सरकार ने एनएमसी के प्रतीक चिह्न में बदलाव का बचाव किया, विरासत का हिस्सा बताया

शांतनु सेन ने कहा कि प्रतीक चिह्न में बदलाव भारतीय संविधान के बुनियादी सार के खिलाफ है, जिसमें 1976 में 42वें संशोधन के बाद अनुच्छेद 25 और 26 के माध्यम से कहा गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है.

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मनसुख मांडविया ने कहा, ‘‘यह चिकित्सा विज्ञान का प्रतीक है... जिसने चिकित्सा विज्ञान में इतना शोध किया था.
नई दिल्ली:

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के प्रतीक चिह्न में बदलाव कर हिंदू पौराणिक कथाओं में देवताओं के वैद्य कहे जाने वाले धनवंतरी को हिस्सा बनाए जाने के फैसले का बचाव करते हुए सोमवार को कहा कि यह भारत की विरासत का हिस्सा है और सभी को इस पर गर्व महसूस करना चाहिए. तृणमूल कांग्रेस के शांतनु सेन ने जब राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान प्रतीक चिह्न में बदलाव का मुद्दा उठाया, तो स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि धनवंतरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान के प्रतीक हैं.

मनसुख मांडविया ने कहा, ‘‘यह पहले से ही (आयोग के) प्रतीक चिह्न का हिस्सा था और इसमें सिर्फ कुछ रंग जोड़ा गया है और इससे ज्यादा कुछ नहीं.'' उन्होंने कहा, ‘‘यह भारत की विरासत है। मुझे लगता है कि हमें (इसपर) गर्व महसूस करना चाहिए.'' मंत्री ने कहा कि देश की विरासत से प्रेरणा लेकर प्रतीक चिह्न तैयार किया गया है.

मनसुख मांडविया ने कहा, ‘‘यह चिकित्सा विज्ञान का प्रतीक है... जिसने चिकित्सा विज्ञान में इतना शोध किया था. हमने किसी अन्य इरादे से तस्वीर का इस्तेमाल नहीं किया है.'' भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1933 के पारित होने के बाद 1934 में भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के प्रतीक चिह्न को अपनाया गया था.

कानून ने चिकित्सा को ‘आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा के रूप में परिभाषित किया और इसमें सर्जरी और प्रसूति विज्ञान शामिल हैं.'' इसका प्रतीक चिह्न चिकित्सा के अंतरराष्ट्रीय प्रतीक-चिकित्सा और उपचार के यूनानी देवता एस्क्लेपियस के कर्मचारी पर आधारित था.

हालांकि, आयोग के लोगो में बदलाव की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन कथित तौर पर केंद्र में धनवंतरी के चित्रण वाला एक श्वेत-श्याम लोगो दिसंबर 2022 में दिखाई दिया. रंगीन संस्करण कुछ महीने बाद दिखा. शून्यकाल में इस मुद्दे को उठाते हुए सेन ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के पिछले प्रतीक चिह्न को बहाल करने की मांग की. उन्होंने कहा कि समाज के विभिन्न तबकों और चिकित्सा बिरादरी की आपत्तियों के बावजूद 1956 के भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम को 2020 में निरस्त कर दिया गया था.

उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग 64 साल पुराने भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 को निरस्त करते हुए 25 सितंबर 2020 से अस्तित्व में आया.'' सेन ने कहा कि पहले इसे ‘पश्चिमी चिकित्सा' कहा जाता था, फिर यह ‘चिकित्सा' बन गई और अब इसे ‘आधुनिक चिकित्सा' कहा जाने लगा. उन्होंने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से, हमने हाल के दिनों में देखा है, मुझे नहीं पता कि यह सरकारी निर्देश के कारण है या राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा...प्रतीक चिह्न बदल दिया है और वे इसमें धनवंतरी की तस्वीर लेकर आए हैं.''

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उन्होंने कहा, ‘‘प्रतीक चिह्न में बदलाव की बिल्कुल जरूरत नहीं थी. यह एक विशेष धर्म का प्रतीक है.'' उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग चिकित्सा पाठ्यक्रम को नियंत्रित करता है और नए मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी देता है. उन्होंने कहा, ‘‘इसका काम किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देना नहीं है. यहां तक कि आयुष विभाग ने भी अपना लोगो नहीं बदला, लेकिन राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने बदला है.''

उन्होंने कहा, ‘‘यह उस मूल शपथ के खिलाफ है, जो डॉक्टर एमबीबीएस पास करने के बाद लेते हैं. वे शपथ लेते हैं कि हम प्रत्येक रोगी का इलाज करेंगे, चाहे उनकी जाति, पंथ या धर्म कुछ भी हो. हम किसी एक धर्म विशेष के लोगों का उपचार करने के लिए बाध्य नहीं हैं.''

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सेन ने कहा कि प्रतीक चिह्न में बदलाव भारतीय संविधान के बुनियादी सार के खिलाफ है, जिसमें 1976 में 42वें संशोधन के बाद अनुच्छेद 25 और 26 के माध्यम से कहा गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. सेन ने कहा, ‘‘और हमें धर्मों के बीच सामंजस्य स्थापित करने को बढ़ावा देना चाहिए.'' उन्होंने मांग की कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) तत्काल उस पुराने प्रतीक चिह्न को बहाल करे, जो किसी विशेष धर्म का प्रतीक नहीं है.
 

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