संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में शनिवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाई. उन्होंने कहा कि आतंक का परिणाम विनाशकारी होता है. पाकिस्तान की सीमा पार आतंकवाद की नीति कभी सफल नहीं होगी. उन्होंने कहा कि, शांति और विकास साथ-साथ होते हैं. जयशंकर ने यह भी कहा कि, भारत और पाकिस्तान के बीच अब केवल एक ही मुद्दा सुलझाया जाना है और वह है पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जाए गए भारतीय क्षेत्र को खाली कराने का मामला.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आज कहा कि पाकिस्तान की सीमा पार आतंकवाद की नीति कभी सफल नहीं हो सकती. विदेश मंत्री ने इस्लामाबाद को चेतावनी देते हुए कहा कि उसकी "कार्रवाई के निश्चित रूप से परिणाम होंगे."
पाकिस्तान की अपनी धरती पर "आतंकवादियों को पनाह देने" की नीति के बारे में एस जयशंकर ने कहा, "कई देश अपने नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण पीछे छूट जाते हैं. लेकिन कुछ देश जानबूझकर ऐसे निर्णय लेते हैं जिनके परिणाम विनाशकारी होते हैं. इसका एक प्रमुख उदाहरण हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान है. दुर्भाग्य से, उनके कुकृत्यों का असर दूसरों पर भी पड़ता है, खासकर पड़ोस पर."
'दुनिया को दोष नहीं दे सकते, यह केवल कर्म है'
जयशंकर ने कहा, "जब यह राजनीति अपने लोगों में इस तरह की कट्टरता पैदा करती है, तो इसकी जीडीपी को केवल कट्टरपंथ और आतंकवाद के रूप में इसके निर्यात के संदर्भ में मापी जा सकती है. आज हम देखते हैं कि दूसरों पर जो बुराइयां लादने की कोशिश की गई थीं, वे अपने ही समाज को खा रही हैं. यह दुनिया को दोष नहीं दे सकते, यह केवल कर्म है."
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विदेश मंत्री ने आगे कहा कि "दूसरों की भूमि का लालच करने वाले एक अकुशल राष्ट्र को उजागर किया जाना चाहिए और उसका मुकाबला किया जाना चाहिए. हमने कल इस मंच पर कुछ विचित्र बातें सुनीं, इसलिए मैं भारत की स्थिति पूरी तरह स्पष्ट कर देना चाहता हूं."
पाकिस्तान का अवैध कब्जा खाली कराना है
जयशंकर ने कहा कि "पाकिस्तान की सीमा पार आतंकवाद की नीति कभी सफल नहीं होगी और उसे किसी भी तरह के दंड से बचने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए." उन्होंने आगे कहा कि "इसके विपरीत, निश्चित रूप से कार्रवाई के परिणाम होंगे. हमारे बीच हल किया जाने वाला मुद्दा अब केवल पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जाए गए भारतीय क्षेत्र को खाली करना है. और निश्चित रूप से आतंकवाद के साथ पाकिस्तान के लंबे समय से जारी लगाव को त्यागना है."
एस जयशंकर ने कहा कि, "...दुनिया बड़े पैमाने पर हिंसा की निरंतरता के बारे में भाग्यवादी नहीं हो सकती, न ही इसके व्यापक परिणामों के प्रति प्रबल हो सकती है. चाहे वह यूक्रेन में युद्ध हो या गाजा में संघर्ष, अंतरराष्ट्रीय समुदाय तत्काल समाधान चाहता है. इन भावनाओं को स्वीकार किया जाना चाहिए और उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए...आतंकवाद दुनिया की हर चीज के विपरीत है. इसके सभी रूपों और अभिव्यक्तियों का दृढ़ता से विरोध किया जाना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने में भी राजनीतिक कारणों से बाधा नहीं डाली जानी चाहिए."
बहुपक्षवाद में सुधार करना ज़रूरी
एस जयशंकर ने कहा कि, "देशों ने अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में जितना दिया है, उससे कहीं ज़्यादा निकाला है. हम हर चुनौती और हर संकट में इसे स्पष्ट रूप से देखते हैं, इसलिए बहुपक्षवाद में सुधार करना ज़रूरी है... विभाजन, संघर्ष, आतंकवाद और हिंसा का सामना करने वाले संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे पूरा नहीं किया जा सकता है. न ही इसे आगे बढ़ाया जा सकता है अगर भोजन, उर्वरक और ईंधन तक पहुंच खतरे में है... समस्याएं संरचनात्मक कमियों, राजनीतिक गणनाओं, नग्न स्वार्थ और पीछे छूट गए लोगों के प्रति उपेक्षा के संयोजन से उत्पन्न होती हैं... हर बदलाव कहीं न कहीं से शुरू होना चाहिए और जहां से यह सब शुरू हुआ है, उससे बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती. हम संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को अब गंभीरता से और उद्देश्यपूर्ण तरीके से उस कार्य को पूरा करना चाहिए. इसलिए नहीं कि यह विदेशी प्रभावों की प्रतिस्पर्धा है बल्कि इसलिए कि अगर हम इसी तरह चलते रहे, तो दुनिया की स्थिति और खराब होती जाएगी..."
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, "...इस मुश्किल समय में, उम्मीद जगाना और आशावाद को फिर से जगाना ज़रूरी है. हमें यह दिखाना होगा कि बड़े बदलाव संभव हैं...जब भारत चांद पर उतरेगा, अपना 5जी स्टैक तैयार करेगा, दुनिया भर में वैक्सीन भेजेगा, फिनटेक को अपनाएगा या इतने सारे वैश्विक क्षमता केंद्र बनाएगा, तो यहां एक संदेश छिपा है. विकसित भारत या विकसित भारत के लिए हमारी खोज का बारीकी से पालन किया जाएगा. कई लोगों के पीछे छूट जाने का एक महत्वपूर्ण कारण मौजूदा वैश्वीकरण मॉडल की अनुचितता है. उत्पादन के अत्यधिक संकेन्द्रण ने कई अर्थव्यवस्थाओं को खोखला कर दिया है, जिससे उनके रोजगार और सामाजिक स्थिरता पर असर पड़ा है."
संयुक्त राष्ट्र आम जमीन खोजने के लिए केंद्रीय मंच बने
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79 वें सत्र में विदेश मंत्री डॉ जयशंकर ने कहा, "वैश्विक व्यवस्था स्वाभाविक रूप से बहुलवादी और विविधतापूर्ण है. संयुक्त राष्ट्र की शुरुआत 51 सदस्यों के साथ हुई थी, अब हम 193 हैं. दुनिया बहुत बदल गई है और इसलिए इसकी चिंताएं और अवसर भी बदल गए हैं. दोनों को संबोधित करने और व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, यह आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र आम जमीन खोजने के लिए केंद्रीय मंच बने.''
उन्होंने कहा कि, ''जब हमारे समय के प्रमुख मुद्दों पर निर्णय लेने की बात आती है तो दुनिया के बड़े हिस्से को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता. एक प्रभावी, कुशल और अधिक प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र समकालीन युग में उद्देश्य के लिए उपयुक्त और आवश्यक है। इसलिए आइए हम इस यूएनजीए सत्र से एक स्पष्ट संदेश दें, कि हम पीछे नहीं रहने के लिए दृढ़ हैं. एक साथ आकर, अनुभव साझा करके, संसाधनों को एकत्रित करके और अपने संकल्प को मजबूत करके, हम दुनिया को बेहतरी के लिए बदल सकते हैं."
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