कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा द्वारा उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियां शुरू किए जाने के बीच वरिष्ठ नेताओं का पार्टी से पलायन जारी है. इनमें वे नेता भी शामिल हैं जो पीढ़ियों से पार्टी के साथ थे. दिवंगत कांग्रेस नेता कमलापति त्रिपाठी के प्रपौत्र ललितेशपति त्रिपाठी पार्टी को अलविदा कहने वाले नए नेता हैं. इससे पहले, वरिष्ठ कांग्रेस नेता जितेंद्र प्रसाद के बेटे और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो चुके हैं. पार्टी के कुछ नेताओं ने राजनीतिक विरोधियों पर, विशेष रूप से ब्राह्मण जाति के नेताओं को पार्टी से तोड़ने का आरोप लगाया है. वहीं, कुछ अन्य नेताओं ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा है कि इन नेताओं को निकट भविष्य में पछतावा होगा.
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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ऐसे समय में पार्टी छोड़ रहे हैं जब प्रियंका गांधी 2017 के उप्र विधानसभा चुनाव में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में इसे बेहतर बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं. 2017 के चुनाव में कांग्रेस 403 सदस्यीय राज्य विधानसभा में केवल सात सीटें जीत सकी थी. कांग्रेस पहले ही घोषणा कर चुकी है कि आगामी चुनाव में वह केवल कुछ छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ गठजोड़ करेगी. पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष ललितेशपति त्रिपाठी ने बृहस्पतिवार को कहा था कि उन्होंने पार्टी के सभी पदों और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है.
त्रिपाठी ने कहा था, ‘‘जब मैं कांग्रेस के हजारों समर्पित कार्यकर्ताओं को दरकिनार और नज़रअंदाज होते हुए देखता हूँ तो बहुत तकलीफ होती है, दर्द होता है. इसलिए मैंने यह कदम उठाया है.'' उन्होंने यह भी कहा था कि उनके परिवार ने जो 100 साल से अधिक समय तक प्रतिबद्धता दिखाई, जिससे दूर जाना उनके लिए एक भावनात्मक निर्णय था, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में "जब जिन परिवारों ने पार्टी और कार्यकर्ताओं के लिए अपना खून-पसीना दिया, उनका सम्मान नहीं किया जा रहा, तो ऐसे में उनकी अंतरात्मा उन्हें किसी भी पद पर बने रहने की अनुमति नहीं देती है." बलिया के दो वरिष्ठ नेताओं शैलेंद्र सिंह और राजेश सिंह जैसे कुछ अन्य लोगों ने भी पुराने और वफादार पार्टीजनों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए हाल ही में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था.
पार्टी की मीडिया सलाहकार टीम के सदस्य द्विजेंद्र त्रिपाठी ने पीटीआई-भाषा से कहा, ''ललितेश त्रिपाठी का जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. वह अपने परिवार की चौथी पीढ़ी के नेता हैं जो नेहरू-गांधी परिवार के बहुत करीब थे और उन्हें उचित सम्मान और जिम्मेदारी मिली थी.'' हालांकि राज्य कांग्रेस के एक अन्य नेता ने नाम जाहिर न करते हुए राजनीतिक विरोधियों पर आरोप लगाया कि विधानसभा चुनाव के आते ही कुछ पार्टियां विशेष रूप से ब्राह्मण समाज के नेताओं को अपने पाले में खींच रही हैं.
उन्होंने कहा कि जितिन प्रसाद और ललितेश त्रिपाठी दोनों बड़े नाम हैं. चुनाव के समय उनके अलग होने का एक अर्थ है. पार्टी नेतृत्व को बहुत सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि विरोधी अभी भी शिकार की ताक में हैं. वहीं, एक अन्य नेता ने कहा कि जिन नेताओं को पार्टी में सबकुछ मिला, वे अब चुनाव नजदीक होने के कारण अन्य पार्टियों में बेहतर संभावनाओं की तलाश में भाग रहे हैं. उन्होंने जितिन प्रसाद के मामले की ओर इशारा करते हुए कहा कि जब उन्हें उतना सम्मान नहीं मिलेगा, जितना उन्हें यहां मिला था, तो उन्हें पछतावा होगा. दूसरी ओर, निष्कासित कांग्रेस नेता और पूर्व विधान परिषद सदस्य सिराज मेहदी ने कहा कि यह प्रवृत्ति पार्टी में असंतोष को दर्शाती है और यह केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है.
मेहदी उन 11 वरिष्ठ नेताओं में शामिल हैं जिन्हें पार्टी की छवि खराब करने और सार्वजनिक मंचों पर इसके नेतृत्व के फैसलों का विरोध करने के आरोप में 2019 में छह साल की अवधि के लिए निष्कासित कर दिया गया था. पार्टी की महिला शाखा की प्रमुख सुष्मिता देव और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का उदाहरण देते हुए मेहदी ने कहा कि हाल के दिनों में दोनों ने पार्टी में खुद को अपमानित महसूस किया है. उन्होंने कहा कि वह जल्द ही अमरिंदर सिंह और पार्टी के अन्य नेताओं को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश का दौरा करने और पार्टी के गौरव को बहाल करने में मदद करने के लिए आमंत्रित करेंगे.