दिल्ली Vs केंद्र सरकार : अफसरों के ट्रांसफर,पोस्टिंग के अधिकार के मामले में जल्द होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार की तरफ से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी की मांग पर चीफ जस्टिस ने मामले में जल्द सुनवाई करने का आश्वासन दिया

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सुप्रीम कोर्ट.
नई दिल्ली:

दिल्ली बनाम केंद्र सरकार (Delhi Vs Central Government) का एक मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में है. इसमें कोर्ट को तय करना है कि अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार किसका है? दिल्ली सरकार की तरफ से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने मामले की जल्द सुनवाई की मांग की. चीफ जस्टिस ने सिंघवी को मामले में जल्द सुनवाई करने का आश्वासन दिया.

इससे पहले 6 मई को अफसरों के ट्रांसफर, पोस्टिंग का मामला संविधान पीठ को भेजा गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेवाओं पर पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी. तीन जजों की पीठ ने मामले को संविधान पीठ को भेजा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि पहले की संविधान पीठ ने सेवाओं के मुद्दे पर विचार नहीं किया. 

सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच का फैसला आया था. केंद्र की संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग स्वीकार कर ली गई थी. दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच इस मामले में संविधान पीठ में दूसरी बार सुनवाई होगी.  

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गत 28 अप्रैल को अदालत ने अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग यानी सेवा मामला संविधान पीठ को भेजने पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने फैसला सुरक्षित रखा था. चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने इशारा किया था कि वे मामले को पांच जजों की संविधान पीठ को भेज सकते हैं. 

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केंद्र की दलील है कि 2018 में संविधान पीठ ने सेवा मामले को छुआ नहीं था, इसलिए मामले को पांच जजों की पीठ को भेजा जाए. दिल्ली सरकार ने इसका विरोध किया था.  

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अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलों पर चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि आप लोग संविधान पीठ में इस मामले को भेजने की बात भी कर चुके हैं, तो यहां इतने लोगों की इतनी लंबी-लंबी दलीलों का क्या मतलब रह जाता है क्योंकि संविधान पीठ के सामने फिर यही सारी बातें आनी हैं. 

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दिल्ली सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने मामला संविधान पीठ को भेजे जाने का विरोध किया था. उन्होंने कहा कि पीठ के ध्यान में ये रहे कि पांच जजों की पीठ फैसला दे चुकी है. फैसला पूरा है, अधूरा है, सारे पहलू कवर करता है या नहीं, ये अलग बात है. लेकिन उस पर अगर विचार होना है तो सात जजों की बड़ी पीठ के सामने ये मामला जाना चाहिए. 

गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने मामले को संविधान पीठ भेजे जाने की केंद्र की दलील का विरोध किया था. केंद्र की दलीलों पर दिल्ली सरकार ने आपत्ति जताई थी. दिल्ली सरकार ने मामले को 5 जजों की संवैधानिक पीठ को भेजने के केंद्र के सुझाव का विरोध किया था. 

दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, केंद्र के सुझाव के अनुसार मामले को बड़ी पीठ को भेजने की जरूरत नहीं है. पिछली दो-तीन सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार इस मामले को संविधान पीठ को भेजने की दलील दे रही है. बालकृष्णन समिति की रिपोर्ट पर चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसे खारिज कर दिया गया था.

दिल्ली सरकार ने यह उस वक्त कहा था जब सीजेआई ने पूछा कि विधानसभा की शक्तियों पर पहले की पीठ ने क्या कहा था, और केंद्र के सुझाव पर दिल्ली सरकार के विचार मांगे थे. इस दौरान केंद्र ने अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर अपने अधिकार की वकालत की थी.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 239 AA की व्याख्या करते हुए कहा था कि, दिल्ली क्लास सी राज्य है. दुनिया के लिए दिल्ली को देखना, यानी भारत को देखना है. दिल्ली को भारत के रूप में देखती है दुनिया. बालकृष्ण रिपोर्ट की भी इस सिलसिले में बड़ी अहमियत है. रिफरेंस ऑर्डर के मुताबिक तीन मामलों की छोड़कर बाकी काम दिल्ली सरकार राज्यपाल को सूचित करते हुए करेगी. 

एस बालाकृष्णन की अगुआई वाली कमेटी ने दिल्ली के प्रशासन को लेकर दुनिया भर के देशों के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की प्रशासन प्रणाली की गहन तुलना का अध्ययन करके रिपोर्ट बनाई है. रिपोर्ट में प्रशासनिक सुधार और जन शिकायत निवारण के व्यावहारिक और सटीक उपाय सुझाए गए हैं. बहु प्राधिकरण, एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में दखल या अतिक्रमण को दूर किया गया है. 

चीफ जस्टिस ने पूछा था, अब सरकार विधानसभा के अधिकारों को लेकर क्या पीछे हट रही है? सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दुनिया के कई विकसित देशों मसलन जापान, अमेरिका, ब्रिटेन की राष्ट्रीय राजधानियों के प्रशासन की तरह संविधान के मुताबिक दिल्ली की विधानसभा को दिए गए अधिकारों का हवाला दिया. मेहता ने कहा, विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश होते हुए भी दिल्ली की स्थिति पुदुच्चेरी से अलग है. 

तीन विषयों को विधानसभा और दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर करने के पीछे भी बड़ी प्रशासनिक और संवैधानिक वजह है. यहां केंद्र राज्य यानी संघीय स्वरूप पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर को रोकने के लिए यह व्यवस्था की गई है. राष्ट्रीय राजधानी होने से यहां केंद्र के पास अहम मुद्दे होने जरूरी हैं. इससे राज्य और केंद्र के बीच सीधे तौर पर संघर्ष नहीं होगा. दिल्ली में पब्लिक सर्विसेज का अधिकार केंद्र के पास होना जरूरी है. पब्लिक सर्वेंट की नियुक्ति और तबादले का अधिकार केंद्र के पास होना जरूरी है, क्योंकि यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र है. इस मामले में भी पुदुच्चेरी से यहां का प्रशासनिक ढांचा अलग है. राजधानी का विशिष्ट दर्जा होने से यहां के प्रशासन पर केंद्र का विशेषाधिकार होना आवश्यक है. 

मेहता ने अपनी दलील के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का भी हवाला दिया. जस्टिस एके सीकरी के लिखे फैसले का एक हिस्सा पढ़ते हुए उन्होंने अपनी दलील दी. 

इससे पहले 12 अप्रैल को दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि सरकार विधानसभा के प्रति जवाबदेह है न कि उप राज्यपाल के प्रति, क्योंकि दिल्ली के उप राज्यपाल को भी उतने ही अधिकार हैं जितने उत्तरप्रदेश या किसी भी राज्य के राज्यपाल को.

दिल्ली में उप राज्यपाल को भी चुनी हुई सरकार की मदद और सलाह से ही काम करना होगा. केंद्र सरकार कानून बनाकर दिल्ली सरकार के संविधान प्रदत्त अधिकारों में कटौती नहीं कर सकती. दिल्ली सरकार के उठाए गए इन सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल तक केंद्र से जवाब मांगा था. पीठ ने SG तुषार मेहता से कहा था कि वे 27 अप्रैल को इस मुद्दे पर केंद्र की ओर से बहस करें.  

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (संशोधन) अधिनियम, 2021 के खिलाफ दायर याचिका पर दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की थी.

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