दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण (Delhi Ncr Air Pollution) के हालात की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर की गई है. याचिका में वायु प्रदूषण से निपटने में सरकार की "गैर-गंभीरता" का आरोप लगाया गया है. याचिका में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की अदालत द्वारा निगरानी की और आगामी सर्दियों और पराली जलाने के मौसम में हवा की गुणवत्ता खराब न हो यह सुनिश्चित करने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि वायु गुणवत्ता आयोग की निष्क्रियता से लोगों की जान को खतरा होगा. साथ ही कहा गया है कि दिल्ली-एनसीआर के लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे, जिसमें खराब AQI स्तर और कोविड दोनों के प्रभाव का सामना करना पड़ेगा.
याचका में आरोप लगाया गया है कि आयोग को किसानों के विरोध, राजनीतिक और सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है. किसानों के आंदोलन के कारण पराली जलाने पर जुर्माना और कारावास को हल्का कर दिया गया है. मामले में सुप्रीम कोर्ट अगले हफ्ते सुनवाई कर सकता है. छात्र आदित्य दुबे की याचिका में कहा गया है कि आयोग ने दिल्ली और आसपास के राज्यों की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. आयोग के गठन के बाद दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता खराब हुई है. आयोग का दफ्तर कहां है, फोन नंबर, ईमेल या वेबसाइट का नहीं पता है. पीड़ित नागरिकों के लिए आयोग से संपर्क करने का कोई रास्ता नहीं है. दरअसल, आदित्य दुबे द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग का गठन किया गया था.
अखबारों की रिपोर्टों में इसके बारे में केवल कुछ ही मौकों पर सुना गया है, जिसमें आयोग ने दावा किया कि वायु प्रदूषण को समाप्त करने के लिए दीर्घकालिक कार्रवाई की जाएगी. वास्तव में, आयोग के गठन के बाद, 2020-21 की सर्दियों के दौरान, URJA और रेस्पिरर लिविंग साइंसेज द्वारा किए गए दो अध्ययनों के अनुसार दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों की वायु गुणवत्ता पिछले साल की तुलना में और भी खराब हो गई.
आयोग के गठन के कारण, दिल्ली के वायु प्रदूषण की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई EPCA खत्म हो गई. इसलिए दिल्ली-एनसीआर के नागरिकों द्वारा सामना किए जा रहे वायु प्रदूषण संकट को हल करने के लिए ईपीसीए द्वारा किए जा रहे सीमित प्रयासों का भी अस्तित्व समाप्त हो गया है.
याचिका में कहा गया है कि दिल्ली की वायु गुणवत्ता में सुधार के प्रयासों के परिणामस्वरूप वास्तव में एक ऐसी स्थिति बन गई है, जो पहले से कहीं अधिक खराब है. अब अध्यादेश के निर्माण के लगभग एक वर्ष बीत चुके हैं और अगला पराली जलाने का मौसम और सर्दियों का मौसम बस कुछ महीने दूर है. यदि आयोग को यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल निर्देश जारी नहीं किए जाएंगे, तो आयोग की निष्क्रियता का दिल्ली और आसपास के 4 राज्यों के नागरिकों के लिए गंभीर परिणाम होंगे.
फिर से जारी अध्यादेश वायु प्रदूषण का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है. यह लाखों नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. इस प्रकार यदि इसके खिलाफ कार्रवाई राजनीतिक और सामाजिक दबाव और जन आंदोलन से प्रभावित होती है, तो इससे प्रभावी ढंग से निपटा नहीं जा सकता है.
यह भी पढ़ेंः