गुजरात चुनाव: दांव पर है अल्पेश ठाकोर का राजनीतिक करियर, आंदोलन से चर्चित चेहरे ने ऐसे बदला अपना 'सियासी खेल'

पाटीदार आंदोलन के समय रातों-रात गुजरात के बड़े नेता बने अल्पेश ठाकोर को हीरो बनाने में कांग्रेस का बहुत बड़ा हाथ था. कांग्रेस ने बाद में उन्हें विधानसभा का टिकट भी दिया और विधायक बनाया.

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अल्पेश ठाकोर पाटीदार आंदोलन के समय चर्चा में आए थे. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

गुजरात विधानसभा चुनाव में जीत को लेकर सभी पार्टियां पूरा जोर लगा रही हैं. खासकर बड़े चेहरों पर सबकी नजर है. कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए अल्पेश ठाकोर उनमें से एक हैं. अल्पेश ने 2017 में पाटन जिले के राधनपुर से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा था और बीजेपी प्रत्याशी को 14 हजार वोटों से हराया था. हालांकि 2019 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दिया और बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव में हार गए. वहीं इस बार वो गांधीनगर दक्षिण से एक बार फिर बीजेपी की तरफ से चुनावी मैदान में हैं.

अल्पेश ठाकोर पाटीदार आंदोलन के समय चर्चा में आए. उन्होंने क्षत्रिय ठाकोर सेना का भी नेतृत्व किया, जो खासकर ओबीसी समुदाय के लिए काम करती है. उन्होंने कांग्रेस विधायक के रूप में गुजरात में शराब की बिक्री के विरोध में कई आंदोलन किए. 2015 में नशामुक्ति अभियान चलाने के कारण प्रसिद्धि मिलने पर अल्पेश ठाकुर को गोली भी मारी गई थी.

अल्पेश ठाकुर का जन्म 7 नवंबर 1975 को हुआ था. उन्होंने समाज और जाति के नाम पर राजनीति में एंट्री ली. आंदोलन और कांग्रेस के रास्ते अब वो बीजेपी में हैं. बीजेपी में शामिल होते समय उन्होंने कांग्रेस के विधायक के तौर पर इस्तीफा दे दिया था. हालांकि बीजेपी के टिकट पर वो अपनी विधायकी नहीं बचा सके थे. बीजेपी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें एक बार फिर से मौका दिया है.

पांच साल पहले जाति और समाज के कंधे पर बैठकर नेता बने अल्पेश ठाकोर का सियासी खेल अब बदल गया है. अल्पेश के साथ बाद में समाज का सपोर्ट भी धीरे-धीरे कम होने लगा. अल्पेश अगर इस बार भी चुनाव हार जाते हैं तो उनका राजनीतिक करियर अधंकार में जा सकता है.

पाटीदार आंदोलन के समय रातों-रात गुजरात के बड़े नेता बने अल्पेश ठाकोर को हीरो बनाने में कांग्रेस का बहुत बड़ा हाथ था. कांग्रेस ने बाद में उन्हें विधानसभा का टिकट भी दिया और विधायक बनाया. लेकिन दो साल बाद ही उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया. अब एक बार फिर से इस विधानसभा चुनाव में वो बीजेपी की नैया पर सवार होकर चुनावी नदी पार करने की कोशिश में हैं. देखना होगा कि 8 दिसंबर को चुनावी नतीजे के दिन वो इसमें सफल हो पाते हैं कि नहीं.

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