भारत का एयर डिफेंस सिस्टम
हिंदुस्तान के आसमान की रक्षा का जिम्मा वायुसेना के पास होता है. पिछले दो दिन वायुसेना के जवानों और उसके हथियारों ने जो शौर्य दिखाया है, पूरी दुनिया उससे हैरान है. पाकिस्तान के JF-17 और F-16 जैसे विमानों को भारत की सरजमीं में घुसने से पहले ही दफन कर दिया गया. आखिर दुश्मन के विमान को कैसे गिराया जाता है? क्या उस पर सबसे पहले एयर डिफेंस सिस्टम में शामिल मिसाइल दागी जाती है या फिर लड़ाकू विमान उससे भिड़ते हैं. कल जब पाकिस्तान के JF-17 और F-16 भारत में घुसने की कोशिश कर रहे थे, तो उन्हें कैसे फंसाया और फिर गिराया गया, एनडीटीवी पर डिफेंस एक्सपर्ट ने इसे विस्तार से समझाया.
हैवी मशीनगन से भी ड्रोन गिरा सकते हैं
डिफेंस एक्सपर्ट ग्रुप कैप्टन यूके देबनाथ बताते हैं.. ड्रोन कैसे गिराए जाते हैं, 'दुश्मन का कोई प्लेन या यूएवी जब सीमा में घुसता है तो कोई जरूरी नहीं है कि उसे मिसाइल से ही नीचे गिराया जाए. उसे एल-60 और एल-70 जैसे एंटी एयरक्राफ्ट गन से भी गिराया जाता है. हैवी मशीनगन से भी ड्रोन गिरा सकते हैं. टैंक के ऊपर एक मेन गन होती है. साथ में एक हैवी मशीनगन होती है. ये मशीनगर एक से डेढ़ किलोमीटर ऊपर तक वार कर सकती है.'
हर बार एस-400 जरूरी नहीं
ग्रुप कैप्टन यूके देबनाथ ने बताया, 'दुश्मन के जहाज को कोई जरूरी नहीं है कि हर बार एस 400 से गिराया जाए. अगर दुश्मन के जहाज को 200 से 300 किलोमीटर की दूरी पर पिकअप कर लेते हैं, तो सुखोई 30, मिराज और राफेल को लॉन्च किया जाता है. ये दुश्मन के जहाज के उलझाते हैं. जमीन पर जो कमांडर होता है, वह फैसला लेता है कि दुश्मन के इस टारगेट को सरफेस-टु-एयर मिसाइल से मारा जाए या फिर सुखोई या राफेल के इस्तेमाल से उलझाएंगे. वायुसेना का एसओपी यह है कि सबसे पहले सुखोई या मिराज को लॉन्च करते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह होती है कि उनके पास तेजी से मूव करने की क्षमता होती है. पायलट अपनी मर्जी से 200 किलोमीटर इधर-उधर जा सकता है. लेकिन एयर डिफेंस सिस्टम जैसे पिचोरा, सैम सिस्टम और आकाश जैसे सिस्टम को मूव करने में आधे घंटे तक का वक्त लगता है. कमांडर को वह छूट नहीं मिलती है.'
उन्होंने बताया कि जब दुश्मन का जहाज आता है, तो पहले सुखोई या राफेल उसे उलझाते हैं. उसके बाद भी अगर बचकर सैन्य ठिकानों की तरफ बढ़ता है, तो फिर आकाश, पिचोरा और बराक का इस्तेमाल किया जाता है और दुश्मन को मार गिराया जाता है.
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