SC में कर्नाटक हिजाब बैन मामले पर सुनवाई, मुस्लिम याचिकाकर्ता से बोले जज- 'फोरम शॉपिंग नहीं चलेगा'

संजय हेगड़े ने बहस शुरू करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के कलेवर पर सवाल उठाया और कहा, "इसमें पक्षकारों की दलीलें लिखने के बाद उसे ही चैप्टर में बांट दिया गया है. इसमें फैसले के पीछे कोर्ट ने कोई ठोस वजह नहीं दी है."

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कर्नाटक के हिजाब बैन मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई.
नई दिल्ली:

कर्नाटक के हिजाब बैन मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धुलिया की बेंच में मामले की सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि हम कर्नाटक हिजाब बैन मामले का परीक्षण करने को तैयार हैं. कोर्ट ने इस पर कर्नाटक सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. इससे पहले हिजाब बैन पर सुनवाई टालने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट के जज नाराज हो गए. मुस्लिम याचिकाकर्ताओं के वकीलों से जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि ये फोरम शॉपिंग नहीं चलेगा. पहले आप लगातार जल्द सुनवाई की मांग करते रहे, अब सुनवाई टालने की मांग कर रहे हैं. उन्होंने दो हफ्ते बाद सुनवाई की मांग भी ठुकरा दी

इसके बाद  जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धुलिया की बेंच में सुनवाई हुई. कुल 24 याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है. कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब बैन को चुनौती देने वाली 6  मुस्लिम छात्राओं ने भी याचिका दाखिल की है. 

इससे पहले कर्नाटक हाईकोर्ट ने 15 मार्च को फैसला सुनाया था कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में धार्मिक प्रथा का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और उसने कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति देने के लिए मुस्लिम छात्राओं की याचिकाएं खारिज कर दी थी. अदालत ने इसके साथ ही राज्य में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध बरकरार रखा. तीन जजों की फुल बेंच ने कहा कि यूनिफॉर्म का नियम एक उचित पाबंदी है और संवैधानिक रूप से स्वीकृत है, जिस पर छात्राएं आपत्ति नहीं उठा सकती.

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सुप्रीम कोर्ट में हिजाब मामले पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट संजय हेगड़े और राजीव धवन ने कहा, "ये मामला संविधान पीठ के सामने जाना चाहिए. शिक्षा संस्थानों में ड्रेस कोड के साथ धार्मिक प्रतीकों की भी जगह है. ड्रेस कोड के साथ लाखों लड़कियां हिजाब पहनती हैं, कई संस्थानों में सिख छात्र पगड़ी पहनते हैं, तब कोई ड्रेस कोड का उल्लंघन नहीं माना जाता."

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जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा- इस सवाल को अलग तरीके से भी संशोधित किया जा सकता है. हिजाब एक अनिवार्य अभ्यास हो भी सकता है और नहीं भी लेकिन सरकार ड्रेस कोड को विनियमित कर सकती है. उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है. इस पर दूसरे वकील राजीव धवन ने कहा कि बड़ी संख्या में महिलाएं हिजाब पहनती हैं. यही नहीं पगड़ी भी पहनी जाती है. सवाल यह है कि क्या सरकार को इस बीच में आना चाहिए, जब लोगो के भरोसे की बात हो?

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धवन ने कहा, "ड्रेस कोड है और यह फैसला कहता है कि कक्षा में आप हिजाब भी पहन सकते हैं, सवाल यह है कि क्या ड्रेस कोड लगाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट में जज तिलक लगाते हैं, कोर्ट 2 में लगी तस्वीर में जज पगड़ी पहने हुए हैं." इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा, "पगड़ी अलग है, इसे शाही राज्यों में पहना जाता था, यह धार्मिक नहीं है. मेरे दादा कानून का अभ्यास करते हुए इसे पहनते थे. इसे धर्म से न जोड़ें." इस पर धवन ने कहा, "समस्या बड़ी संख्या से संबंधित है जो ड्रेस कोड का पालन करते हैं लेकिन हिजाब भी पहनना चाहते हैं, क्या उस धार्मिक अधिकारों पर भी थोपने का अधिकार है?  दूसरा यह है कि आप स्कार्फ पहन सकते हैं क्योंकि आज यह पूरे देश में पहना जाता है. जब आप दुपट्टा पहनते हैं, तो क्या आप इसे स्कूल में पहन सकते हैं या आप इसे कक्षा में पहन सकते हैं?  इन सभी प्रभावों पर विचार करना होगा. यह एक सवाल है कि यह अदालत  जो भी फैसला करेगी, - पूरी दुनिया सुनेगी. हिजाब दुनिया भर के बड़े देशों और सभ्यताओं को प्रभावित करता है, वर्तमान में 2 असंगत HC विचार हैं."

