उत्तराखंड की सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचाने के लिए हाई-टेक मशीनों का उपयोग किया जा रहा है. बचाव टीमें जहां काम कर रही हैं उसके पास कचरे का पहाड़ है. यह कचरा उस सुरंग के निर्माण के दौरान इकट्ठा हुआ है जो महत्वाकांक्षी चार धाम प्रोजेक्ट का हिस्सा है.
कचरे का यह विशाल हिस्सा पहाड़ी पर है. भारी बारिश होने पर इसे कीचड़ में बदलने और नीचे की ओर आवासीय क्षेत्रों की ओर बढ़ने से रोकने के लिए कोई सुरक्षात्मक दीवार नहीं है.
हिमालय के करीब इन संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों के लिए सख्त दिशानिर्देश लागू हैं. इसके तहत मलबे के निपटान के लिए एक उचित योजना शामिल है. इसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि निर्माण अपशिष्ट स्थानीय इकोसिस्टम को नुकसान न पहुंचाए या उसके लिए खतरा पैदा न करे.
जियोलाजिस्ट और उत्तराखंड हार्टिकल्चर एंड फारेस्ट्री यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर डॉ एसपी सती ने बताया कि क्यों यह अपशिष्ट डंप एक विनाशकारी आपदा है? उन्होंने NDTV को बताया, "कूड़े के नीचे के हिस्से में एक सुरक्षात्मक दीवार का न होना बहुत खतरनाक है, खास तौर पर बरसात के मौसम को देखते हुए. यह कचरा नीचे की ओर जा सकता है और नीचे की ओर बहने वाले पानी के घनत्व को बढ़ा सकता है."
उन्होंने कहा, ''इसे देखकर ही मैं कह सकता हूं कि दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया है.'' उन्होंने कहा कि अगर क्षेत्र में बाढ़ आती है तो कचरे का ढेर नीचे की ओर बह जाएगा. पानी के साथ निर्माण अपशिष्ट का नीचे की ओर प्रवाह नीचे की ओर बसी बस्तियों के लिए संभावित रूप से विनाशकारी हो सकता है.
उत्तरकाशी में सुरंग 12 नवंबर को ढही थी. उसके बाद से ही चल रहे बचाव अभियान ने कई पर्यावरण विशेषज्ञों को यह बताने के लिए प्रेरित किया है कि संवेदनशील क्षेत्र में जल्दबाजी में इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के विनाशकारी परिणाम कैसे हो सकते हैं.
केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के पूर्व सचिव डॉ सुधीर कृष्णा ने NDTV से कहा कि, उत्तरकाशी सुरंग की स्थिति एक उदाहरण है जो हमें भविष्य के बारे में सोचने पर मजबूर कर देगी. उन्होंने कहा कि, "मैं फंसे हुए लोगों के लिए आशा और प्रार्थना करता हूं और मुझे काफी खुशी है कि सरकार गंभीर और ईमानदार कदम उठा रही है, लेकिन मैं चिंतित भी हूं. हमें हिमालय क्षेत्र में विकास के बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है. हम पहले ही देर कर चुके हैं, लेकिन हमें ऐसा नहीं करना चाहिए, इसमें अब और देरी करें.''
पर्यावरणविदों की चिंताओं पर प्रतिक्रिया देते हुए सरकारी अधिकारियों ने कहा कि फिलहाल ध्यान बचाव अभियान पर है और वे बाद में ऐसी चिंताओं का समाधान करेंगे.
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के सदस्य विशाल चौहान ने कहा, "हिमालयन जियोलाजी बहुत अलग तरह से रिएक्ट करती है. हम इसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकते, लेकिन पर्यावरण आकलन के बाद ही हर प्रोजेक्ट को मंजूरी दी जाती है. फिर भी बचाव कार्य समाप्त होने के बाद हम जांच करेंगे कि इसके बाद क्या सवाल उठ रहे हैं. फिलहाल सारा ध्यान रेस्क्यू पर है."
प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्बे, जो बचाव अभियान की निगरानी के लिए स्थल पर मौजूद हैं, ने कहा, "अधिकांश सुरक्षा उपाय अपनाए गए हैं, लेकिन इस बचाव कार्य के समाप्त होने के बाद हम सभी चिंताओं पर गौर करेंगे."
उत्तरकाशी प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन हैदराबाद स्थित नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड द्वारा 853 करोड़ रुपये की लागत से किया जा रहा है. यह कंपनी कथित तौर पर पहले भी ऐसे प्रोजेक्ट पूरे कर चुकी है.