'भारत में आपके पास कहानियों की कमी नहीं है', रस्किन बांड अपने 88वें जन्मदिन पर बोले 

बॉन्ड ने लंढौर से  कहा ‘‘भारत में, आपके पास कहानियों या कहानियों की सामग्री की कमी नहीं है क्योंकि हर समय कुछ न कुछ होता रहता है.

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बॉन्ड को कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं. 
नई दिल्ली:

डॉक्टर ने उन्हें खट्टी चीजें कम करने का निर्देश दिया है, इसलिए उन्होंने वोदका के अपने कोटे में कटौती की है और अब उन्हें चार्ल्स डिकेंस लंबे और थकाऊ लगते हैं, लेकिन जब कागज पर कलम से कुछ लिखने की बात आती है, तो भारत के पसंदीदा लेखक रस्किन बॉन्ड (Ruskin Bond) थकते नहीं हैं.  बॉन्ड, गुरुवार को 88 वर्ष के हो जाएंगे.  लेखन के लिए उनकी भूख 17 साल की उम्र की जितनी ही मजबूत है - जिस उम्र में उन्होंने अपना पहला उपन्यास ‘‘द रूम ऑन द रूफ' लिखा था.  1956 में उस पहली कृति के बाद से उन्होंने बच्चों के लिए 50 से अधिक पुस्तकों के साथ 500 से अधिक लघु कथाएं (stories) निबंध और उपन्यास लिखे हैं. 

बॉन्ड ने लंढौर से  कहा, ‘‘भारत में, आपके पास कहानियों या कहानियों की सामग्री की कमी नहीं है क्योंकि हर समय कुछ न कुछ होता रहता है.  न केवल पूरे देश में बल्कि आपके अपने शहर, छोटे शहर या गांव में कभी भी सुस्त क्षण नहीं आता है.  जीवन लगातार परिवर्तन या उथल-पुथल की प्रक्रिया में रहता है. ''उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप यूरोप, ब्रिटेन या अमेरिका में रह रहे हैं तो यह नीरस है.  हर कोई एक समान अस्तित्व, एक ही रीति, एक ही भाषा या एक ही तरह से जी रहा है.  यहां हमारी अलग-अलग भाषाएं, रीति-रिवाज, जातीयता या पृष्ठभूमि हैं.  यह एक पूरी तरह से अलग कैनवास.  साथ ही, मैं एक जुनूनी लेखक हूं. ''

खुद को एक पाठक और जुनूनी लेखक कहने वाले बॉन्ड आज भी हर सुबह कम से कम एक घंटा लिखते हैं.  उनके 88वें जन्मदिन पर जारी होने वाली उनकी नयी पुस्तक, ‘‘लिसन टू योर हार्ट: द लंदन एडवेंचर'', पाठकों को चैनल द्वीप समूह और इंग्लैंड में बिताए चार वर्षों की एक झलक देती है.  उनके संस्मरण का पांचवां और अंतिम खंड, इस बारे में बात करता है कि कैसे वह अपने अकेलेपन पर ध्यान देते हैं, नौकरी बदलते हैं, प्यार में पड़ जाते हैं, समुद्र से दोस्ती करते हैं और एक प्रसिद्ध लेखक बनने के अपने बड़े सपने का लगातार पीछा करते हैं. 

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साल 1934 में कसौली में जन्मे बॉन्ड जामनगर, शिमला, नयी दिल्ली, शिमला और देहरादून में पले-बढ़े.  ब्रिटेन में तीन साल के अलावा उन्होंने अपना पूरा जीवन भारत में बिताया है.  वह उत्तराखंड के छोटे से छावनी शहर लंढौर में अपने दत्तक परिवार के साथ रहते हैं. 

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बॉन्ड ने कहा कि उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में सामान्य से अधिक पढ़ा और लिखा, विशेष रूप से कोविड के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान, जब करने के लिए और कुछ नहीं था.  उन्होंने कहा, ‘‘आम तौर पर मैं एक महीने में तीन से चार किताबें पढ़ता था, लेकिन फिर पिछले साल मैंने एक हफ्ते में तीन-चार किताबें पढ़ीं.  और अगर यह कोई छोटा उपन्यास या अपराध थ्रिलर होता तो मैं इसे एक दिन में खत्म कर देता. ''

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पुरस्कार विजेता लेखक ने अपने साहित्यिक स्वाद में बदलाव को स्वीकार किया और कहा कि उन्हें अब बड़े मोटे उपन्यासों के बजाय लघु कथाएं या अपराध कथाएं लिखना और पढ़ना पसंद है.  उन्होंने कहा, ‘‘अब जब मैं 88 साल का हो गया हूं तो मैं एक बड़ा मोटा उपन्यास पढ़ या लिख ​​नहीं सकता हूं क्योंकि मैं इसे खत्म नहीं कर सकता.  इसलिए मैं छोटी चीजों पर काम कर रहा हूं. ''

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बॉन्ड ने यह भी कहा कि उनका अब एक ही तरह की किताबें पढ़ने का मन नहीं करता है.  उदाहरण के लिए, अंग्रेजी लेखक चार्ल्स डिकेन की पूरी कृतियां, जो उन्हें एक बालक के रूप में पसंद थीं, अब वह एक बूढ़े व्यक्ति के रूप में ‘‘उबाऊ'' लगती हैं.  उन्होंने कहा, ‘‘मैं डिकेंस को नहीं पढ़ सकता क्योंकि यह लंबा और थकाऊ है और इसमें बहुत अधिक विवरण है.  मुझे लघु कथाएं पसंद हैं... मुझे अब वही आनंद देता है.  मुझे नए लेखकों की खोज करते रहना है.  लेकिन पढ़ने की ललक हमेशा रहती है. ''

बॉन्ड को कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, जिनमें 1992 में अंग्रेजी लेखन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1999 में पद्म श्री और 2014 में पद्म भूषण शामिल हैं.  अपने जीवन में इतना कुछ हासिल करने के बाद क्या कभी उनके दिमाग में संन्यास लेने का विचार आया है?, इस पर उन्होंने जवाब दिया कि उनके जैसा लेखक जिसे ‘‘कोई पेंशन या भविष्य निधि नहीं'' मिलती है, वह कभी सेवानिवृत्त नहीं हो सकता. 

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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