न्यायालय ने विधवा के साथ बलात्कार, हत्या के दोषी की मौत की सजा उम्रकैद में बदला

पीठ ने कहा, ''एकान्त कारावास में कैद होने का अपीलकर्ता की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ा है. मामले के इन तथ्यों की पृष्ठभूमि में हमारे विचार में अपीलकर्ता इस बात का हकदार है कि उसे दी गयी मौत की सजा उम्रकैद में तब्दील की जाए.’’

विज्ञापन
Read Time: 16 mins
(प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने एक विधवा के साथ बलात्कार और उसकी हत्या के मामले में 1998 में एक व्यक्ति को मिली मौत की सजा को शुक्रवार को बदलकर उम्रकैद कर दिया और कहा कि वह (दोषी) करीब 10 साल तक एकांत कारावास में रहा है. शीर्ष अदालत ने कहा कि दोषी को एकांत कारावास में रखना उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है.

न्यायालय बी. ए. उमेश की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो 1998 में बेंगलुरु में एक विधवा के बलात्कार और हत्या में शामिल था. 

प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में अपीलकर्ता को निचली अदालत द्वारा 2006 में मौत की सजा सुनाई गई थी और राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका का निपटारा अंततः 12 मई, 2013 को किया गया था. इसका अर्थ है कि कानून की मंजूरी के बिना अपीलकर्ता को 2006 से 2013 तक एकान्त कारावास और अलग-थलग करके रखना इस अदालत द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के पूर्णरूपेण खिलाफ है.''

पीठ ने आगे कहा, ''मौजूदा मामले में, एकान्त कारावास की अवधि लगभग 10 वर्ष है और इसके दो तत्व हैं: पहला, 2006 से 2013 में दया याचिका के निपटारे तक; और दूसरा, इस तरह के निपटान की तारीख से 2016 तक. शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर अपीलकर्ता को दी गई मौत की सजा कम की जाती है तो न्याय का लक्ष्य पूरा होगा. 

पीठ ने कहा, ''एकान्त कारावास में कैद होने का अपीलकर्ता की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ा है. मामले के इन तथ्यों की पृष्ठभूमि में हमारे विचार में अपीलकर्ता इस बात का हकदार है कि उसे दी गयी मौत की सजा उम्रकैद में तब्दील की जाए.'' पीठ में न्यायमूर्ति एस. रवीन्द्र भट और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा भी शामिल थे.

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम उसे (अपीलकर्ता को) एक शर्त के साथ उम्रकैद की सजा सुनाते हैं कि उसे (आजीवन कारावास के तौर पर) कम से कम 30 साल की सजा भुगतनी होगी और यदि उसकी ओर से छूट के लिए कोई आवेदन पेश किया जाता है, तो 30 साल की सजा पूरी करने के बाद ही गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाएगा.''

Advertisement

दोषी की अपील पर फैसला करने में देरी के आधार के बारे में शीर्ष अदालत ने कहा कि इनमें से प्रत्येक अधिकारियों और पदाधिकारियों द्वारा लिये गए समय को 'अत्यधिक देरी' की संज्ञा नहीं दी जा सकती है और दूसरी बात, ऐसा भी नहीं था कि हर गुजरते दिन के साथ अपीलकर्ता की व्यथा में वृद्धि हो रही थी.

यह भी पढ़ें -
-- दिल्ली में 4 दिसंबर को होंगे नगर निगम के चुनाव, 7 दिसंबर को आएंगे नतीजे
-- सुप्रीम कोर्ट ने EPF को लेकर दिया बड़ा फैसला, 2014 की योजना को वैध ठहराया

Advertisement
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Featured Video Of The Day
Indian Army on India Pakistan Conflict: सेना की काउंटर अटैक की छूट | India Pak Ceasefire Updates
Topics mentioned in this article