केंद्र सरकार की तरफ से लाए गए दिल्ली सेवा विधेयक के अनुसार दिल्ली में नौकरशाहों से संबंधित सभी नियम अब केंद्र सरकार बनाएगी. एनडीटीवी को हाथ लगे दस्तावेज के अनुसार विधेयक में कहा गया है कि केंद्र सरकार को दिल्ली में अधिकारियों के कार्यकाल, वेतन, स्थानांतरण या पोस्टिंग से संबंधित मामलों पर नियम बनाने का अधिकार इस विधेयक के तहत मिल जाएगा. केंद्र के पास अधिकारियों के खिलाफ किसी भी कार्रवाई या जांच पर निर्णय लेने की शक्ति भी होगी.
सेवाओं से संबंधित संशोधन विधेयक में 19 मई को लाए गए अध्यादेश की तुलना में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिले हैं.
धारा 3ए, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली विधानसभा के पास सेवाओं से संबंधित कानून बनाने की शक्ति नहीं होगी, उसे हटा दी गई है. प्रस्तावित विधेयक में अध्यादेश की एक अन्य धारा 45 डी के तहत प्रावधानों को कमजोर कर दिया गया है. यह अनुभाग बोर्डों, आयोगों, प्राधिकरणों और अन्य वैधानिक निकायों के लिए की गई नियुक्तियों से संबंधित था.
उपराज्यपाल की शक्तियों में होगी बढ़ोतरी
अध्यादेश ने उपराज्यपाल या राष्ट्रपति को सभी निकायों, बोर्डों और निगमों के सदस्यों या अध्यक्षों की नियुक्ति करने या नामांकित करने की विशेष शक्तियां दीं थी. विधेयक राष्ट्रपति को यह शक्ति केवल संसद के अधिनियम के माध्यम से गठित निकायों के संबंध में देता है.
उपराज्यपाल का निर्णय होगा अंतिम
मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए लोक सेवा आयोग की स्थापना की जाएगी. सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सेवाओं का नियंत्रण मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली निर्वाचित सरकार को सौंपने के एक सप्ताह बाद केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश लाया गया था. आम आदमी पार्टी ने अध्यादेश का विरोध करते हुए कहा था कि केंद्र ने दिल्ली के लोगों को "धोखा" दिया है.
केजरीवाल ने देश भर में कई नेताओं से की थी मुलाकात
केजरीवाल ने स्वयं, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ, अधिकांश गैर-भाजपा शासित राज्यों का दौरा किया था और विपक्षी नेताओं से मुलाकात की थी और कानून का विरोध करने के लिए उनका समर्थन मांगा था.
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