असद अहमद कैसे हुआ ट्रैक, कितना मुश्किल था एनकाउंटर?: यूपी STF चीफ की जुबानी

उमेश पाल मर्डर केस में आरोपी गैंगस्टर अतीक अहमद के बेटे असद और एक शूटर गुलाम को यूपी एसटीएफ ने झांसी में मार गिराया है. इस एनकाउंटर को लेकर एडीजी, यूपी एसटीएफ अमिताभ यश ने तमाम सवालों के जवाब दिए.

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Asad Encounter: STF 48 दिन से लगातार असद अहमद और शूटर गुलाम को ट्रेस कर रही थी.

नई दिल्ली:

यूपी के गैंगस्टर अतीक अहमद के बेटे असद और शूटर गुलाम मोहम्मद का एनकाउंटर हो गया है. UP एसटीएफ ने गुरुवार को झांसी में पारीछा डैम के पास दोनों को मार गिराया. दोनों मेश पाल मर्डर केस में वांटेड थे और इनपर पांच-पांच लाख रुपये का इनाम था. पुलिस के मुताबिक, इनके पास विदेशी हथियार भी मिले हैं. इस पूरे मामले पर NDTV ने एडीजी यूपी एसटीएफ अमिताभ यश से खास बातचीत की. एडीजी ने कहा- "समाज में खौफ फैलाने वाले ऐसे गैंग की गलतफहमी आज दूर हो गई."

पढ़ें एडीजी यूपी एसटीएफ अमिताभ यश के साथ बातचीत के खास अंश:-

एनकाउंटर के बाद सीएम योगी ने क्या कहा?
सीएम योगी ने पुलिस और एसटीएफ की टीम को बधाई दी है. 

एनकाउंटर के बारे में
जिस प्रकार की घटना ये घटना थी. उसका पूरे देश में लाइव प्रसारण हुआ. दिन दहाड़े एक सरकारी गवाह की हत्या हुई. ऐसे गवाह जिसे यूपी पुलिस ने सुरक्षा दे रखी थी. दो दो पुलिसकर्मी हथियारों के साथ उनकी सुरक्षा में लगाए गए थे. इस गैंग ने प्लान के साथ तीनों की हत्या की. इसका संदेश बहुत ही पुअर होता, अगर हमने इन्हें जल्दी से जल्दी ट्रैक करके कानून के दायरे में नहीं लाते. हम चाह रहे थे कि उन्हें जल्द से जल्द कानून के दायरे में लाया जाए. वरना जितनी भी कार्रवाई की है, उसका असर पब्लिक के मोराल पर होना चाहिए वो डायल्यूट हो जाएगा. 

असद को कैसे ट्रैक किया?
एडीजी ने कहा, 'हमारे पास ह्यूमन और टेक्निकल दोनों के इनपुट थे. लगातार हम कोशिश कर रहे थे कि इस गैंग को पकड़ा जाए. इसके सभी सदस्यों को पकड़ा जाए. असद और गुलाम के बार में जब भी जानकारी मिलती थी, उनके साथ होने की मिलती थी. हमें भी यह भी जानकारी थी कि इनके पास विशेष हथियार हैं, जो लगातार उनके पास थे.' 

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कितना मुश्किल था एनकाउंटर?
एडीजी ने कहा, 'कई बार ऐसा हुआ कि जहां वो ठहरते थे, वहां हम पहुंचते थे. लेकिन तब तक वो वहां से वो निकल जाते थे. ये सभी ग्रुप किसी एक ठिकाने पर थोड़ी देर के लिए रुकते हैं, फिर दूसरी जगह चले जाते हैं. इसी तरीके से ये लगातार पुलिस से बच रहे थे. इनका कोर्ट में सरेंडर करने का और कानून के दायरे में लाने का कोई भी इरादा नहीं था. ऐसा होता तो ये कोर्ट में सरेंडर कर चुके होते. हमारे लिए चुनौती थी. अगर इस तरह की घटना में पुलिस का एक्शन ना हो तो हम पब्लिक का विश्वास खो दाते.' 

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एनकाउंटर पर हो रही सियासत
एडीजी यूपी एसटीएफ ने कहा, 'ऑपरेशन पर सवाल उठाया जाना नई बात नहीं है. हर एक एनकाउंटर की लेवल पर जांच होती है. मजिस्ट्रेशियल जांच होती है, मानवधिकारी आयोग जांच करता है. पुलिस जांच होती है. कोर्ट के दायरे से पुलिस जांच को गुजरना पड़ता है. इसके बाद ही किसी भी एनकाउंट को सही करार दिया जाता है. हमारा तरीका है कानून के दायरे में रहना. हम कानून के दायरे में रहकर काम करते हैं और ऐसे ही करते रहेंगे. अभी एसटीएफ के किसी भी एनकाउंटर पर सवाल नहीं उठे हैं.' 

