहों से हो रहा है. इससे पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) को संबोधित करते हुए उन्होंने कनाडा का नाम तो नहीं लिया, लेकिन कहा कि इस बात का कतई समर्थन नहीं होना चाहिए कि आतंकवाद, चरमपंथ और हिंसा को लेकर कार्रवाई राजनीतिक सुविधा से तय हो.
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कनाडा का खुफिया विभाग 2021 तक खालिस्तानी गतिविधियों पर लगातार नजर रखता था. हालात तब बदले जब सितंबर 2021 में हुए चुनाव में ट्रूडो की पार्टी को बहुमत नहीं मिला. सरकार बनाने के लिए उन्हें प्रो-खालिस्तानी जगमीत सिंह की अगुआई वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन लेना पड़ा.
कैसी है कनाडा सरकार की व्यवस्था?
कनाडा की संसद में 338 सीटें हैं. बहुमत के लिए 170 सीटें चाहिए. 2015 में ट्रूडो को 184 सीट मिली थी. लेकिन महंगाई आदि के मुद्दे पर उनकी लोकप्रियता गिरती चली गई. 2019 के चुनाव में उन्हें महज़ 157 सीटें मिली. बहुमत से 13 कम. ट्रूडो ने गठबंधन नहीं करने का ऐलान किया. उन्होंने मुद्दा आधारित समर्थन के साथ अल्पमत की सरकार चलायी. अल्पमत की सरकार को बहुमत में बदलने की उम्मीद में ट्रूडो ने 2021 में फिर चुनाव करा दिए. उनको उम्मीद थी कि कोरोना के बाद जनता उनको अधिक समर्थन देगी. लेकिन उनको 158 सीट ही मिली.
जगमीत सिंह के साथ किया 'कंफ़िडेंस एंड सप्लाई' समझौता
इस बार ट्रूडो ने खालिस्तानी अलगाववादी नेता जगमीत सिंह के साथ 'कंफ़िडेंस एंड सप्लाई' समझौता किया. जगमीत की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने 25 सीटें जीती. ट्रूडो की सरकार जगमीत के समर्थन से ही चल रही है. जगमीत सिंह खालिस्तानी अलगाववादी नेता हैं. वह भारत विरोधी गतिविधियों को चलाने वाले संगठन के सरगना भी हैं. यही वजह है कि ट्रूडो कनाडा में पनाह लेने वाले भारत के भगोड़े और मोस्ट वॉन्टेड खालिस्तानी अलगाववादियों को भारत को सौंपे जाने की मांग खारिज करते रहे हैं. कनाडा के पीएम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की दुहाई देते रहे हैं. ट्रूडो-जगमीत का समझौता 2025 तक का है.
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ट्रूडो के बयान से खालिस्तानियों का मनोबल बढ़ा
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बात को भी रेखांकित किया. उन्होंने UNGA में कनाडा की ट्रूडो सरकार के दोहरे चरित्र को सामने रखने की कोशिश की. हरदीप सिंह निज्जर भी उन्हीं अलगाववादी, आतंकवादी में से एक था. उसकी जून में हत्या हो गई. पहले खालिस्तानियों ने हत्या के पीछे भारतीय राजनयिकों का हाथ बताया. जांच की मांग करते हुए पोस्टर लगाए गए. भारतीय राजनयिकों के फोटो लगा कर सिखों को बदला लेने के लिए उकसाया गया. इससे भारतीय राजनयिकों की जान को ख़तरा होना लाज़िमी है. ट्रूडो ने संसद में जिस तरह से भारतीय एजेंसियों पर सरेआम अंगुली उठायी. उससे खालिस्तानियों का मनोबल और बढ़ा है.
ये है ट्रूडो की मजबूरी
कनाडा में ऐबैकस डाटा पोल के मुताबिक, 56 फीसदी कनाडाई चाहते है कि ट्रूडो गद्दी छोड़ दें और किसी और को पीएम बनने दें. महज़ 27 फीसदी कनाडाई चाहते हैं कि जस्टिन ट्रूडो पीएम पद की दौड़ में दोबारा शामिल हों. इस पोल के मुताबिक, कंजरवेटिव पार्टी का 38 फीसदी वोट शेयर है. ये एक फीसदी बढ़ा है. जबकि ट्रूडो की लिबरल पार्टी का वोट शेयर 2 फीसदी गिरकर 26 फीसदी पर पहुंच गया है. ये भी ट्रूडो के लिए एक ख़तरे की घंटी है. खालिस्तानी अलगाववादी जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का वोट शेयर 19 फीसदी है. यानी ट्रूडो को आगे भी सरकार बनाना है, तो खालिस्तानी नेता के साथ चलना होगा.
कनाडा में अक्टूबर 2025 में होगा अगला चुनाव
कनाडा में अगला चुनाव अगर तयशुदा समय पर हुआ, तो अक्टूबर 2025 में होगा. ट्रूडो नहीं चाहते कि उनकी सरकार गिरे. तभी वे जगमीत के खालिस्तानी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं. शायद इसलिए उन्होंने जी20 के दौरान पीएम मोदी से हुई मुलाकात तक में निज्जर की हत्या का मुद्दा उठा दिया. भारत से उनको टका सा जवाब भी मिला. इसके बाद उन्होंने इसे सार्वजनिक तौर पर संसद में उठा दिया और मामला बिगड़ कर यहां तक पहुंच गया है.
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