यह ख़बर 02 मई, 2011 को प्रकाशित हुई थी

फर्जी मुठभेड़ : 10 पुलिसकर्मियों की उम्रकैद की सजा बरकरार

खास बातें

  • सुप्रीम कोर्ट ने सहायक पुलिस आयुक्त सहित दिल्ली पुलिस के दस अधिकारियों की दोषसिद्धी तथा उन्हें मिली उम्र कैद की सजा को बरकरार रखा।
New Delhi:

उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1997 में एक फर्जी मुठभेड़ में दो उद्योगपतियों को मार डालने के मामले में एक सहायक पुलिस आयुक्त सहित दिल्ली पुलिस के दस अधिकारियों की दोषसिद्धी तथा उन्हें मिली उम्र कैद की सजा को सोमवार को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति एचएस बेदी और न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की एक पीठ ने पुलिस अधिकारियों द्वारा दायर अपील खारिज कर दी। अपील में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी। गलत पहचान के कारण राजधानी के कनाट प्लेस इलाके में हरियाणा के दो उद्योगपतियों को मार डालने के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 18 सितंबर 2009 को एसीपी एस एस राठी सहित दस पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया और उम्र कैद की सजा सुनाई थी। निचली अदालत ने 24 अक्तूबर 2007 को अपने फैसले में इन लोगों को हत्या का दोषी करार दिया था और उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले से सहमति जताई थी। एसीपी राठी के अलावा अन्य नौ दोषी पुलिस कर्मियों में पुलिस निरीक्षक अनिल कुमार, उप निरीक्षक अशोक राणा, हेड कॉन्स्टेबल शिव कुमार, तेजपाल सिंह और महावीर सिंह सिपाही सुमेर सिंह, सुभाष चंद्र, सुनील कुमार तथा कोठारी राम शामिल हैं। दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के एक दल ने मुठभेड़ विशेषज्ञ राठी की अगुवाई में 31 मार्च 1997 को एक कार पर अंधाधुंध गोली चलाई थी। उन्हें संदेह था कि कार में बैठे उद्योगपति वास्तव में अपराध जगत के वे सरगना थे जिनकी पुलिस को तलाश थी।


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