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एनकाउंट पर सवाल उठानों वालों को संदेश
एडीजी यूपी एसटीएफ, अमिताभ यश ने कहा, 'एसटीएफ बहुत मेहनत से काम करती है. यह एक बहुत छोटी टीम है. इसमें बेहद समर्पित लोग हैं. एसटीएफ में लगातार काम करते हुए 25 साल हो गए हैं. चाहे राज्य में कोई भी सरकार रही हो, एसटीएफ अपना काम करती है. एसटीएफ की कोशिश है कि यूपी से ऑर्गनाइस्ड क्राइम पूरी तरह से खत्म हो जाए. हम इसी दिशा में काम कर रहे हैं. हमें मालूम है कि हम पर मानवाधिकार संगठनों द्वारा बहुत सारे सवाल उठाए जाएंगे. एनकाउंटर हुए लोगों के वकीलों के सवाल भी होंगे. माफिया ग्रुप भी सवाल उठाएंगे. फेक न्यूज फैलाई जाएगी. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को उकसाया जाएगा. जैसे आज हिंदू-मुस्लिम के मारे जाने की खबर फैला दी गई या उनके पकड़े जाने की खबर फैला दी गई.' 

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लीगल प्रोसेस में फंसाने की होती है कोशिश
उन्होंने कहा, 'इसके अलावा कोर्ट में हमारे खिलाफ रिट्स दाखिल किए जाते हैं. छोटे-मोटे रिट्स में पता चलता है कि बड़े से बड़े वकील खड़े हैं. हमें लीगल प्रोसेस और विवादों में फंसाने की प्रक्रिया चलती रहती है. इन सबको हैंडल करना हमारे जॉब का हिस्सा है. हमें पता है कि इसे कैसे डील करना है.'

उमेश पाल के मर्डर का मोटिव क्या था?
एडीजी यूपी एसटीएफ, अमिताभ यश ने कहा, 'गैंग्स का हमेशा एक ही मोटिव रहता है- उनका खौफ बना रहे. क्योंकि खौफ से ही उनकी वसूली होती है और धंधा चलता है. जब कृष्णानंद राय का मर्डर हुआ था, उस समय उनपर लगभग 10 एके-47 से फायर किया गया था. इस वारदात में 8 लोग मारे गए थे, जिसमें 2 पुलिसकर्मी थे. एके-47 की एक गोली किसी भी आदमी को मारने के लिए काफी है. हत्या करना तो एक बात है, उसका खौफ फैलाना बड़ी बात है. खौफ से किसी गैंग के क्राइम का असर कई गुना बढ़ जाता है. जब खौफ बढ़ता और फैलता है, तो गैंग के खिलाफ कोई नहीं बोल पाता. कोई गवाही नहीं देता. लोग वसूली भी दे देते हैं. जिन ठेकों में ऐसे गैंग घुस जाते हैं, उन ठेकों को कोई नहीं लेता. समाज में वो जो करना चाहते हैं बड़ी आसानी से कर लेते हैं. खौफ पैदा करना बड़ा मोटिव था.'

क्या खौफ फैलाने में गैंग के लोग कामयाब हो रहे थे?
एडीजी ने कहा, 'अगर उनको लगता था वो खौफ फैलाने में कामयाब हो रहे थे, तो बहुत गलतफहमी में थे. मुझे लगता है कि आज उनकी गलतफहमी दूर हो गई.'

अतीक अहमद के गाड़ी पलटने के खौफ पर क्या?
जब अतीक को साबरमती जेल से प्रयागराज लाया जा रहा था, तब उसने रास्ते में एक्सीडेंट हो जाने या गाड़ी पलट जाने का डर जाहिर किया था. इससे जुड़े एक सवाल पर एडीजी ने कहा, "मीडिया ने कई बार अतीक अहमद की गाड़ी की तस्वीरें दिखाईं. उसकी गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ भी था. एक मवेशी टकरा गया था. मीडिया ने इसे बार-बार दिखाया. गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाना कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है. अतीक अहमद तो पूरी तरह सुरक्षित है. पुलिस सुरक्षा के दायरे में है. अभी तो उसे पुलिस के सवालों के जवाब देने हैं.

क्या पुलिस काफिले पर हमले की थी साजिश?
गैंग का मोटिव 100 फीसदी क्लियर नहीं है, लेकिन इनपुट के आधार पर यह जरूर पता चला कि ये गैंग कुछ दिक्कत बढ़ाने की कोशिश कर रहा था. इस दिक्कत का मतलब कुछ भी हो सकता था. क्या असद ने फायरिंग शुरू कर दी थी? इसके जवाब में एडीजी ने कहा-'इस पूरे गैंग को लाइव देखा है. इनके करतूतों के सीसीटीवी फुटेज देखे हैं. ऐसे में अगर आपको लगता है कि ये पुलिस के सामने यूं ही सरेंडर कर देंगे, तो आप गलत हैं. आज भी इन लोगों ने पुलिस पर फायरिंग की. लेकिन आज उनका आखिरी दिन था.'

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