"जीवन देश के लिए लगा दिया, बदले में..": पाक जेल में 28 साल बिताकर वतन लौटे गुजरात के शख्‍स ने बयां किया दर्द

कुलदीप यादव को पाकिस्तानी अधिकारियों ने मार्च 1994 में जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया था. इस साल 22 अगस्त को उन्हें जेल से रिहा किया गया.

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प्रतीकात्‍मक फोटो
अहमदाबाद:

पाकिस्तान की जेल में जासूसी के आरोप में 28 वर्ष से अधिक समय गुजारने के बाद गुजरात का एक व्यक्ति अपने वतन लौट आया है. लौटने के बाद उक्त व्यक्ति ने भारत सरकार से पड़ोसी देश की जेलों में बंद अन्य हमवतन लोगों को वापस लाने में मदद की गुहार लगाई है. 25 अगस्त को पाकिस्तान से भारत लौटे कुलदीप यादव (59) ने अहमदाबाद में अपनी बहन और तीन भाइयों से मिलने के बाद सरकार से उनके पुनर्वास में मदद करने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि उनके पास कुछ भी नहीं है और वह हमेशा के लिए अपने भाई-बहनों पर निर्भर नहीं रह सकते.'' उन्होंने कहा, ''मैंने अभी जो कमीज़ पहनी है वह भी पाकिस्तान की है. मेरे पास अपने कपड़े भी नहीं हैं.''

यादव को पाकिस्तानी अधिकारियों ने मार्च 1994 में जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया था. इस साल 22 अगस्त को उन्हें जेल से रिहा किया गया था. उन्होंने पंजाब में वाघा-अटारी सीमा के रास्ते भारत में प्रवेश किया. उन्होंने पाकिस्तान में भारतीय उच्चायोग से पड़ोसी देश की जेलों में बंद भारतीयों की दुर्दशा को समझते हुए उन्हें घर वापस लाने में मदद की अपील की. कुलदीप यादव ने कहा कि पाकिस्तानी जेल में बंद कईं भारतीयों ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के अधिकारियों द्वारा उन्हें दी गई प्रताड़ना के कारण वे अपना नाम तक भूल गए हैं और वे लोग सजा पूरी होने के बाद भी जेल में हैं.

शहर के चांदखेड़ा इलाके में अपनी बहन के आवास पर पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, ''जब भी हम पाकिस्तान सरकार और जेल अधिकारियों से हमें रिहा करने का अनुरोध करते थे, तो वह केवल यही कहते थे कि 'भारत सरकार हमें स्वीकार नहीं कर रही.' जब भारत सरकार हमें स्वीकार नहीं करेगी तो रिहाई मुश्किल होगी ही.'' उन्होंने कहा, ''भारत सरकार को उनकी रिहाई की मांग करनी चाहिए, क्योंकि वे देश के काम के लिए वहां गए थे.'' उन्होंने कहा, ''भारत सरकार को यहां की जेल में बंद पाकिस्तानी कैदियों को पाकिस्तान में बंद भारतीयों के बदले रिहा करना चाहिए.'' यादव ने कहा कि उन्होंने अपना पूरा जीवन देश के लिए लगा दिया, लेकिन बदले में उन्हें कुछ नहीं मिला.यादव ने 1989 में यह कहते हुए घर छोड़ दिया था कि वह नई दिल्ली में नौकरी करने जा रहे हैं, लेकिन उन्होंने काम के बारे में जानकारी नहीं दी थी. बाद में परिवार का यादव से संपर्क टूट गया.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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