संशोधित IT नियमों पर अदालत का सवाल: किसी कानून में असीमित विवेकाधिकार क्या स्वीकार्य है?

अदालत ने सवाल किया कि क्या इसमें राय और संपादकीय सामग्री भी शामिल होगी. न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता या मैं यह नहीं बता सकता कि इन शब्दों की सीमाएं क्या हैं. क्या किसी कानून में इस तरह अपार और असीमित विवेकाधिकार होना कानूनी रूप से स्वीकार्य है? इन शब्दों की सीमाएं क्या हैं?’’

विज्ञापन
Read Time: 20 mins

मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने फर्जी समाचारों संबंधी सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों में हालिया संशोधन के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को सवाल किया कि किसी कानून में अपार और असीमित विवेकाधिकार देना क्या कानूनी रूप से स्वीकार्य है. न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने कहा कि इन संशोधित नियमों के कारण नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार करने से पहले उसे इन नियमों में इस्तेमाल शब्दों- ‘फर्जी, झूठे और भ्रामक' की सीमाओं के बारे में जानने की आवश्यकता है.

खंडपीठ ने हाल में संशोधित आईटी नियमों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. संशोधित नियमों के तहत, केंद्र को सोशल मीडिया पर सरकार और उसके काम-काज के खिलाफ फर्जी खबरों की पहचान करने का अधिकार है. हास्य कलाकार कुणाल कामरा, ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया' और ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स' ने संशोधित नियमों के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए इन्हें मनमाना एवं असंवैधानिक बताया है. याचिकाओं में दलील दी गई है कि संशोधित नियमों का नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर ‘खतरनाक प्रभाव' पड़ेगा.

पीठ ने शुक्रवार को कहा कि नियमों के अनुसार, जब कोई सामग्री/जानकारी फर्जी, झूठी और भ्रामक होगी तो कार्रवाई की जाएगी और प्राधिकारी को यह बताने का स्पष्ट अधिकार है कि सामग्री फर्जी है या नहीं. इस मामले में तथ्यान्वेषी इकाई (एफसीयू) को प्राधिकारी का अधिकार दिया गया है. न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘एफसीयू होना ठीक है, लेकिन हम इस एफसीयू को दिए गए अधिकार को लेकर चिंतित हैं. हमें जो अत्यधिक गंभीर लगता है, वह ‘फर्जी, झूठा और भ्रामक' जैसे शब्द हैं.''

Advertisement

अदालत ने सवाल किया कि क्या इसमें राय और संपादकीय सामग्री भी शामिल होगी. न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता या मैं यह नहीं बता सकता कि इन शब्दों की सीमाएं क्या हैं. क्या किसी कानून में इस तरह अपार और असीमित विवेकाधिकार होना कानूनी रूप से स्वीकार्य है? इन शब्दों की सीमाएं क्या हैं?''

Advertisement

केंद्र सरकार ने इस साल छह अप्रैल को, सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में कुछ संशोधनों की घोषणा की थी, जिनमें सरकार से संबंधित फर्जी, गलत या गुमराह करने वाली ऑनलाइन सामग्री की पहचान के लिए तथ्यान्वेषी इकाई का प्रावधान भी शामिल है. इन तीन याचिकाओं में अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह संशोधित नियमों को असंवैधानिक घोषित कर दे और सरकार को इन नियमों के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई न करने का निर्देश दे. केंद्र सरकार ने इससे पहले अदालत को आश्वस्त किया था कि वह 10 जुलाई तक तथ्यान्वेषी इकाई को अधिसूचित नहीं करेगी.

Advertisement
Featured Video Of The Day
Top 25 Headlines: MNS | Maharashtra | Bengal Governor | Murshidabad | Waqf Act |BJP | BJP | UP News
Topics mentioned in this article