दिल्‍ली : सड़क बनाने के नाम पर हजार से ज्यादा पेड़ काटे, खानापूर्ति के लिए लगाए पेड़ भी सूखे

पेड़-पौधों के अस्तित्व से ही हमारा अस्तित्व है, लेकिन जब जिम्मेदार ही हमारे अस्तित्व को खत्म करने पर तुले हों तो क्या कहा जाए.

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प्रतीकात्‍मक फोटो
नई दिल्‍ली:

राजधानी दिल्ली (Delhi) में पर्यावरण का ध्यान किस तरह से रखा जा रहा है, उसकी एक बानगी छतरपुर के गौशाला रोड से लगे हुए रिज इलाके में देखने को मिली. यहां पर पेड़ ट्रांसप्लांट के नाम पर सूखे पेड़ लगे हैं और इन पेड़ों की सुध लेना वाला कोई नहीं है. दिल्ली के छतरपुर के गौशाला रोड के पास रिज इलाके में करीब 1100 पेड़ रोड बनाने के नाम पर काट दिए गए. यह रोड छतरपुर रोड से साउथ एशियन यूनिवर्सिटी होते हुए सीबीआई और सीआरपीएफ के लिए बन रही आवासीय परियोजनों को जोड़ती है.

फरवरी 2024 में सड़क के लिए रिज इलाके के इन पेड़ों को काटा गया. जिसके बाद वहां पर ट्रांसप्लांट करके करीब 150 पेड़ लगाए गए. एनडीटीवी की टीम जब मौके पर पहुंची तो देखा की लगाए पेड़ सुख चुके है. यह पेड़ ऐसे लग रहे थे, मानो उन्हें सिर्फ गड्ढा खोदकर सिर्फ गाड़ दिया गया है. जबकि पेड़ ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया होती है, जिसका पालन करके लगाए गए पेड़ जीवित रहते हैं.

क्‍या कहते हैं पर्यावरणविद् 

पर्यावरणविद दीवान सिंह एनडीटीवी को बताते है, "रिज इलाके में जो पेड़ ट्रांसप्लांट किए गए वह सही तरीके से नहीं किया गया है. क्योंकि आमतौर पर जब पेड़ ट्रांसप्लांट किया जाता है तो जहां पर पेड़ होता है उसी के नीचे से जड़े काटकर न्यूट्रिएंट लगाकर उसको पुनर्जीवित किया जाता है. जब उस पेड़ में नई पत्तियां आ जाती हैं और उसमें नई जड़ें निकलने लगती हैं, तब उसे ट्रांसप्लांट किया जाता है."

वह आगे कहते हैं कि इस मामले में जो देखने को मिल रहा है, उसमें पेड़ पर नए पत्ते नहीं आए हैं, यानी यहां पर सही से काम नहीं किया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई लताड़ 

दिल्ली विकास प्राधिकरण यानी डीडीए ने इस मामले में नियमों का पालन नहीं किया. प्राधिकरण ने पहले तो बिना अनुमति के पेड़ों को काट दिया. जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने डीडीए को लताड़ भी लगाई है, साथ ही जिन पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया गया था, उनको भी सही तरीके से नहीं लगाया गया. 

रिज इलाके में पिछले करीब 20 साल से रह रहीं 65 साल की लक्ष्मी देवी कहती हैं कि सड़क के लिए पेड़ काटने के कुछ समय पर बाद अधिकारियों ने यहां पर पेड़ों को गाड़ दिया. यह पेड़ बहुत जल्दबाजी में लगाए गए थे.

बता दें कि जिस रास्ते के लिए डीडीए ने 1100 पेड़ काटे हैं, उसी रास्ते पर लक्ष्मी देवी का एक कमरे का घर था. सरकारी जमीन पर बने उनके घर को भी तोड़ दिया गया. अब वह उसी सड़क पर जीवन यापन के लिए ठेले पर चाय बेचती हैं.

पर्यावरण के लिए अधिकारी कितने चिंतित है, यह इस लीपापोती से दिख रहा है. शायद यह सूखे पेड़ भी सरकार के आंकड़ों में नंबर बढ़ा रहे होंगे लेकिन असलियत कुछ और ही है.

क्या है पूरा विवाद?

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साल 2022 में छतरपुर रोड से सार्क विश्वविद्यालय होते हुए सीबीआई और केंद्रीय सुरक्षाबलों के लिए बन रहे आवासीय योजना से जोड़ने के लिए सड़क चौड़ीकरण को लेकर बात शुरू हुई. अगस्त 2022 में सड़क का पहला मैप बनकर तैयार हुआ. जिसके बाद अक्टूबर 2023 में इस मैप में बदलाव किया गया. फरवरी 2024 में डीडीए ने सड़क के लिए रिज इलाके के पेड़ को काट दिया.

हैरानी की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 4 मार्च 2024 के आदेश में डीडीए को पेड़ काटने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था. लेकिन उससे पहले ही पेड़ कट चुके थे.

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18 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट ने पहले इस मामले में बिना अनुमति पेड़ काटे जाने को लेकर डीडीए को अवमानना का नोटिस दिया. उसके बाद 25 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने बीआर गवाई और संदीप मेहता की बेंच ने डीडीए को नोटिस जारी किया. कोर्ट ने कहा कि पेड़ काटने की अनुमति देने से इनकार के बाद भी पेड़ काट दिए गए. इसलिए डीडीए 8 मई तक जवाब दाखिल करे कि उसके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों नहीं किया जाए.

कोर्ट ने अगली सुनवाई में डीडीए के उपाध्यक्ष सुभाशीष पांडा को सुनवाई में “व्यक्तिगत रूप से उपस्थित” रहने और क्षेत्र में आगे किसी भी पेड़ की कटाई पर रोक लगाने का निर्देश दिया.

14 मई को बेंच द्वारा पूछे जाने पर पांडा ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि रिज क्षेत्र में पेड़ों की कटाई को किसने अधिकृत किया था. उन्होंने कहा कि यह काम पूरी तरह से ठेकेदार द्वारा किया गया था और यह स्पष्ट नहीं था कि किसने ठेकेदार को पेड़ काटने के लिए अधिकृत किया था.

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26 जून को हुई सुनवाई में डीडीए उप राज्यपाल के दौरे से जुड़ी जानकारी नहीं दे पाया. जिसपर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी.

कोर्ट ने 27 जून को सुनवाई करते हुए डीडीए अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने के साथ ही दिल्ली सरकार और अन्य विभागों को 11 जुलाई तक जवाब देने को कहा था.

सवाल फिर वही है, जैसा तमाम मामलों में होता है, उसी तरह इस मामले में भी अगर सुप्रीम कोर्ट ने फटकार नहीं लगाई होती तो दिल्ली के फेफड़ों को उम्मीद की थोड़ी बहुत हवा जो मिल रही है, शायद वो भी नहीं मिलती. अगर पर्यावरण बर्बाद होगा तो उसका असर पूरी मानवता पर पड़ेगा. फिर चाहे पेड़ काटने वाले हों या उसपर राजनीति चमकाने वाले.

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