NDTV Expaliner: फैक्टरी में बनेंगी सड़कें! चौंकिए नहीं, नए भारत का पूरा 'रोडमैप' समझिए

सड़क बनाने पर खर्च किया गया एक रुपया अर्थव्यवस्था में ढाई रुपये का रिटर्न देता है. यानी ढाई गुना बनकर लौटता है. अर्थशास्त्र में इसे मल्टीप्लायर इफेक्ट कहा जाता है. आईआईएम बैंगलोर का ताजा अध्ययन तो कहता है कि भारत में सड़कों पर खर्च किया गया एक रुपया जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद के विकास में 3.21 रुपए के तौर पर वापस आया है.

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नई दिल्ली:

किसी भी देश का तब तक मुकम्मल विकास नहीं हो सकता जब तक उसका बुनियादी ढांचा बेहतर न हो जाए. बुनियादी ढांचे में कई चीजें आती हैं. रेल, सड़क, एयरपोर्ट, बंदरगाह, ऊर्जा, पानी सप्लाई, टेलीकॉम वगैरह-वगैरह. यानी कुछ भी जिससे अर्थव्यवस्था का काम और सुगम, सुचारू और तेज हो जाए. इनमें सड़कों का एक खास स्थान है, क्योंकि उससे ज़्यादा आवाजाही किसी और रास्ते नहीं हो सकती. इसीलिए सबसे पहला काम सड़कों को बेहतर बनाने पर किया जाता है, ताकि शहर, गांव, दूर दराज़ के इलाकों को आपस में जोड़ा जा सके, जिससे लोगों के आने जाने के साथ ही सामान वगैरह को लाना ले जाना भी आसान हो सके.

परिवहन की लागत 3% कम हुई
जानकारों का अनुमान है कि सड़क बनाने पर खर्च किया गया एक रुपया अर्थव्यवस्था में ढाई रुपये का रिटर्न देता है. यानी ढाई गुना बनकर लौटता है. अर्थशास्त्र में इसे मल्टीप्लायर इफेक्ट कहा जाता है. आईआईएम बैंगलोर का ताजा अध्ययन तो कहता है कि भारत में सड़कों पर खर्च किया गया एक रुपया जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद के विकास में 3.21 रुपए के तौर पर वापस आया है. 2013 से 2022 के बीच किए गए इस अध्ययन से ये बात भी सामने आई कि देश में नेशनल हाइवे के विकास से परिवारों की आय में 9%, परिवार के खर्च में 6% और कारों की बिक्री में 10.4% की तेज़ी आई है. इससे परिवहन की लागत 3% कम हुई है, सप्लाई चेन बेहतर हुई है, कृषि क्षेत्र और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों यानी MSME सेक्टर को बढ़ावा मिला है.

भारत सरकार देश में हाइवे के निर्माण पर पूरा जोर लगा रही है और उसमें अत्याधुनिक टैक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की स्वाभाविक दिलचस्पी इस दिशा में देश को तेजी से आगे ले जा रही है. नितिन गडकरी हाइवे निर्माण में दुनिया की आधुनितम तकनीक भारत में लेकर आए हैं और अब मलेशियाई में विकसित एक टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी हाइवे निर्माण में किया जा रहा है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक इस टैक्नोलॉजी के इस्तेमाल से मेट्रो के दो पिलर्स के बीच की दूरी 120 मीटर की जा सकेगी. अभी मेट्रो के दो पिलर्स के बीच की दूरी अधिकतम 30 मीटर होती है. गडकरी के मुताबिक मलेशियाई टैक्नोलॉजी के इस्तेमाल से अब फ़्लाईओवर के ऊपर फ़्लाईओवर बनाए जा सकेंगे, जिन पर मेट्रो चल सकती है. इससे न सिर्फ़ पैसे की बचत होगी बल्कि ट्रैफ़िक सिस्टम भी बेहतर होगा.

