कौन हैं त्रिपुरा के वे दो संगठन जिनसे अमित शाह की मौजूदगी में हुआ समझौता, क्या है आगे की राह

त्रिपुरा को अलग देश बनाने के लिए पिछले कई दशक से सशस्त्र संघर्ष कर रहे एनएलएफटी और एटीटीएफ ने बुधवार को केंद्र सरकार और त्रिपुरा सरकार के साथ एक समझौता किया. आइए जानते हैं एनएलएफटी और एटीटीएफ की राजनीति के बारे में.

Advertisement
Read Time: 4 mins
नई दिल्ली:

केंद्र सरकार और त्रिपुरा सरकार ने बुधवार राज्य में सक्रिय दो उग्रवादी संगठनों नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (एटीटीएफ) के साथ शांति समझौता किया.ये दोनों संगठन त्रिपुरा को अलग देश बनाने के लिए पिछले कई दशक से सशस्त्र संघर्ष में शामिल थे.समझौता केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा की मौजूदगी में हुआ.समझौते के तहत एनएलएफटी और एटीटीएफ हिंसा का रास्ता छोड़ेंगे, अपने हथियार डाल देंगे. दोनों संगठन अपने सशस्त्र संगठनों को भंग कर देंगे. सरकार ने इसके साथ ही 250 करोड़ के एक पैकेज को भी मंजूरी दी है.एनएलएफटी और एटीटीएफ से हुआ यह समझौता पूर्वोंत्तर भारत में चरमपंथी समूहों से हुआ 12वां और त्रिपुरा से जुड़ा तीसरा समझौता है.

अमित शाह को क्या है उम्मीद 

समझौते के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि 35 साल से चल रहे संघर्ष के बाद एनएलएफटी और एटीटीएफ  ने हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने और त्रिपुरा के विकास के लिए अपनी इच्छा जताई है.

समझौते के बाद दोनों संगठनों के लोगों से मिलते केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह.

इस समझौते के बाद दोनों संगठनों के 328 कैडर मुख्यधारा में शामिल होने के लिए तैयार हैं.वे अब अपने परिवार के साथ रह सकते हैं,भारत का नागरिक बन सकते हैं.हम एनएलएफटी और एटीटीएफ को आश्वासन देते हैं कि हम समझौते का पूरी तरह से पालन करेंगे. उन्होंने बताया कि नॉर्थ ईस्ट में अब तक करीब 10 हजार उग्रवादियों ने हथियार छोड़कर आत्मसमर्पण किया है.

Advertisement

'टिपरा मोथा' से भी हुआ है समझौता

इससे पहले इसी साल मार्च में त्रिपुरा के मूल निवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए इंडिजीनस प्रोग्रेसिव रीजनल अलायन्स यानी 'टिपरा मोथा', त्रिपुरा सरकार और केंद्र सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ था. इस समझौते में त्रिपुरा के जनजातियों के इतिहास, भूमि और राजनीतिक अधिकारों, आर्थिक विकास, पहचान, संस्कृति और भाषा से संबंधित सभी मुद्दों का सौहार्दपूर्ण हल का वादा किया गया है.इस समझौते के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि इस समझौते से त्रिपुरा विवाद मुक्त त्रिपुरा बनने की दिशा में और आगे बढ़ गया है. इसके बाद अब सरकार ने एनएलएफटी और एटीटीएफ के साथ समझौता किया है.

Advertisement

टिपरा मोथा के साथ हुए समझौते के बाद संगठन के प्रमुख प्रद्योत माणिक्य देबबर्मा के साथ गृहमंत्री अमित शाह.
Photo Credit: PIB

Advertisement

क्या है एनएलएफटी और एटीटीएफ 

त्रिपुरा में एनएलएफटी के दो गुट सक्रिय हैं. एक का नेतृत्व विश्वमोहन देवबर्मन  और दूसरे का नेतृत्व परिमल देवबर्मन करते हैं.एनएलएफटी गठन 1989 में हुआ था.लेकिन गठन के बाद से यह संगठन अभी तक कई टुकड़ों में बंट चुका है. नयाबासी जमातिया ने 2001 में एनएलएफटी (एन) का गठन किया था.वो एनएलएफटी के बड़े नेताओं में से एक थे. एनएलएफटी (एन) ने 2004 केंद्र सरकार के साथ समझौता किया था.इससे पहले विश्वमोहन देवबर्मन के नेतृत्व वाले एनएलएफटी के 88 कैडरों ने 2019  में आत्मसमर्पण कर दिया था.

Advertisement

केंद्र सरकार के साथ समझौता करने वाले दूसरे संगठन एटीटीएफ का गठन रंजीत देवबर्मन ने 1993 में किया था. इस संगठन में कोई टूट नहीं हुई है. लेकिन समय के साथ यह कमजोर होता चला गया है. एनएलएफटी और एटीटीएफ दोनों का उद्देश्य त्रिपुरा को अलग देश बनाना था.इसके लिए दोनों संगठन हथियारबंद संघर्ष में शामिल थे. केंद्र सरकार ने 1997 में एनएलएफटी और एटीटीएफ को गैरकानूनी संगठन घोषित कर दिया था. सरकार ने इन दोनों पर पाबंदी लगा दी थी.केंद्र सरकार ने 2019 में इन दोनों संगठनों पर लगी पाबंदी को पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया था. इसे 2023 में फिर से पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया था. 

एनएलएफटी और एटीटीएफ से समझौते के बाद अमित शाह का स्वागत करते संगठन के लोग.

त्रिपुरा में घटती आदिवासी आबादी

त्रिपुरा 1949 में भारत में शामिल हुआ था. इससे पहले त्रिपुरा पर माणिक्य राजवंश ने सदियों तक शासन किया. त्रिपुरा की आबादी में आदिवासियों की संख्या सबसे अधिक है. राज्य में बंगालियों की संख्या भी अधिक है, जिन्हें राजा राजकाज में सहयोग करने के लिए बुलाकर लाए थे. साल 1981 की जनगणना के मुताबिक त्रिपुरा में आदिवासियों की आबादी 63.77 फीसदी थी. यह 2011 की जनगणना में घटकर 31.80 फीसदी रह गई है. जनसंख्या में आए इस बदलाव की वजह से ही त्रिपुरा में हथियारबंद आंदोलन शुरू हुए. आदिवासियों की ओर से 1960 के दशक में शुरू किए गए सेंगक्राक को त्रिपुरा का पहला हथियारबंद संघर्ष माना जाता है. 

ये भी पढ़ें: कई टिकट काटे, कई समीकरण साधे... हरियाणा बीजेपी की 67 वाली लिस्ट में छिपे हैं कई संदे

Featured Video Of The Day
One Nation One Election: S. Y. Quraishi क्यों मानते हैं कि सरकार का ये प्रस्ताव Practical नहीं है?
Topics mentioned in this article