"यह कोई तर्क नहीं" : सरकार vs न्‍यायपालिका के 'टकराव' के बीच आए कानून मंत्री के बयान पर बोले SC के पूर्व जज

सरकार vs न्‍यायपालिका की बहस में कानून मंत्री रिजिजू ने इस बात को दोहराया कि चूंकि न्यायाधीश निर्वाचित नहीं होते हैं, इसलिए उन्हें सार्वजनिक जांच का सामना नहीं करना पड़ता है, लेकिन लोग उन्हें देखते हैं और न्याय देने के तरीके से उनका आकलन करते हैं.

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नई दिल्‍ली:

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू के इस तर्क कि जिस तरह से चुने गए प्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं उस तरह न्‍यायाधीश जवाबदेह नहीं हैं, को सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्‍त न्‍यायाधीश जस्टिस गुप्‍ता ने सिरे से खारिज कर दिया है. एनडीटीवी के साथ विशेष इंटरव्‍यू में उन्‍होंने कहा, "ऐसे बयानों से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और ताकत कमजोर होती है." उन्‍होंने इसके साथ ही कहा कि मौजूदा सिस्‍टम इस कारण अस्तित्‍व में है क्‍योंकि यह संविधान बनाने वालों ने इसकी कल्‍पना की थी. जस्टिस गुप्‍ता ने कहा,  इस तरीके से हमने चुना है कि संविधान में हमारी  न्‍यायपालिका कैसी होनी चाहिए. यह अमेरिकी न्यायपालिका के विपरीत है, जहां जिला स्तर पर बहुत सारे लोग चुने जाते हैं 

गौरतलब है कि सरकार vs न्‍यायपालिका की बहस में कानून मंत्री रिजिजू ने इस बात को दोहराया कि चूंकि न्यायाधीश निर्वाचित नहीं होते हैं, इसलिए उन्हें सार्वजनिक जांच का सामना नहीं करना पड़ता है, लेकिन लोग उन्हें देखते हैं और न्याय देने के तरीके से उनका आकलन करते हैं. उन्होंने कहा कि भारत में अगर लोकतंत्र को फलना-फूलना है तो एक मजबूत और स्वतंत्र न्यायपालिका का होना जरूरी है. रिजिजू ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट के कुछ विचार हैं और सरकार के कुछ विचार हैं तथा यदि दोनों मतों में कोई अंतर है तो ‘‘कुछ लोग इसे ऐसे प्रस्तुत करते हैं जैसे सरकार और न्यायपालिका के बीच महाभारत चल रही हो. ऐसा नहीं है...हमारे बीच कोई समस्या नहीं है. 

जस्टिस गुप्‍ता ने कहा कि जजों की नियुक्ति करने वाला कॉलेजियम सिस्‍टम, ऐसी एक प्रक्रिया है जिसमें सरकार बड़ी भूमिका चाहती है, यह कभी चुनावी मुद्दा नहीं रहा. ज्‍यादातर देशों में ऊंचे कोर्ट्स (Highest courts)के लिए जज नहीं चुने जाते हैं. "यह वास्तव में कोई तर्क नहीं है. यह अपने आप में कोई तर्क नहीं है कि हम चुने जाते हैं इसलिए हम लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करते हैं...मुझे लगता है कि यह स्‍पष्‍ट करने की जरूरत है कि सत्तारूढ़ सरकार के पास यह कहने के लिए संख्या बल नहीं है कि वे लोगों की इच्छा को प्रस्तुत करते हैं."  उनहोंने कहा कि सरकार को डाले गए वोटों के केवल 35 फीसदी वोट मिले और अगर कुल वोटरों की गिनती की जाए तो यह संख्या घटकर 25 फीसदी ही रह जाती है. जस्टिस गुप्ता ने सवालिया लहजे में पूछा कि क्या कानून मंत्री का बयान, न्यायाधीशों के विभिन्न नामों को खारिज करने के सरकार के कारणों को सार्वजनिक करने के कॉलेजियम के अभूतपूर्व कदम का परिणाम है. उन्होंने कहा, "हो सकता है कि कॉलेजियम ने जो किया है उससे वे हिल गए हों."

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