प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को लेकर उनकी सरकार की आलोचना को विपक्ष की ‘‘बौद्धिक बेईमानी'' और राजनीतिक ‘‘धोखाधड़ी'' करार दिया और कहा कि नागरिकों को जो सुविधाएं दशकों पहले मिल जानी चाहिए थीं, वे सुविधाएं उन्हें दिलाने के लिए सख्त और बड़े फैसले करने की आवश्यकता है. कृषि कानूनों का मजबूती से बचाव करते हुए मोदी ने कहा कि कोई राजनीतिक दल एक वादा करे और उसे पूरा ना कर सके तो यह एक बात है लेकिन ‘‘खास तौर पर अवांछित'' और ‘‘घृणित'' बात यह है कि इनमें से कुछ दलों ने केंद्र सरकार के कृषि कानूनों की तर्ज पर ही सुधार के वादे किए थे और अब उन्होंने ‘‘यू-टर्न'' ले लिया है और ‘‘जो वादे उन्होंने किए थे, उन्हीं के बारे में वह सबसे द्वेषपूर्ण दुष्प्रचार कर रहे हैं.''
‘‘ओपन'' पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, ‘‘भारत के लोग जिन चीजों के हकदार हैं, जिन सुविधाओं को उन्हें दशकों पूर्व मिल जाना चाहिए था, वह उन तक नहीं पहुंच सकी हैं. भारत अब वैसी स्थिति में नहीं है कि वह इन सुविधाओं के लिए अब और लंबा इंतजार करे. हमें उन्हें यह देना होगा और इसके लिए बड़े फैसले लेने चाहिए. जरूरत पड़ी तो सख्त निर्णय भी किए जाने चाहिए.'' प्रधानमंत्री उनकी सरकार द्वारा लाए गए श्रम और कृषि कानूनों और किसान संगठनों की इन विवादास्पद कानूनों को वापस लेने की मांगों को सरकार द्वारा खारिज किए जाने के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब दे रहे थे. सत्ताधारी भाजपा ने कहा है कि कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों की तर्ज पर ही कृषि सुधार के वादे किए थे लेकिन स्वार्थवश राजनीतिक कारणों से वह नए कानूनों के खिलाफ प्रदर्शनों का समर्थन कर रहे हैं.
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का एक वर्ग इन कृषि कानूनों को निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानून बनाने की मांग को लेकर लगभग 10 महीने से राजधानी दिल्ली की विभिन्न सीमाओं व देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन कर रहे हैं. फिलहाल, इन कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगी हुई है. प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि उनकी सरकार शुरू से ही प्रदर्शकारी किसान संगठनों से वार्ता करने और कानूनों में आपत्ति वाले मुद्दों पर चर्चा को तैयार है. उन्होंने कहा, ‘‘इस सिलसिले में कई बैठकें भी हुई हैं लेकिन अभी तक कोई भी आपत्ति से संबंधित किसी एक विशेष मुद्दे को लेकर नहीं आया है और ना ही कहा है कि वह यह बदलाव विशेष चाहते हैं.''
मोदी ने कहा कि भारत ने राजनीति का केवल एक ही मॉडल देखा था जिसमें अगली सरकार बनाने के लिए सरकारें काम करती हैं जबकि उनकी मौलिक सोच अलग है और वह मानते हैं कि राष्ट्र निर्माण के लिए सरकारों को काम करना चाहिए. रसोई गैस वितरण, गरीबों के लिए शौचालयों का निर्माण, डिजिटल लेनदेन जैसी सरकार की योजनाओं का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के राजनीतिक श्रेणी का एक बहुत बड़ा वर्ग जनता को ‘‘राज शक्ति'' के रूप में देखता है जबकि वह इसे ‘‘जन शक्ति'' के रूप में देखते हैं. प्रधानमंत्री ने दावा किया कि भारत ने कई विकसित राष्ट्रों के मुकाबले बेहतर काम किया है. कोविड-19 के प्रबंधन को लेकर सरकार की आलोचना करने वालों पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि हमारे बीच ऐसे लोग भी है जिनके निहित स्वार्थ हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य भारत की छवि को धूमिल करना है. कोविड-19 एक वैश्विक आपदा है और इसका सभी देशों पर एक जैसा प्रभाव पड़ा है. इस परिस्थिति में नकारात्मक अभियानों को धता बताते हुए भारत ने समान और कई विकसित राष्ट्रों के मुकाबले बेहतर किया है.''
उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी से मुकाबले की सबसे बड़ी सीख यह रही है कि भारत में एकजुट होने की अद्वितीय क्षमता, साझा उद्देश्य, एकजुट होने और जरूरत पड़ने पर सबकुछ कर देने की अद्भुत क्षमता मौजूद है. उन्होंने कहा कि भारत इससे पहले तक पीपीई किट का आयात करता था लेकिन अब दुनिया के सबसे बड़े निर्माताओं में एक है. उन्होंने कहा, ‘‘कल्पना कीजिए यदि देश में टीका नहीं बनता तो क्या होता. क्या स्थिति होती? हम जानते हैं कि विश्व की एक बड़ी आबादी तक टीकों की पहुंच नहीं है. आज टीके को लेकर हमारी सफलता आत्मनिर्भर भारत की कहानी है.'' कृषि कानूनों पर प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार सीमांत किसानों को सभी प्रकार से सशक्त करने के लिए प्रतिबद्ध है. विरोधियों को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप आज किसान हितैषी कानूनों का विरोध करने वालों को देखेंगे तो आपको बौद्धिक बेईमानी और राजनीतिक धोखाधड़ी का असली मतलब पता चलेगा. यह वही लोग हैं जिन्होंने मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर वहीं करने की मांग की थी जो हमारी सरकार ने किया है. यह वही लोग हैं जिन्होंने अपने घोषणा पत्र में वही सुधार करने का वादा किया था जो हमने किए हैं.''
उन्होंने कहा, ‘‘इसके बावजूद जब जनता के आशीर्वाद से बनी सरकार उन्हीं सुधारों को लागू कर रही है तो उन्होंने यू-टर्न ले लिया है और बौद्धिक बेईमानी का प्रदर्शन किया है. किसानों को होने वाले फायदों को नजरअंदाज कर वह अपने राजनीति लाभ देख रहे हैं.'' प्रधानमंत्री ने कहा कि वह आलोचनाओं को बहुत महत्व देते हैं क्योंकि वह मानते हैं कि इससे उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिलता है. उन्होंने कहा, ‘‘बहुत ही खुले मन से मैं आलोचनाओं का सम्मान करता हूं. लेकिन दुर्भाग्यवश आलोचकों की संख्या बहुत कम है. वह अधिकतर सिर्फ आरोप लगाते हैं. इसका कारण है कि आलोचना करने के लिए लोगों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, शोध करना होता है और आज तेज गति से भागती दुनिया में हो सकता है इसके लिए उनके पास समय की कमी हो. इसलिए कभी-कभी तो मैं आलोचनाओं की कमी महसूस करता हूं.''