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राजीव धवन ने कहा कि स्कार्फ भी ड्रेस कोड का हिस्सा होना चाहिए. कोई उसे उतारने को न कहे. इस पर भी कोर्ट विचार करे. दुनिया भर में और भारतीय प्राचीन सभ्यता का हिस्सा रहा है हिजाब. केरल हाईकोर्ट ने भी अपने एक फैसले में हिजाब को मान्यता दी है. इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने राजीव धवन को कहा कि सवाल ये भी हो सकता है कि हिजाब पहनना धर्म का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं. अगर सरकार इस पर नियम तय करती है तो भी देश के  संविधान की भूमिका कहती है कि ये धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है.

संजय हेगड़े ने बहस शुरू करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के कलेवर पर सवाल उठाया और कहा, "इसमें पक्षकारों की दलीलें लिखने के बाद उसे ही चैप्टर में बांट दिया गया है. इसमें फैसले के पीछे कोर्ट ने कोई ठोस वजह नहीं दी है." हेगड़े: कुछ लड़कियां हिजाब पहन कर आईं लेकिन उन्हें निशाना बनाया गया. हालांकि उनकी तरफ से कहा गया कि हिजाब पहनने से कहीं भी स्कूल के अनुशासन को नहीं तोड़ रहे हैं. याचिकाकर्ताओं को स्कूल में भेदभाव का सामना करना पड़ा. उन्हे क्लास में शामिल नहीं होने दिया गया. उनके अभिभावक जब प्रिंसिपल से मिलने गए तो पूरे दिन नहीं मिले.

डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन ऑफिस ने हिजाब लड़कियों को शिकायत के बाद क्लास में शामिल करने के आदेश दिए. कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी ने अपने हिसाब से नियम बनाया, जिसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है. इस कमेटी में लोकल विधायक होता है. फिर कुछ लड़के भगवा कपड़े लेकर विरोध करने लगे फिर इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई.

जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि क्या गोल्फ कोर्स में कोई खिलाड़ी कह सकता है कि वो ड्रेस कोड के अलावा भी कुछ पहनेगा? क्लब कोई निजी स्थान नहीं बल्कि पब्लिक प्लेस है, हर रेस्तरां और क्लब का अपना नियम होता है कि कैसा ड्रेस कोड हो . संजय हेगड़े ने कहा कि स्कूल तो सरकारी पैसे से चलते हैं.सरकार की हिस्सेदारी है.कोर्ट ने कहा ये कहना उचित नहीं है. सभी स्कूलों को सरकारी मदद थोड़े ही मिलती है. हेगड़े ने कहा कि डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स का पैसा तो होता है.

हेगड़े ने कहा कि नियमों में तो कहीं नहीं है कि सरकार को ड्रेस कोड बनाने का अधिकार है. सरकार सिर्फ कैरिकुलम यानी पाठ्यक्रम तय करती है. इस पर कोर्ट ने उन्हें चोका और कहा कि उसके बाद सरकार का कार्यकारी अधिकार आता है जिसके तहत ड्रेस कोड यानी समान वर्दी तय करने का अधिकार भी है. क्या कोई भी छात्र मनमाने कपड़े यानी स्कर्ट, मिडी आदि पहन कर आ सकते हैं? लेकिन सरकार कार्यकारी शक्तियों का इस्तेमाल बुनियादी अधिकारों का हनन के लिए नहीं कर सकती.

कोर्ट ने कहा कि हमें पता है कि बुनियादी अधिकारों को लेकर संविधान में क्या है. हेगड़े ने कहा लेकिन हमें इस मामले में संविधान में लिखित प्रावधान पढ़ने होंगे. नियमों और एक्ट के मुताबिक अगर सरकार को वर्दी नियम में  कोई बदलाव करना हो तो एक साल का नोटिस देना होगा. कैरिकुलम सिर्फ पढ़ाई की विषय वस्तु है. यूनीफार्म्स से इसका कोई लेना देना नहीं है.

संजय हेगड़े ने जब दलीलों का रुख निजता के अधिकार की ओर मोड़ा तो कोर्ट ने कहा कि मुद्दे की बात करें . जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि कोर्ट का समय खराब न करें . जब तक ऐसा कोई कानून न हो जो सरकार को ड्रेस कोड बनाने से रोकता हो तो सरकार को ड्रेस कोड तय करने से  कैसे रोक सकते हैं ?  क्या पहनना है इसका ड्रेस कोड है तो उसके अलावा कुछ भी पहनना ड्रेस कोड के बाहर है . 

