शिवसेना पर नियंत्रण को लेकर एकनाथ शिंदे औऱ उद्धव ठाकरे कैंप के बीच वर्चस्व की जंग तेज होती जा रही है.
एकनाथ शिंदे ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है औऱ उद्धव गुट की अर्जी को खारिज करने की मांग की. शिंदे गुट का कहना है कि 27 जून को यथास्थिति बहाल करने के लिए उद्धव खेमे द्वारा मांगी गई राहत नहीं दी जानी चाहिए - क्योंकि उद्धव पहले ही CM पद से इस्तीफा दे चुके हैं.याचिका एक ऐसे मुख्यमंत्री के तरफ के लोगो ने डाली है जिसने अपनी ही पार्टी का विश्वास खो दिया है. लोकतांत्रिक तरीके से हुए पार्टी की भीतर के विभाजन के मुद्दे पर कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए
शिंदे गुट ने कहा, लोकतंत्र के संसदीय स्वरूप में, किसी भी कार्रवाई की वैधता/अवैधता का परीक्षण करने के लिए वो गुट दबाव नहीं दे सकता जिसने खुद बहुमत को दिया हो. उद्धव ठाकरे गुटलोकतांत्रिक फैसलों को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है .वास्तव में उद्धव गुट इन याचिकाओं के माध्यम से एक लोकतांत्रिक पार्टी के सदस्यों द्वारा अपनी स्वतंत्र इच्छा से लिए गए लोकतांत्रिक निर्णयों को चुनौती देने का प्रयास कर रहा है. उद्धव गुट इस बहुमत की सरकार को अस्थिर करना चाहता है. सुप्रीम कोर्ट 3 अगस्त को सुनवाई करेगा.
एकनाथ शिंदे का कहना है कि अदालतों को आंतरिक पार्टी के फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जो बहुमत से लोकतांत्रिक तरीके से लिए गए हैं. भारत का चुनाव आयोग ही तय कर सकता है कि असली शिवसेना कौन है. न तो कोर्ट और न ही ठाकरे गुट यह तय कर सकता है. लोकतंत्र के संसदीय स्वरूप में, किसी भी कार्रवाई की वैधता/अवैधता के परीक्षण के लिए अंतर्निहित आधार 'संख्या' है.15 विधायकों का समूह 39 के समूह को बागी नहीं कह सकता.यह वास्तव में इसके विपरीत है. ठाकरे गुट द्वारा लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं.एक मुख्यमंत्री जिसने अपनी ही पार्टी का विश्वास खो दिया है उसे पद पर बने नहीं रहना चाहिए