दिल्ली विधानसभा का वर्तमान कार्यकाल फरवरी 2025 तक है, यानी प्रदेश के अगले चुनाव में चार महीने से भी कम समय बचा है और इसकी झलक यहां की तेजी से बदल रहे राजनीतिक समीकरण में दिख भी रही है. आम आदमी पार्टी (AAP) के मंत्री कैलाश गहलोत का इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होना और बीजेपी (BJP) के दो बार के विधायक रहे अनिल झा और कांग्रेस के पूर्व एमएलए सुमेश शौकीन का झाड़ू थामना, बता रहा है पार्टियां ये बताने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती कि हवा का रुख उनकी तरफ है.
आम आदमी पार्टी ने महिला को मुख्यमंत्री बनाकर खेला दांव!
केजरीवाल ने अपनी जगह एक महिला को मुख्यमंत्री बनाया और इसके जरिए भी आधी आबादी के वोटबैंक को साधने की कोशिश की. आम आदमी पार्टी ने अब कैलाश गहलोत के इस्तीफे के बाद नया जाट कार्ड खेलते हुए सीएम आतिशी की कैबिनेट में रघुविंदर शौकीन को जगह दी है. साथ ही बीजेपी और कांग्रेस के पूर्व विधायकों को पार्टी में शामिल कर ये माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है कि जनता उनके साथ है और एक बार फिर से दिल्ली की गद्दी पर वो काबिज हो रहे हैं.
दिल्ली सरकार में मंत्री रहे कैलाश गहलोत बीजेपी में शामिल
इधर बीजेपी ने भी जवाबी दांव खेला और आप के बड़े नेता और दिल्ली सरकार में मंत्री रहे कैलाश गहलोत को अपनी पार्टी में शामिल कर आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका दे दिया. गहलोत ने आम आदमी पार्टी पर केंद्र के साथ लगातार लड़ाई करने और उन मूल्यों से समझौता करने का आरोप लगाया जिनकी वजह से लोग पार्टी की पसंद करते थे. गहलोत आप के प्रमुख चेहरा थे.
आप विधायक राजेन्द्र पाल गौतम ने थामा कांग्रेस का हाथ
वहीं कांग्रेस भी दूसरी पार्टी के नेताओं को अपने दल में शामिल कर रेस में बनी हुई है ये दिखाने की कोशिश कर रही है. सितंबर महीने में ही दिल्ली के पूर्व मंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक राजेन्द्र पाल गौतम ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया था. उनका आरोप था कि आम आदमी पार्टी में एससी/एसटी/ओबीसी के लोगों को नजरअंदाज किया जाता है, इसलिए मैंने कांग्रेस का दामन थामा है.
पार्टियों के दावों पर जनता की नजर
चुनाव से ऐन पहले नेताओं का दल बदल करना अब आम बात है, लेकिन देश की राजधानी दिल्ली में बड़े नेताओं का इस तरह पलायन करने को हल्के में नहीं लिया जा सकता. ये राजनीतिक माहौल में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत हो सकते हैं. चुनौतियां कई हैं, पार्टियां जोर आजमाइश में लगी हैं, चुनाव भी सिर पर है, ऐसे में वक्त ही बताएगा कि किस पार्टी का दांव सही लगा और ऊंट किस करवट बैठेगा.