अगर ड्रैस कोड नहीं है तो क्या छात्राएं स्कर्ट, मिड्ढी या कुछ भी पहनकर आ सकती हैं ? हेगड़े ने कहा कि नियमों में तो कहीं नहीं है कि सरकार को ड्रेस कोड बनाने का अधिकार है. सरकार सिर्फ कैरिकुलम यानी पाठ्यक्रम तय करती है.  कोर्ट ने टोका कि उसके बाद सरकार का कार्यकारी अधिकार आता है जिसके तहत  ड्रेस कोड यानी समान वर्दी तय करने का अधिकार भी है. क्या कोई भी छात्र मनमाने कपड़े यानी स्कर्ट, मिडी आदि पहन कर आ सकते हैं?  लेकिन सरकार ने कार्यकारी शक्तियों का इस्तेमाल बुनियादी अधिकारों के हनन नहीं कर सकती.

कोर्ट ने कहा कि हमें पता है कि बुनियादी अधिकारों को लेकर संविधान में क्या है.  हेगड़े ने कहा लेकिन हमें इस मामले में संविधान में लिखित प्रावधान पढ़ने होंगे. नियमों और एक्ट के मुताबिक अगर सरकार को वर्दी नियम में  कोई बदलाव करना हो तो एक साल का नोटिस देना होगा.   कैरिकुलम सिर्फ पढ़ाई की विषय वस्तु है. यूनीफार्म्स से इसका कोई लेना देना नहीं है. जस्टिस धूलिया ने कहा कि लेकिन ऐसी शक्ति को उनके प्रावधानों में पढ़ा जा सकता है. जस्टिस गुप्ता ने कहा कि कॉलेजों में हमने कभी यूनिफॉर्म का विकल्प नहीं चुना, क्योंकि हम स्कूल में पहनी जाने वाली यूनिफॉर्म से आजादी चाहते थे . मैंने तब पढ़ाई की जब 11वीं क्लास स्कूलों में थी.  हमने कॉलेजों को चुना क्योंकि वर्दी से आजादी थी.  एक स्कूल के छात्र के रूप में आपको वर्दी पहननी होगी. वर्दी नहीं होने के कारण मैंने कॉलेज चुना. 

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि यदि अधिनियम में कोई पोशाक निर्धारित नहीं है, तो राज्य की कार्यकारी शक्ति आएगी या नहीं? जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि  ठीक है, आपको हिजाब पहनने का अधिकार है. लेकिन क्या आप इसे ऐसे स्कूल में पहनने पर जोर दे सकते हैं जहां एक निर्धारित वर्दी है? हम एक पल के लिए मान लेंगे कि आपको हिजाब पहनने का अधिकार है, लेकिन क्या आप इसे किसी स्कूल में ले जा सकते हैं, जब वर्दी निर्धारित हो. जस्टिस गुप्ता ने कहा कि वे शिक्षा के अधिकार से इनकार नहीं कर रहे हैं बस ड्रेस की बात कर रहे है. 

 हेगड़े ने कहा कि लेकिन दुपट्टा भी तो ड्रेस का पार्ट  होता है . जस्टिस गुप्ता ने कहा कि कंधों को ढकने के लिए दुपट्टे का इस्तेमाल किया जाता है. कृपया इसकी की तुलना हिजाब से न करें. सिख महिलाएं इसे गुरुद्वारे में सिर ढकने के लिए पहनती हैं. हेगड़े ने कहा कि सबरीमाला रिव्यू मामले को 9 जजों की बेंच को भेजा गया था.  अनुच्छेद 25 के तहत अधिकार का दायरा क्या है?  अनुच्छेद 25 और 26 के तहत नैतिकता शब्द का दायरा और विस्तार क्या है?

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में धार्मिक प्रथा कहां है? कर्नाटक सरकार की ओर से कहा गया है कि हमने किसी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया. हमने तो संस्थानों को यूनिफार्म तय करने को कहा था . हम छात्राओं को ड्रेस कोड का पालन करने को कह रहे हैं.  कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा की ड्रेस कोड से किसी के बुनियादी अधिकार का हनन नहीं हुआ है. 

कोर्ट ने कहा कि रूल 11 किसी भी मान्यता प्राप्त शिक्षा संस्थान को अपने आंतरिक नियम बनाने का अधिकार देता है. ड्रेस कोड भी उसका हिस्सा है.  कर्नाटक सरकार के वकील ने कहा कि निजी शिक्षा संस्थान की गवर्निंग बॉडी नियम कायदे ड्रेस कोड आदि तय करती है. उसी तरह अल्पसंख्यक संस्थान भी नियम कायदे तय करते हैं. कोर्ट ने पूछा कि कुछ संस्थानों ने हिजाब पहनने को मंजूरी नहीं दी. कुछ ने दी है क्या? कर्नाटक के वकील ने कहा कि कई संस्थानों ने साफ साफ मंजूरी नहीं दी है. कुछ मौन हैं. उन्होंने क्या तय किया ये खुलासा नहीं किया. सुप्रीम कोर्ट बुधवार को दो बजे सुनवाई जारी रखेगा

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