उत्तराखंड में बार-बार आग लगने से चिंतित सरकार, अब लेगी ये खास एक्शन

वैसे देखा जाए तो उत्तराखंड में फॉरेस्ट फायर के मामले लगातार बढ़े  हैं साल 2022 में 2136 वन अग्नि की घटनाएं हुई थी और 3358.80 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ था.

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उत्तराखंड में बार-बार आग लगने से चिंतित सरकार, अब लेगी ये खास एक्शन
 गढ़वाल:

उत्तराखंड से भाजपा के नवनिर्वाचित लोक सभा सांसद एवं भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी ने आज बुधवार को नई दिल्ली में नीति आयोग के उपाध्यक्ष  सुमन बेरी से मुलाकात कर हिमालयी राज्यों के वनों में, खासकर उत्तराखंड में, बार-बार आग लगने की समस्या और इससे होने वाले भारी नुकसान को लेकर बड़ी चिंता जताई. नीति आयोग ने पर्यावरण और वन , वित्त और गृह मंत्रालयों के साथ मिलकर एक ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप बना कर इस समस्या पर एक वृहद अध्ययन करायेगा.

आग के कारण

वैसे देखा जाए तो उत्तराखंड में फॉरेस्ट फायर के मामले लगातार बढ़े  हैं साल 2022 में 2136 वन अग्नि की घटनाएं हुई थी और 3358.80 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ था इस तरह से साल 2023 में 663 वनअग्नि की घटनाएं हुई और 789.14 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ था मौजूदा साल 2024 में 1213 वनग्नि की घटनाएं हुई और 1653.07 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ . दर्शन उत्तराखंड के लिए फॉरेस्ट फायर एक बड़ी समस्या है साल 2024 में मार्च अप्रैल और मैं के महीने में बारिश नहीं होने की वजह से जंगल की आज ज्यादा भड़क गई.

उत्तराखंड के गढ़वाल रीजन की बात करें तो 519 फॉरेस्ट फायर की घटनाएं हुई जिसमें 687.61 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ. इसी तरह से उत्तराखंड के कुमाऊँ रीजन में 590 फॉरेस्ट फायर की घटनाएं हुई तो वही 833.18 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ.

उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटना प्राकृतिक भी है और इसके अलावा लोगों द्वारा जंगलों में आग भी लगाई गई है यही वजह है कि साल 2024 में 445 मुकदमे दर्ज किए गए जिसमें 65 ज्ञात कैसे तो वही अज्ञात कैसे की संख्या 380 रही है फॉरेस्ट फायर के मामले में 92 नामजद की संख्या थी जिसमें 15 एफ आई आर दर्ज की गई.

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अनिल बलूनी ने बताया  कि उत्तराखंड सहित तमाम पर्वतीय इलाकों में हमेशा इस तरह की घटना सामने आती रहती है, जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, बल्कि वन्य जीवन को भी इस त्रासदी का सामना करना पड़ता है. साथ ही, जान-माल की व्यापक हानि होती है. इससे राज्य की अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान पहुंचता है.

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उन्होंने कहा कि इस समस्या की रोकथाम के लिए योजनाओं में दूरदर्शी व दूरगामी नीतियां बनाने की जरूरत है. साथ ही, पर्वतीय राज्यों हेतु बजट में भी इसके लिए अलग से प्रावधान करने की जरूरत है ताकि पहाड़ और जंगल का संतुलन बना रहे और पर्यावरण असंतुलित न हो. उन्होंने कहा इसके लिए केंद्र से सहयोग एवं समन्वय की जरूरत है. उन्होंने कहा कि नीति आयोग को प्रभावित राज्यों के साथ–साथ गृह , वित्त एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ–साथ विशेष समन्वय करके योजनाओं और बजट में इसके लिए अलग से प्रावधान करने की जरूरत है.

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नीति आयोग के उपाध्यक्ष  सुमन बेरी ने इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए एक खाका तैयार करने का निर्देश दिया है. उन्होंने कहा है कि इस मामले पर एक स्टडी की जरूरत है. स्टडी को समझने के बाद इस तरह की समस्याओं का निराकरण किया जाएगा.

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