Haryana Assembly Elections: हरियाणा आज इतिहास बनाने की ओर बढ़ गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि अपने गठन के बाद से हरियाणा में किसी भी सरकार ने तीसरी बार सत्ता हासिल नहीं की है. हरियाणा के 58 सालों के इतिहास में सिर्फ दो साल ही केंद्र और प्रदेश में अलग-अलग दल की सरकारें रही हैं. अब तक सिर्फ 1972, 2009 और 2019 में सरकार दोबारा बनी है. 1972 में पहली बार बंसीलाल सरकार ने दोबारा सत्ता में वापसी की थी. 2009 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने और 2019 में मनोहर लाल खट्टर ने सत्ता में वापसी की. अब रुझानों के अनुसार, 2024 में भाजपा तीसरी बार हरियाणा में सरकार बनाती दिख रही है.
भाजपा को क्यों हुआ फायदा?
तमाम एक्जिट पोल्स को नकारते हुए भाजपा कमाल करती दिख रही है. मगर ऐसा क्यों हुआ? आपको बता दें कि हरियाणा में सर्वाधिक मतदान 2014 में हुआ था. तब 76.13 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया था. यहां विधानसभा चुनाव में औसत मतदान 68.55 प्रतिशत रहा है. नौ बार औसत से अधिक मतदान होने पर 6 बार सरकार बदल गई. इस बार 65.65 प्रतिशत मतदान हुआ है. ऐसे में कम मतदान भाजपा के लिए एक संजीवनी साबित होती दिख रही है. साथ ही विरोधी मतों के विभाजन ने भी भाजपा को फायदा दिलाया.
वोट प्रतिशत बढ़ने से जीत तय नहीं
2014 में भाजपा ने 33.2 प्रतिशत वोट लेकर 47 सीटें जीतीं, मगर 2019 के चुनाव भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़कर 36.49 प्रतिशत हो गया, लेकिन सीटें 40 रह गईं.इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वोट प्रतिशत बढ़ने से जरूरी नहीं कि ये सीटों में तब्दील हो जाए. भले ही हरियाणा में काफी लोग सरकार के विरोध में थे, लेकिन इनके वोट निर्दलीय और अन्य दलों में बंट गए और कांग्रेस को नुकसान हुआ. हालांकि, अभी कई सीटों पर कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है. ऐसे में किसी बड़े उलटफेर से इनकार नहीं किया जा सकता.
क्षेत्रीय दलों का क्या होगा?
2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा 31 सीट जीतने वाली इनेलो 2014 के चुनाव में महज 19 सीटों पर सिमट गई. हालांकि, 2009 और 2014 में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनी, लेकिन मत प्रतिशत 2009 के 25.79 से घटकर 24.01 हो गया. 2019 के चुनाव आते-आते इनेलो का मत प्रतिशत महज 2.44 रह गया और महज 1 सीट जीत पाई. यही हाल निर्दलीयों का भी रहा. 2009 के चुनाव में 7 सीटों पर निर्दलीयों ने जीत दर्ज की और कुल 13.16 प्रतिशत मत पाए. हालांकि, 2014 के चुनाव में सिर्फ 5 निर्दलीय ही जीत पाए और मत प्रतिशत भी घटकर 10.6 प्रतिशत रह गया. 2019 में इनकी संख्या तो बढ़ी, लेकिन मत प्रतिशत बढ़ गया. इस बार भी जजपा, इनेलो, आप की कुल मिलाकर सीटें भी दहाई का आंकड़ा पार करती नहीं दिख रही. साफ है कि क्षेत्रीय दलों से हरियाणा की जनता का मोहभंग होता जा रहा है.
2019 में 7 निर्दलीय जीते, लेकिन उन्हें महज 9.17 वोट प्रतिशत मिले. ऐसे ही बसपा, शिअद जैसे दलों का भी वोट प्रतिशत गिर गया. इन आंकड़ों को देखकर साफ कहा जा सकता है कि हरियाणा की जनता राष्ट्रीय दलों पर ज्यादा भरोसा जता रही है. आम आदमी पार्टी इस बार पहली बार हरियाणा में चुनाव लड़ रही है. देखना है उसे कितने वोट प्रतिशत मिलते हैं. साथ ही पिछली बार जजपा ने पहली बार ही चुनाव लड़कर 10 सीटें जीती थीं और 14.80 प्रतिशत मत हासिल किए थे. इस बार के इनके नतीजे बताएंगे कि क्षेत्रीय दलों का भविष्य हरियाणा में रहेगा या समाप्त हो जाएगा.