केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि ‘संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 किसी ‘असंवैधानिकता' से ग्रसित नहीं है और ईसाई तथा इस्लाम को इस कारण बाहर रखा गया कि छुआछूत की उत्पीड़क व्यवस्था इन दोनों धर्मों में मौजूद नहीं थी. समय-समय पर संशोधित किये गये संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश,1950 में कहा गया है कि हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म को छोड़ कर अन्य धर्म मानने वाले किसी व्यक्ति को अनुसूचित जाति (एससी) का सदस्य नहीं माना जाएगा. सरकार ने SC से कहा कि उसने न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट स्वीकार नहीं की है, जिसमें दलित ईसाईयों और दलित मुस्लिमों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने की सिफारिश की गई थी क्योंकि यह त्रुटिपूर्ण थी.
सरकार ने एक याचिका पर शीर्ष न्यायालय में दाखिल एक जवाब में इन मुद्दों को रेखांकित किया. याचिका में आरोप लगाया गया है कि संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश,1950 भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और 15 (धर्म, नस्ल, जाति आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध) का उल्लंघन करता है.विषय सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति एस के कौल की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आया. पीठ में ए एस ओका और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ भी शामिल हैं.
याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन एवं अन्य की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पीठ को बताया कि केंद्र ने यह कहते हुए हलफनामा दाखिल किया कि वह इस मुद्दे की पड़ताल करने के लिए अन्य आयोग नियुक्त करना चाहता है.केंद्र ने ऐतिहासिक रूप से एससी होने का दावा करने और बाद में ‘प्रेसीडेंशियल आर्डर' में वर्णित धर्मों को छोड़ कर एक अन्य धर्म अपना लेने वाले नये लोगों को एससी का दर्जा देने की पड़ताल के लिए हाल में पूर्व प्रधान न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त किया है.भूषण ने पीठ से कहा कि सरकार ने नये आयोग से दो साल के अंदर रिपोर्ट सौंपने को कहा है.पीठ ने विषय पर याचिकाओं के समूह की सुनवाई अगले साल जनवरी के लिए निर्धारित कर दी.