भारत और चीन (India and China) के बीच गतिरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है. 2020 में गलवान झड़प (Galwan Clash) के बाद से यह लगातार चौथा साल है, जब बर्फीली चोटियों पर भारत और चीन की सेना आमने-सामने है. दोनों में से कोई भी सेना पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है. वहीं भारत की सेना को चीन पर भरोसा नहीं है. ऐसे में बड़ा सवाल है कि चीन और भारत के बीच यह गतिरोध कैसे खत्म होगा और इस विवाद का असली कारण क्या है. साथ ही चीन से निपटने के लिए भारत की कैसी तैयारी है. आइए जानते हैं इन्हीं सवालों के जवाब.
चीन ने 2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान में जो हरकत की थी, उससे भारत को चीन पर बिलकुल भी भरोसा नहीं है. दोनों देशों के बीच गलवान घाटी में खूनी झड़प हुई थी. इस हिंसक झड़प में 20 जवान शहीद हुए थे और भारतीय सैनिकों ने 40 से ज्यादा चीनी सैनिकों को मार गिराया था.
दोनों देशों के बीच गलवान के बाद से 20 दौर की कोर कमांडर लेवल की बातचीत हो चुकी है. बातचीत के दौरान शुरुआत में प्रगति हुई. गलवान घाटी, पेंगोंग लेक और हॉट स्प्रिंग सहित कई जगहों पर दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटीं, लेकिन अभी भी देपसांग और डेमचोक में गतिरोध बना हुआ है.
अमेरिकी के रक्षा मुख्यालय पेंटागन की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अपने इलाके में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में जुटा है. अंडर ग्राउंड शेल्टर, नई सड़क, हेलीपैड और नए रडार लगा रहा है. साथ ही चीन बॉर्डर विलेज भी बसा रहा है.
चीन को जवाब देने के लिए भारत भी सीमा पर अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में जोर-शोर से लगा है. भारत नया एयर फील्ड बना रहा है, ताकि लड़ाकू विमान टेक ऑफ कर सकें. साथ ही सड़क और पुलों का भी निर्माण किया जा रहा है, जिससे सेना की ऑपरेशनल क्षमता को बढ़ाया जा सके.
सीमा विवाद का बड़ा कारण भारत और चीन के बीच सीमा का निर्धारण नहीं होना है. दोनों देशों का अपना-अपना नजरिया है. जानकारों का कहना है कि चीन देने के बजाए लेने में यकीन रखता है.
वहीं भारत का इस विवाद को लेकर कहना है कि चीन की कथनी और करनी में फर्क है. भारत बॉर्डर पर यथा स्थिति में बदलाव की बात स्वीकार नहीं करेगा. जब तक चीन पूर्वी लद्दाख में अपनी पुरानी वाली जगह वापस नही लौटता है, तब तक संबंध बेहतर नहीं हो सकते हैं. चीन के साथ सीमा पर विश्वास तभी कायम हो सकता है जब चीन जो कहता है वह जमीन पर दिखे.
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