चीन सोचता रह गया और PM मोदी ने बांग्लादेश में तीस्ता पर 'टीम' सजा दी! इस तस्वीर की खुशी की वजह समझिए

बांग्लादेश से हुए समझौते के तहत भारत जल्द ही तीस्ता नदी के संरक्षण और प्रबंधन के लिए अपनी एक विशेष टीम बांग्लादेश भेजने वाला है. भारत की तकनीकी टीम इस पूरी परियोजना का मुआयना करने के बाद अपना काम शुरू करेगी.

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भारत के तीस्ता दांव से पूरी तरह से चित हुआ चीन
नई दिल्ली:

दूसरे देशों से कूटनीतिक संबंधों में टाइमिंग को एक बड़ा फैक्टर माना जाता रहा है. अगर आपने भविष्य की संभावनाओं और आशंकाओं का अंदाजा लगाते हुए सही समय पर बड़े फैसले ले लिए तो आपके विरोधी चारों खाने चित हो जाते हैं. बांग्लादेश के साथ तीस्ता नदी को लेकर शनिवार को भारत ने जो समझौता किया है वो मोदी सरकार की इसी कूटनीतिक टाइमिंग को दर्शाता है. पीएम मोदी और बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के बीच हुई बैठक के बाद दोनों देश के बीच समझौता तो तीस्ता नदी को लेकर हुआ लेकिन इस समझौते से सबसे ज्यादा मिर्ची चीन को जरूर लग गई होगी. ऐसा इसलिए भी क्योंकि चीन लंबे अर्से से तीस्ता नदी के बहाने भारत को बांग्लादेश की तरफ से भी घेरने की तैयारी में था. 

ऐसे में पीएम मोदी का ये एक दांव चीन के सभी मंजूबों पर पानी फेर चुका है. आपको बता दें कि शनिवार को भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी को लेकर जो समझौता हुआ है उसके तहत भारत अब इस नदी के संरक्षण और प्रबंधन में बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है. इस परियोजना के तहत भारत अब जल्द ही अपना एक तकनीकी दल बांग्लादेश भेजने जा रहा है. तीस्ता नदी के संरक्षण और प्रबंधन पर बातचीत के लिए भारतीय तकनीकी दल को बांग्लादेश भेजने का निर्णय इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि चीन की इस परियोजना पर लंबे अर्से से नजर थी. 

तीस्ता नदी परियोजना में चीन की एंट्री का क्या होता मतलब ? 


चीन के लिए तीस्ता नदी परियोजना में कई मायनों से खास था. इसलिए वो बीते लंबे समय से इस परियोजना को लेकर अपनी रुचि दिखाता रहा है. लेकिन अब इस प्रोजेक्ट में भारत की एंट्री से उससे सभी मंसूबों पर पानी फिर गया है. कहा जाता है कि चीन ने शेख हसीना सरकार को इस नदी के जल का प्रबंधन का पूरा कार्य अपनी लागत से कराने का प्रस्ताव भी दिया था. जानकारों के अनुसार अगर इस परियोजना का ठेका चीन को मिल जाता तो इसका सीधा मतलब होता कि चीन तीस्ता नदी परियोजना के बहाने भारत पर पूर्व से भी नजर रख पाता. वहीं, दूसरी तरफ बांग्लादेश और चीन की नजदीकियां बढ़ने से इसका असर भारत और बांग्लादेश के रिश्तों पर पड़ना भी तय माना जा रहा था. लेकिन इससे पहले की चीन किसी तरह से तीस्ता नदी परियोजना में एंट्री करे, भारत ने शेख हसीना सरकार से समझौता कर एक बड़ी कूटनीतिक जीत दर्ज की है. 

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पीएम मोदी और शेख हसीना के बीच हुए कई अहम समझौते 


पीएम नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के बीच बीते दिनों दिल्ली में बातचीत हुई. इस बातचीत के बाद दोनों देशों ने कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए. पीएम मोदी ने इस बातचीत के बाद कहा कि बांग्लादेश की पीएम के साथ हुई बातचीत के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच डिजिटल, हरित साझेदारी और समुद्र आधारित इकोनॉमी से जुड़े कई अहम समझौते हुए हैं. इसके अलावा भारतीय अंतरिक्ष यान से बांग्लादेश के लिए निर्मित सैटेलाइट को भी अंतरिक्ष में स्थापित करने पर सहमति बनी है. साथ ही साथ बांग्लादेशी नागिरकों को अब भारत में इलाज कराने के लिए उन्हें ई-वीजा उपलब्ध कराने पर भी सहमति बनी है. 

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शेख हसीना के बीजिंग दौरे से पहले तीस्ता पर समझौता भारत के लिए बड़ी उपलब्धि


बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना को अगले महीने बीजिंग की यात्रा पर जाने वाली हैं. जानकारों के अनुसार शेख हसीना की बीजिंग यात्रा से भारत ने तीस्ता को लेकर जो समझौता किया है, उसकी वजह से चीन अब बांग्लादेश पर अतिरिक्त दबाव नहीं डाल पाएगा. आपको बता दें कि भारत और बांग्लादेश के बीच 54 नदियों को लेकर अलग-अलग सहयोग चल रहा है. बीते दिनों पीएम मोदी ने भी साझा प्रेस वार्ता में कहा था कि 54 साझा नदियां, भारत और बांग्लादेश को जोड़ती हैं. लिहाजा, बाढ़, प्रबंधन, पेजयल परियोजनाओं पर हम सहयोग करते आए हैं. 

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बांग्लादेश को भी क्या श्रीलंका की तरह ही 'बर्बाद' करना चाहता है चीन


चीन जिस तरह से बांग्लादेश की तीस्ता नदी परियोजना में अपनी रुचि दिखा रहा था, उसे लेकर कई तरह की आशंकाएं जन्म ले रही हैं. कई जानकार मानते हैं कि भारत को चारों तरफ से (श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल और अब बांग्लादेश) घेरने की अपनी योजना के तहत ही चीन बांग्लादेश को लेकर इतनी रुचि दिखा रहा है. चीन चाहता है कि तीस्ता नदी के बहाने वह किसी तरह से पहले बांग्लादेश में एंट्री करे और फिर धीरे-धीरे उसे अतिरिक्त कर्ज देकर उसे बाध्य करे कि वह उसे अपनी जमीन पर बेस बनाने की अनुमति दे. आपको बता दें कि कुछ वर्ष पहले चीन ने इसी तरह से श्रीलंका में भी अपनी एंट्री की थी.

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वहां पहले एक बंदरगाह को विकसित करना का ठेका उसने लिया और धीरे-धीरे करके श्रीलंका को इतना कर्ज दे दिया जिसे वो एक समय के बाद चुका पाने की स्थिति में नहीं था. अब चीन श्रीलंका में अपना एक बेस भी तैयार कर चुका है ताकि वो वहां से भारत पर नजर रख सके. चीन ने पाकिस्तान और नेपाल के साथ भी कुछ ऐसा ही किया है. 

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