कठघरे में छांगुर बाबा: धर्मांतरण की साजिश और करोड़ों का खेल, आस्‍था के ऐसे सौदागरों से रहें सावधान!

मुंबई के दंपती नवीन और नीतू रोहरा को बाबा ने जाल में फंसाया. उनके नाम बदल दिए गए- जमालुद्दीन और नसरीन. उनकी मासूम बेटी की पहचान भी बदल दी गई. ये सिर्फ धर्म नहीं, पूरी संस्कृति और पहचान मिटाने की कोशिश थी.

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  • छांगुर बाबा उर्फ जलालुद्दीन ने ताबीज बांटकर, लोगों का विश्वास जीतकर धर्मांतरण रैकेट चलाया. पूरे खेल में उसे 100 करोड़ से ज्‍यादा मिले.
  • जांच में खुलासा हुआ कि बाबा ने अलग-अलग जातियों के धर्मांतरण के लिए रेट तय किए और मध्य पूर्व से भारी फंडिंग प्राप्त की थी.
  • मुंबई के एक परिवार की पहचान बदलकर धर्मांतरण कराया, जिसमें उनकी पूरी सांस्कृतिक पहचान मिटाने का प्रयास किया गया.
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नई दिल्‍ली:

एनडीटीवी इंडिया के शो ‘कचहरी' में इस बार एक हैरान करने वाली जिरह हुई- एक ऐसे शख्स पर, जो कभी ताबीज बांटता था, और आज 106 करोड़ रुपये के घोटाले और धर्मांतरण के अंतरराष्ट्रीय रैकेट का मास्टरमाइंड निकला. इस स्‍पेशल शो के एंकर शुभंकर मिश्रा ने बताया कि कैसे ‘छांगुर बाबा' उर्फ जलालुद्दीन के चमत्कारों की चादर के पीछे एक सुनियोजित साजिश चल रही थी, जो देश की सामाजिक संरचना को कमजोर करने के लिए रची गई थी. इतना बड़ा धोखा!

शुरुआत एक मामूली व्यक्ति से हुई जो खुद को चमत्कारी बाबा बताकर गांवों में घूमता था, अंगूठी-ताबीज बांटता था और दावा करता था कि इससे बीमारियां, कर्ज और कोर्ट केस सब खत्म हो जाएंगे. लोगों ने भरोसा किया, आस्था दिखाई और देखते ही देखते वह गांव का प्रधान बन बैठा. लेकिन एटीएस की जांच ने असली चेहरा उजागर किया- उसके खातों में थे 106 करोड़ रुपये.

धर्मांतरण का रेट कार्ड और इंटरनेशनल फंडिंग

जांच में खुलासा हुआ कि बाबा दरअसल एक संगठित धर्मांतरण रैकेट चला रहा था. अलग-अलग जातियों के लोगों के धर्म बदलवाने के रेट तय थे- दलित के लिए 8 लाख, सिख लड़की के लिए 15 लाख. मिडिल ईस्ट से भारी फंडिंग आती थी, 40 बार विदेश यात्रा हो चुकी थी, और देशभर में फैला था नेटवर्क- मुंबई, लोनावला, पुणे तक.

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मुंबई के परिवार की पहचान मिटाई

शो में एक दिल दहलाने वाला किस्सा भी सुनाया गया- मुंबई के मध्यमवर्गीय दंपति नवीन और नीतू रोहरा को बाबा के जाल में फंसाया गया. उनके नाम बदल दिए गए- जमालुद्दीन और नसरीन. उनकी बेटी की पहचान भी बदल दी गई. यह सिर्फ धर्म नहीं, पूरी संस्कृति और पहचान मिटाने की कोशिश थी.

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‘पीर बाबा' का चोला और असली मकसद

शुभंकर मिश्रा ने बताया कि बाबा ने खुद को ‘पीर बाबा' कहा ताकि हिंदू-मुसलमान दोनों की आस्था को झूठे चमत्कारों से भुनाया जा सके. दरअसल मकसद सिर्फ लोगों का विश्वास जीतना नहीं था, बल्कि उनकी सोच और धर्म को बदलना था.

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बलरामपुर में पहले अस्पताल की बात कही गई, फिर अचानक कॉलेज खोलने की योजना आई. मकसद था युवाओं को मुफ्त सुविधाओं और वजीफों के जरिए फुसलाना, ताकि नई पीढ़ी को धीरे-धीरे कट्टर विचारधारा में ढाला जा सके.

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संपत्ति, कंपनियां और ट्रस्ट के नाम पर खेल

बाबा ने मावल तहसील में 16 करोड़ की जमीन खरीदी, लोनावला में फार्महाउस बनवाया, 'आसवी' नाम से कंपनियां और ट्रस्ट खोले जिनके जरिए मिडिल ईस्ट से करोड़ों की फंडिंग आई. ये पैसे धर्मांतरण और जमीन खरीद में लगाए जा रहे थे. शो में साफ किया गया कि यह मामला केवल चमत्कारी दावों का नहीं, एक वैचारिक युद्ध का था जो भारत की आस्था, संस्कृति और सामाजिक संतुलन को तोड़ने के लिए रचा गया था.

सिर्फ भारत नहीं, अफ्रीका तक फैले हैं ऐसे रैकेट

नाइजीरिया, माली, रवांडा जैसे देशों में भी ऐसे ही तंत्र फैले हैं, जहां चमत्कार के नाम पर धर्म बदले जाते हैं. फर्क बस इतना है कि भारत में अब इस पर कार्रवाई शुरू हो चुकी है.

चेतावनी: आंखें मूंदकर ना करें भरोसा

शुभंकर मिश्रा ने अंत में कहा- हर ताबीज भरोसे के लायक नहीं होता. यह कहानी बताती है कि चमत्कार की आड़ में कई बार समाज को तोड़ने की साजिशें पलती हैं. इसलिए आंख मूंदकर किसी बाबा या पीर के झांसे में आने से पहले सोचें- वो आपकी आस्था चाहता है या उसका सौदा कर रहा है?


 

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