खतरनाक बीमारी से जूझ रहे मासूम को बचाने के लिए बढ़े कई हाथ, 16 करोड़ का इंजेक्शन बना संजीवनी

बच्चे के पिता राजदीप सिंह ने बताया कि उस इंजेक्शन पर 6 करोड़ के करीब आयात शुल्क था, जिसे केंद्र सरकार ने माफ कर उनका काम आसान कर दिया. 

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बच्चों को बचाने के लिए 42 दिन में जमा हुए 16 करोड़ रुपये
मुंबई:

कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी के बीच जब हर तरफ परेशानी का आलम है ऐसे में लोग जमकर दान कर रहे हैं और मासूम जिंदगियों की बचाने के लिए आगे भी आ रहे हैं. गुजरात के रहने वाले एक शख्स के पांच महीने के बच्चे को बचाने के लिए 42 दिन में 16 करोड़ रुपये जमा किए गए. आम जनता और दानदाताओं की आर्थिक मदद से साढ़े पांच महीने के बच्चे को नई जिंदगी मिली. बच्चा स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी जैसी दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है. हिंदुजा अस्पताल में उसका उपचार चल रहा है. 

स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी जैसी दुर्लभ बीमारी से ग्रसित साढ़े पांच महीने के धैर्यराज को 16 करोड़ के इंजेक्शन की जरूरत थी, लेकिन उसके परिवार के पास उतने पैसे नही थे. गुजरात के रहने वाले पिता राजदीप सिंह राठौड़ ने सोशल मीडिया पर आम जनता से गुहार लगाई और एनजीओ की मदद ली. अमेरिका से आये जीवनदायी इंजेक्शन का नाम ज़ोल्गेन्स्मा (Zolgensma) है. 

बच्चे के पिता राजदीप सिंह ने बताया कि उस इंजेक्शन पर 6 करोड़ के करीब आयात शुल्क था, जिसे केंद्र सरकार ने माफ कर उनका काम आसान कर दिया. 

मुम्बई के पी.डी. हिंदुजा अस्पताल में मासूम धैर्यराज का इलाज कर रही डॉक्टर नीलू देसाई के मुताबिक, इस तरह की बीमारी 8 से 10 हजार बच्चों में से किसी एक बच्चे में पाई जाती है. इस बीमारी का सही वक्त पर इलाज नही होने से बच्चे के जीवन के लिए काफी खतरा रहता है और इस इलाज का इंजेक्शन काफी महंगा है लेकिन धैर्य के पिता की कोशिशों के कारण 5 मई को इंजेक्शन आ गया था. 

उन्होंने बताया कि बच्चे को इंजेक्शन लगाया जा चुका है और उसकी हालत अब स्थिर है. बच्चे को अस्पताल से डिस्चार्ज मिल गया है. 

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