बिहार में कौन हैं अति पिछड़ी जातियां? जिन्हें साधकर CM बने नीतीश, अब राहुल-तेजस्वी की नजर

बिहार में कुछ दिनों में विधानसभा चुनाव होना है. जिसे लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने वोटबैंक को मजबूत करने में जुटी है. आज बात बिहार की अति पिछड़ी जातियों की, जिन्हें साधकर नीतीश सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे और अब इन्हीं जातियों को साधने की जुगत में तेजस्वी-राहुल लगे हैं.

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Bihar Elections: चुनाव करीब आते बिहार में जातियों को लेकर फिर चर्चा तेज है. बिहार की अति पिछड़ी जातियों को समझिए.
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  • बिहार में अति पिछड़ा वर्ग 36 फीसदी आबादी के साथ सबसे बड़ा सामाजिक समूह है. जिसे साधना सत्ता दिलाती है.
  • 2005 में नीतीश कुमार ने EBC को पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों में 20% आरक्षण देकर राजनीतिक भागीदारी बढ़ाई थी.
  • महागठबंधन EBC वर्ग के लिए आरक्षण बढ़ाने और इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने का वादा कर रही है.
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पटना:

EBC in Bihar: बिहार में चुनाव से पहले पार्टियां अति पिछड़ी जातियों को साधने में जुट गई हैं. JDU जहां अपने काम गिना रही है. वहीं महागठबंधन अपना EBC एजेंडा जारी कर रहा है. बिहार में 36% की आबादी के साथ अति पिछड़ा वर्ग सबसे बड़ा समूह है. यह पारंपरिक रूप से नीतीश कुमार का वोटर माना जाता है. महागठबंधन SC/ST एक्ट की तरह पर EBC एक्ट का वादा करने वाला है. साथ ही पंचायती राज नगरीय निकाय चुनाव में EBC आरक्षण की सीमा को 20 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसदी करने का ऐलान कर सकती है.

कौन हैं अति पिछड़ी जातियां?

राष्ट्रीय अति पिछड़ा मोर्चा के अध्यक्ष विजय चौधरी बताते हैं कि संविधान सभा में भी इस बात पर बहस होने लगी थी कि पिछड़े दो तरह के हैं. मुंगेरीलाल कमीशन ने पिछड़ों में दो वर्ग की पहचान की थी. 35 जातियों को पिछड़ा और 93 जातियों को अति पिछड़ा माना गया था.

इस कमीशन की रिपोर्ट को तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने लागू किया था. इसके आधार पर अति पिछड़ों को 12 फीसदी और पिछड़ों को 8 फीसदी आरक्षण दिया गया था. इससे पिछड़ी जातियों के उस हिस्से को फायदा मिला जो भूमिहीन थी या मजदूर वर्ग से थी.

नीतीश कुमार ने साधा अति पिछड़ों को

इस वर्ग को साधने के लिए नीतीश कुमार ने कई प्रयास किए. 2005 में सरकार बनने के बाद अति पिछड़ी जातियों को पंचायती राज में 20% आरक्षण दिया. नगरीय निकाय चुनाव में भी इसे लागू किया. बिहार ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बना. इससे राजनीतिक भागीदारी बढ़ी.


प्री-मैट्रिक, पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप की शुरुआत की. अन्य पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों के लिए जिलों में हॉस्टल भी खुलवाए. अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले नेताओं को विधान परिषद और राज्यसभा में जगह दी. 2005 में नीतीश कुमार ने JDU कोटे से रामनाथ ठाकुर, दामोदर रावत, हरि प्रसाद साह और विश्वमोहन कुमार को मंत्री बनाया.

अति पिछड़े मतदाताओं ने नीतीश को बनाया किंग

इसी वर्ग को साधकर नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के केंद्र में पिछले 20 साल से बने हुए हैं. CSDS का सर्वे बताता है कि 2005 अति पिछड़ी जातियों का 57 % और 2010 के चुनाव में 63 फीसदी वोट NDA गठबंधन को मिला था. 2010 में NDA ने 243 में से 206 सीटें जीती थी.

यादव, कोईरी, कुर्मी व अन्य जातियों का मेल 'पचफोरना' NDA के साथ
 

  • पिछले विधानसभा चुनाव में यादव, कोइरी, कुर्मी के अलावा पिछड़ी जातियों और अन्य पिछड़ी जातियों के समूह ने NDA को 58 फीसदी और महागठबंधन को 18 फीसदी वोट दिए थे. इन जातियों के समूह को 'पचफोरना' भी कहा जाता है.
  • दरअसल उन पंचफोड़ना उन मसालों के मेल को कहा जाता है, जो किसी भी व्यंजन को स्वादिष्ट बनाते हैं. फिलहाल यह NDA के पाले में है. लेकिन अब इस पर महागठबंधन की नजर है.

अब तेजस्वी-राहुल इन जातियों को साधने की कर रहे कोशिश

कांग्रेस ने संविधान सुरक्षा सम्मेलन के जरिए इन मतदाताओं को साधने की कोशिश की. राहुल गांधी ने गया आकर अति पिछड़ा वर्ग के छात्रों से संवाद किया. राजद ने मंगनीलाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाते हुए जोर-शोर से प्रचारित किया कि आजादी के बाद पहली बार किसी पार्टी ने अति पिछड़ी जाति के व्यक्ति को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.

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दशरथ मांझी के घर पर राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेता.

राहुल ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने की भी बात कही

राहुल गांधी जातीय जनगणना के बाद आरक्षण की सीमा बढ़ाने की बात कर रहे हैं. अति पिछड़ी जातियों से आने वाले कई नेताओं से उन्होंने संवाद किया. अब इस वोट बैंक को साधने के लिए अति पिछड़ा एजेंडा जारी कर रहे हैं. इस एजेंडा में जातिगत जनगणना के आधार पर EBC कोटे का आरक्षण बढ़ाने और इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने की बात शामिल की जा सकती है.

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