मायावती का 'डबल डोज' वाला फॉम्युला फेल, हरियाणा में खाता भी नहीं खुला

आंकड़े बताते हैं कि मायावती का वोटर कांग्रेस की तरफ़ शिफ़्ट होने लगा है. लोकसभा चुनाव में यूपी में भी यही हुआ. बीएसपी के कुछ बेस वोटर कांग्रेस में गए तो कुछ समाजवादी पार्टी के साथ हो लिए.

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नई दिल्ली:

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर मायावती इस बार दिल्ली में रहेंगी. बीएसपी चीफ बहुजन समाज प्रेरणा केंद्र जाकर बाबा साहेब को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगी. आम तौर पर इस मौके पर वो लखनऊ में रहती हैं. हरियाणा में गठबंधन के बावजूद बीएसपी अपना खाता तक नहीं खोल पाई. वैसे ज़ीरो पर रहना तो जैसे अब बीएसपी की आदत सी होने लगी है. लोकसभा चुनाव में भी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. अब ऐसे में मायावती का अगला कदम क्या होगा? बीएसपी की राजनीति किस करवट बैठेगी? हो सकता है 9 अक्टूबर को मायावती इस बारे में कुछ बताएं.

हरियाणा से मायावती को बहुत उम्मीदें थीं. इसीलिए उन्होंने इंडियन नेशनल लोकदल से गठबंधन किया था. बीएसपी ने चुनाव के लिए पूरी ताक़त झोंक दी थी. मायावती ने धुंआधार चुनाव प्रचार भी किया. उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को पहले से ही प्रचार के लिए भेज दिया था. हरियाणा भेजने से पहले मायावती ने आकाश आनंद को दोबारा राजनैतिक उत्तराधिकारी भी बनाया. जाट और दलित समीकरण के बहाने मायावती की तैयारी फिर से अपनी ताक़त दिखाने की थी, लेकिन मायावती का फ़ार्मूला फेल हो गया.

मायावती इस बार पूरी तैयारी के साथ हरियाणा के चुनाव में उतरी थीं. पूरा गुणा गणित कर लिया था. भतीजे आकाश आनंद को अपना सेनापति बनाया. इंडियन नेशनल लोकदल से गठबंधन कर सोशल इंजीनियरिंग तैयार किया. हरियाणा में बीएसपी पहले से चौथे नंबर की पार्टी थी. चुनाव प्रचार की शुरुआत से ही राहुल गांधी और कांग्रेस को दलित विरोधी बताती रहीं. गठबंधन में मायावती इस बार हरियाणा में 37 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए. उनकी सहयोगी पार्टी आईएनएलडी 53 सीटों पर चुनाव लड़ी. बीएसपी की 37 में से 13 सीटें ऐसी थी, जिस पर दलित वोटर 10 से 28 प्रतिशत के बीच था. जबकि छह सीटों पर उसके मतदाता पांच से दस प्रतिशत के बीच थे. इन सीटों पर मायावती को जीत मिलने की उम्मीद थी.

मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को हरियाणा में चुनाव प्रचार की कमान सौंपी. मायावती खुद भी पांच बड़ी चुनावी रैलियों को संबोधित करने पहुंची, लेकिन मायावती के चुनाव प्रचार का कोई असर नहीं हुआ. जबकि मायावती ने हरियाणा में चुनाव प्रचार करते हुए दलित समाज से कांग्रेस का बहिष्कार करने की अपील की थी. ये दांव चलते हुए मायावती ने हरियाणा में दलित समाज पर अपनी पकड़ होने का संकेत दिया था. पार्टी के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए, जबकि आईएनएलडी के दो उम्मीदवार चुनाव जीत पाए.

हरियाणा की हार के चक्कर में बीएसपी अपना दलित वोट बैंक भी गंवा बैठी. पिछले विधानसभा चुनाव में बीएसपी को 4.14 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि इस चुनाव में पार्टी को सिर्फ़ 1.74 प्रतिशत वोट ही हासिल हुए. आंकड़े बताते हैं कि मायावती का वोटर कांग्रेस की तरफ़ शिफ़्ट होने लगा है. लोकसभा चुनाव में यूपी में भी यही हुआ. बीएसपी के कुछ बेस वोटर कांग्रेस में गए तो कुछ समाजवादी पार्टी के साथ हो लिए. राजनैतिक रूप से मायावती का समय ख़राब चल रहा है.

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