राज ठाकरे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका, भाषायी विवाद को लेकर एफआईआर की मांग

एडवोकेट उपाध्याय ने अपनी याचिका में दावा किया है कि राज ठाकरे की ये टिप्पणी मराठी भाषा के प्रति प्रेम नहीं, बल्कि आगामी मुंबई नगर निगम चुनावों को देखते हुए एक राजनीतिक चाल है.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे के खिलाफ भाषायी नफरत फैलाने और हिंसा भड़काने के आरोपों पर जनहित याचिका दायर की गई है.
  • याचिकाकर्ता ने अधिकारियों को शिकायत दी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होने पर हाईकोर्ट का रुख किया है.
  • याचिका में राज ठाकरे के कथित बयान को संविधान विरोधी और हिंसा को प्रोत्साहित करने वाला बताया गया है.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे के खिलाफ कथित भाषण और हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है. याचिकाकर्ता एडवोकेट घनश्याम उपाध्याय ने आरोप लगाया है कि हिंदी भाषा बोलने वालों के खिलाफ हिंसा भड़काने और भाषायी नफरत फैलाने के लिए राज ठाकरे और उनके पार्टी कार्यकर्ताओं पर एफआईआर दर्ज की जाए.

अधिकारियों ने नहीं की हुई कार्यवाई

एडवोकेट उपाध्याय का दावा है कि, उन्होंने पहले ही इस मामले में संबंधित अधिकारियों को शिकायत दी थी, लेकिन जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया है. याचिका में “गंभीर तात्कालिकता” का हवाला दिया गया है.

हिंसा बढ़ाने वाले देते हैं बयान

याचिका में 5 जुलाई को हुई एक विजय रैली का जिक्र किया गया है, जिसमें राज ठाकरे और शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता उद्धव ठाकरे भी मौजूद थे. याचिकाकर्ता के मुताबिक, इस रैली के दौरान राज ठाकरे ने कथित रूप से कहा कि जो लोग मराठी नहीं बोलते, उन्हें “कान के नीचे मारो”. याचिका में इसे हिंसा को प्रोत्साहित करने वाला और संविधान विरोधी बताया गया है.

'चुनावों को देखते हुए एक राजनीतिक चाल'

एडवोकेट उपाध्याय ने अपनी याचिका में दावा किया है कि राज ठाकरे की ये टिप्पणी मराठी भाषा के प्रति प्रेम नहीं, बल्कि आगामी मुंबई नगर निगम चुनावों को देखते हुए एक राजनीतिक चाल है. उन्होंने आरोप लगाया कि ठाकरे जानबूझकर समुदायों के बीच दुश्मनी फैला रहे हैं.

'देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए खतरा'

याचिका में ये भी कहा गया है कि राज ठाकरे की ये हरकतें देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए खतरा हैं, जो भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत दंडनीय अपराध है. इस धारा के तहत उम्रकैद या सात साल तक की सजा का प्रावधान है.

'भीड़ हिंसा और मोब लिंचिंग पर सख्ती से कार्रवाई करें'

उपाध्याय ने कोर्ट से ये निर्देश देने की भी मांग की है कि पुलिस राज ठाकरे और उनके कार्यकर्ताओं द्वारा की जाने वाली किसी भी तरह की भीड़ हिंसा और मोब लिंचिंग पर सख्ती से कार्रवाई करे और भविष्य में ऐसे मामलों को रोके.

Advertisement

साथ ही, याचिका में भारत निर्वाचन आयोग और राज्य निर्वाचन आयोग से ये अपील भी की गई है कि वे राजनीतिक दलों की ऐसी गतिविधियों पर निगरानी रखें, जो देश की अखंडता को खतरे में डालती हैं और दोषी पाए जाने वाले दलों की मान्यता रद्द करने की नीति तैयार करें.

Featured Video Of The Day
Goa Nightclub Fire Updates: 10 दिन बाद ऐसे Delhi लाए गए Luthra Brothers | NDTV India | Top News