पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना या देखना POCSO और IT अधिनियम के तहत अपराध है? इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सोमवार को अपना फैसला सुनाएगा. 19 अप्रैल को मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. दरअसल मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि केवल किसी के व्यक्तिगत इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर बाल पोर्नोग्राफ़ी डाउनलोड करना या उसे देखना कोई अपराध नहीं है. POCSO अधिनियम और आईटी अधिनियम के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता है. मद्रास हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ NGO जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन एलायंस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.
CJI की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा था कि बच्चे का पोर्न देखना अपराध नहीं हो सकता है, लेकिन बच्चे का पोर्नोग्राफी में इस्तेमाल किया जाना अपराध होगा.
CJI ने कहा था किसी से वीडियो का मिलना POSCO धारा 15 का उल्लंघन नहीं है, लेकिन अगर आप इसे देखते है और दूसरों को भेजते हैं तो यह कानून के उल्लंघन के दायरे मे आएगा. सिर्फ इसलिए वह अपराधी नहीं हो जाता कि उसे वीडियो किसी ने भेज दिया है. पोर्नोग्राफी देखना अपराध नहीं हो सकता है, लेकिन मद्रास हाई कोर्ट कहा है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी अपराध नहीं है. बच्चों का पोर्न देखना भले ही कोई अपराध न हो, लेकिन बच्चे का पोर्नोग्राफी में इस्तेमाल किया जाना अपराध होगा.
जस्टिस पारदीवाला ने पूछा था कि क्या वीडियो को दो साल तक अपने मोबाइल फोन में रखना अपराध है?
वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का ने कहा कि अधिनियम कहता है कि यदि कोई वीडियो या फोटो है तो आपको उसे हटाना होगा, जबकि आरोपी लगातार वीडियो देख रहे थे. जब आरोपी के वकील ने वीडियो के ऑटोडाउनलोड होने की दलील दी तो CJI ने कहा कि आपको कैसे पता नहीं चलेगा कि यह वीडियो आपके फोन में है. आपको पता होना चाहिए कि अधिनियम मे संशोधन के बाद यह भी अपराध हो गया है.
वही जस्टिस पारदीवाला ने सुनवाई के दौरान पूछा कि क्या इस मामले मे आरोपी ने साइट पर वीडियो अपलोड किया था या उन्हें किसी तीसरे पक्ष ने वीडियो मुहैया कराया था? उन्होंने पूछा कि अगर उन्हें यह वीडियो अपने दोस्त से मिला है तो क्या हम कह सकते हैं कि उसने वीडियो अपलोड किया है? यह सवाल यह है कि क्या किसी के द्वारा भेजे गए चाइल्ड पोर्न को डाउनलोड करना POCSO के तहत अपराध है?