सहमति से बने रिश्ते किसी तरह की हिंसा की अनुमति नहीं देते : कर्नाटक हाईकोर्ट

न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने रिश्ते की सहमति की प्रकृति को स्वीकार करते हुए धारा 376(2)(एन) के तहत बार-बार बलात्कार के आरोप को खारिज कर दिया, लेकिन मारपीट, धमकी और हत्या के प्रयास से संबंधित अन्य आरोपों को बरकरार रखा. 

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कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक अहम फैसले में कहा है कि सहमति से बनाए गए संबंध किसी भी तरह की मारपीट का कारण नहीं बन सकते. यह मामला एक सेवारत पुलिस सर्किल इंस्पेक्टर से जुड़ा है. सामाजिक कार्यकर्ता और उनकी पत्नी ने मारपीट और धमकी सहित विभिन्न अपराधों का आरोप लगाया था.

शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच संबंध 2017 में शुरू हुआ, जब वह भद्रावती ग्रामीण पुलिस स्टेशन गई थी. मई 2021 तक, शिकायतकर्ता ने महिला पुलिस स्टेशन में एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि इंस्पेक्टर ने उसका शारीरिक और यौन उत्पीड़न किया.

इंस्पेक्टर के खिलाफ यौन उत्पीड़न की प्रारंभिक शिकायत दर्ज कराने के बाद मामला और गंभीर हो गया. स्थिति तब और बिगड़ गई जब इंस्पेक्टर ने कथित तौर पर शिकायत वापस न लेने पर शिकायतकर्ता के बच्चों को नुकसान पहुंचाने की धमकी दी. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत अतिरिक्त आरोप जोड़े गए.

आरोपी ने इन आरोपों का विरोध करते हुए दावा किया कि रिश्ता शुरू से ही सहमति से बना था और निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत संबंधित चेक बाउंस मामले में खुद को बरी किए जाने का हवाला दिया.

न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने रिश्ते की सहमति की प्रकृति को स्वीकार करते हुए धारा 376(2)(एन) के तहत बार-बार बलात्कार के आरोप को खारिज कर दिया, लेकिन मारपीट, धमकी और हत्या के प्रयास से संबंधित अन्य आरोपों को बरकरार रखा. 

अदालत ने शिकायतकर्ता पर की गई "घोर स्त्री-द्वेषी क्रूरता" पर टिप्पणी की, और इन मामलों में मुकदमा आगे बढ़ने की अनुमति दी.

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