रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को कहा कि देशों को बातचीत के माध्यम से समुद्री मोर्चे पर विश्वास कायम करना चाहिए. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, समुद्री लूट, आतंकवाद और मादक पदार्थों की तस्करी जैसी आम समुद्री चुनौतियों का समाधान सहयोग से किया जाना चाहिए. सिंह भारतीय नौसेना के रविवार को शुरू हुए गोवा समुद्री सम्मेलन (गोवा मेरीटाइम कॉन्क्लेव-जीएमसी) 2023 को संबोधित कर रहे थे. सम्मेलन का समापन 31 अक्टूबर को होगा.
इस साल जीएमसी का विषय ‘हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा: सामान्य समुद्री प्राथमिकताओं को सहयोगात्मक शमन ढांचे में बदलना' है. सिंह ने कहा, “हम विश्वास कैसे बनाते हैं? हम जीएमसी, संयुक्त अभ्यास, औद्योगिक सहयोग, संसाधनों के बंटवारे, अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान आदि जैसे संवादों के माध्यम से विश्वास बनाते हैं.'' उन्होंने कहा कि सहयोगी देशों के बीच विश्वास से साझा समुद्री प्राथमिकताओं में इष्टतम परिणाम प्राप्त होंगे. रक्षा मंत्री ने कहा, “चूंकि हमारे देश कई मुद्दों पर एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हैं. एक-दूसरे के साथ चर्चा और परामर्श से विश्वास बनाना संभव है.”
सिंह ने संस्कृत की कहावत 'संघे शक्ति कलियुगे' का हवाला देते हुए कहा कि वर्तमान युग में शक्ति ‘सहयोग और मिलकर चलने' में निहित है तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी सहयोगात्मक संतुलन हासिल किया जा सकता है. उन्होंने कहा, “हमारे संदर्भ में, जलवायु परिवर्तन से निपटने, समुद्री लूट, आतंकवाद, मादक पदार्थों की तस्करी और मुक्त समुद्र में अत्यधिक मछली पकड़ने जैसी आम समुद्री चुनौतियों का समाधान हम सभी को सहयोगपूर्वक ढंग से करने की आवश्यकता है.''
रक्षा मंत्री ने कहा कि क्षेत्रीय चुनौतियों को बहुराष्ट्रीय सहयोगात्मक शमन ढांचे के माध्यम से प्रबंधित किया जा सकता है. सिंह ने कहा कि अवैध और अनियमित तरीके से मछली पकड़ना क्षेत्र में संसाधनों के अत्यधिक दोहन से संबंधित एक चुनौती है. उन्होंने कहा कि इस तरह मछली पकड़ने से पारिस्थितिकी तंत्र, आर्थिक सुरक्षा और क्षेत्रीय एवं वैश्विक खाद्य सुरक्षा को खतरा है.
रक्षा मंत्री ने कहा कि मछली पकड़ने के इस तरीके को नियंत्रित करना एक सामान्य समुद्री प्राथमिकता है. उन्होंने कहा कि निगरानी डेटा के संकलन और इसे साझा करने के लिए बहुराष्ट्रीय सहयोग प्रयास, समय की जरूरत है. सिंह ने कहा, 'इससे अनियमित या धमकी भरे व्यवहार वाले तत्वों की पहचान करने में मदद मिलेगी, जिसका दृढ़ता से मुकाबला करने की आवश्यकता है.' उन्होंने कहा कि 'जलवायु गैर-जिम्मेदारी की महामारी' समाजों को खतरे में डाल देगी, और हालिया महामारी (कोविड-19) की तरह, (जलवायु महामारी के लिए) एक टीका उपलब्ध है.
सिंह ने कहा, “यह सहयोग, जलवायु जिम्मेदारी और जलवायु न्याय का एक टीका है. यदि सभी देश हरित अर्थव्यवस्था और साझा प्रौद्योगिकी में निवेश करके उत्सर्जन में कटौती करने की जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं, तो कोई कारण नहीं है कि मानवता इस समस्या से नहीं उबर सकती.'' उन्होंने कहा, ‘‘हमारे संकीर्ण तात्कालिक हित हमें अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन या अनादर करने के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन ऐसा करने से सभ्य समुद्री संबंध टूट जाएगा.''
सिंह ने कहा, “ऐसी संकीर्णता का परिणाम जंगल के कानून के रूप में निकलेगा. हमारी साझा सुरक्षा और समृद्धि को सहयोगात्मक प्रतिबद्धता एवं समुद्री नियमों का पालन किए बिना संरक्षित नहीं किया जा सकता.'' नौसेना के एक वरिष्ठ प्रवक्ता के अनुसार, इस साल जीएमसी का विषय 'हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा: सामान्य समुद्री प्राथमिकताओं को सहयोगात्मक शमन ढांचे में बदलना' है. उन्होंने कहा कि जीएमसी में भारतीय नौसेना, नौसैन्य प्रमुखों, समुद्री बलों के प्रमुखों और बांग्लादेश, कोमोरोस, इंडोनेशिया, मेडागास्कर, मलेशिया, मॉरीशस, म्यांमा, सेशेल्स, सिंगापुर, श्रीलंका और थाईलैंड सहित हिंद महासागर के तटीय क्षेत्रों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों की मेजबानी कर रही है.
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