'यह बच्चों के कल्याण का मामला है' : कोविड में अनाथ हुए बच्चों के मामले में बंगाल सरकार को SC की चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों की संख्या में सरकारी आंकड़ों और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के आंकड़ों में दस गुना अंतर पर सवाल उठाए.

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कोरोना से अनाथ हुए बच्चों की संख्या पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें राज्य : कोर्ट (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:

कोरोना (Coronavirus) महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों (Orphan Children) के मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार पर सख्त टिप्पणी की. न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार (Bengal Govt) के बयान पर नाराजगी जताई है. बंगाल सरकार के वकील ने कहा था कि यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि हमने पर्याप्त समय दिया है. ऐसे गैरजिम्मेदार बयान मत दिया कीजिए. इन अनाथों को खुद को बचाने के लिए छोड़ दिया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार के सचिव को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल को चेतावनी देते हुए कहा कि राज्य अगर सही आंकड़ा नहीं देता है तो वह (शीर्ष न्यायालय) जांच का आदेश दे सकता है. राज्य द्वारा दिया गया आंकड़ा स्वीकार्य नहीं है. यह राजनीतिक मामला नहीं है, बल्कि बच्चों के कल्याण का मामला है. पश्चिम बंगाल ने अदालत को सूचित किया कि लॉकडाउन के दौरान माता-पिता की मृत्यु के कारण 27 बच्चे अनाथ हुए हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि वो मार्च, 2020 के बाद माता-पिता में से किसी एक की मृत्यु के कारण अनाथ हो गए बच्चों की जानकारी एकत्र करें और इसे जल्द से जल्द NCPCR पोर्टल पर अपलोड करें. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के महिला बाल विकास और समाज कल्याण विभाग के सचिव को पोर्टल पर आंकड़े अपलोड करने के लिए उठाए गए कदमों पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया. कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को अनाथ हुए बच्चों पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को भी कहा है.

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सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे उन बच्चों की संख्या पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें जिन्होंने दोनों या माता-पिता में से एक को खो दिया है, उनको राज्यों और केंद्र की योजनाओं का लाभ मिला है या नहीं. राज्यों को विवरण देना होगा कि क्या इन अनाथों को आईसीपीसीएस योजना के तहत प्रति माह 2000 रुपये मिल रहे हैं या नहीं. 

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शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को इन अनाथों की निजी या सरकारी स्कूलों में शिक्षा जारी रखना सुनिश्चित करना चाहिए. इसका विवरण स्टेटस रिपोर्ट में कोर्ट को देना होगा. SC ने सभी राज्यों के जिलाधिकारियों को  पुलिस, आंगनवाड़ी, आशा कार्यकर्ताओं और  सिविल सोसायटी संगठनों को मार्च 2020 के बाद अनाथ या माता-पिता में से एक को खोने वाले अनाथों की पहचान करने के लिए शामिल करने का निर्देश दिया.

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SC ने पश्चिम बंगाल के बाल और समाज कल्याण विभाग के सचिव को अनाथों की पहचान के लिए उठाए गए कदमों पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया. बच्चों की सुरक्षा का मामला सुप्रीम कोर्ट ने खुद उठाया है. इस मामले में अगली सुनवाई 26 अगस्त को होगी.

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वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों की संख्या में सरकारी आंकड़ों और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के आंकड़ों में दस गुना अंतर पर सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि दस्तावेजों में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक, सरकार 645 बच्चों पर विभिन्न योजनाओं के तहत दस लाख रुपए खर्च कर रही है जबकि एनसीपीसीआर यानी बाल अधिकार संरक्षण आयोग मार्च 2020 से जुलाई 2021 तक ऐसे अनाथ हुए बच्चों की संख्या 6855 बता रहा है. 

कोर्ट ने कहा कि हम लगातार जोर दे रहे हैं कि योजनाओं पर फौरन अमल किया जाए. इन आंकड़ों से तो लगता है कि सरकार की कथनी और करनी में काफी अंतर है. सरकार परियोजनाओं का ऐलान तो कर देती है लेकिन, अमल करने में फिसड्डी रह जाती है. जिलों में बाल सुधार केंद्र, बाल संरक्षण केंद्र, उनके अधिकारियों की पूरी फौज है लेकिन, आंकड़े और हकीकत कुछ और ही हैं. 

ASG ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि आंकड़ों में इस अंतर पर वो सरकार और आयोग से बात कर समुचित निर्देश लेकर कोर्ट को सूचित करेंगी.

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