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अब मलेशियाई टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल
मलेशियाई टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल चेन्नई मेट्रो प्रोजेक्ट में किया गया है जिससे अरबों रुपए की बचत हुई है. महाराष्ट्र के नागपुर में इस टैक्नोलॉजी से फ़्लाईओवरों का निर्माण पहले ही शुरू हो चुका है. नागपुर में इंदोरा-दिघोरी प्रोजेक्ट के तहत NHAI दो फ़्लाईओवरों का निर्माण कर रहा है. पहला फ़्लाईओवर कमाल स्क्लेयर से रेशमीबाग स्क्वेयर के बीच बन रहा है और दूसरा भांडे प्लॉट स्क्वेयर से दिघोरी के बीच बन रहा है. इनके निर्माण के लिए मलेशियाई टैक्नोलॉजी के तहत Ultra High Performance Fiber Reinforced Concrete का इस्तेमाल किया जाता है जो ज़्यादा मज़बूत होता है और उसकी लागत भी कम पड़ती है. इस टैक्नोलॉजी के इस्तेमाल से फ़्लाइओवरों के स्पैन की मोटाई कम हो सकती है. इस कारण उन्हें लंबा बनाया जा सकता है. लेकिन इससे उनकी मज़बूती कम नहीं होती, बल्कि आम तौर पर इस्तेमाल होने वाली कंक्रीट से ज़्यादा ही होती है. इस टैक्नोलॉजी का फ़ायदा ये होगा कि दो पिलर्स के बीच 120 मीटर तक की दूरी रखी जा सकेगी. इससे व्यस्त जगहों पर पिलर्स बनाने से बचा जा सकेगा, जिससे जगह भी कम घिरेगी. मलेशियाई टैक्नोलॉजी से अभी कमल स्क्वेयर से रेशमीबाग स्क्वेयर के बीच दो पिलर्स के बीच 60 मीटर लंबे स्पैन बनाए जा रहे हैं, जबकि भांडे प्लॉट से दिघोरी के बीच दो जगहों पर दो पिलर्स के बीच 90 मीटर लंबे स्पैन बनाए जा रहे हैं.

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इस टैक्नोलॉजी को बाकी जगह भी इस्तेमाल किये जाने की तैयारी है. हाइवे निर्माण में तेजी लाने के लिए सड़क परिहवन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बताया कि सड़कों से जुड़ा एक बड़ा हिस्सा अब पहले ही फैक्टरियों में तैयार किया जाएगा. इसके तहत सिर्फ सड़कों का कंक्रीट मिक्स हिस्सा ही कंस्ट्रक्शन साइट पर बनेगा. इसके अलावा सड़कों का बाकी हिस्सा जैसे प्री कास्ट ड्रेन वगैरह फैक्टरियों में तैयार किए जाएंगे. फैक्टरियों में तैयार होने के कारण वो तेजी से बनेंगे, बेहतर गुणवत्ता के होंगे और उनके निर्माण में लागत भी कम आएगी. इससे पर्यावरण प्रदूषण भी कम किया जा सकेगा. उन्हें सीधे साइट पर लाकर सड़कों पर इस्तेमाल किया जा सकेगा.

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नितिन गडकरी का क्या है लक्ष्य?
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक उनका लक्ष्य है कि देश में हाइवे निर्माण की गति बढ़ाकर प्रति दिन 100 किलोमीटर कर दी जाए. यानी हर रोज़ औसतन सौ किलोमीटर सड़कों का निर्माण. अभी तक सबसे तेज़ी से सड़क निर्माण 2020-21 में हुआ है जब हर रोज़ 37 किलोमीटर सड़कें बन रही थीं.

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बीते पांच साल में कितनी सड़के बनी

  • 2020-21 में 13,435 किलोमीटर सड़कें बनाई गईं यानी क़रीब 37 किलोमीटर प्रति दिन
  • 2021-22 में 10,457 किलोमीटर सड़कें तैयार हुईं यानी क़रीब 28.6 किलोमीटर प्रति दिन
  •  2022-23 में 10,331 किलोमीटर सड़कें तैयार हुईं यानी क़रीब 28.3 किलोमीटर प्रति दिन
  •  2023-24 में 12,349 किलोमीटर सड़कें बनीं यानी क़रीब 34 किलोमीटर प्रति दिन

हालांकि, बीते साल 2024-25 में हाइवे निर्माण की गति धीमी हुई है क्योंकि आम चुनावों के कारण आदर्श आचार संहिता लगने से कई जगह काम में देरी हुई. नितिन गडकरी के मुताबिक मोदी सरकार के आने के बाद से नेशनल हाइवे का नेटवर्क बहुत ही तेज़ी से आगे बढ़ा है और आज भारत का सड़क नेटवर्क दुनिया में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है. गडकरी का दावा है कि अगले डेढ़ साल में भारत का हाइवे नेटवर्क अमेरिका से बड़ा हो जाएगा.

मार्च 2014 में 91,287 किलोमीटर नेशनल हाइवे था जो अब 1,46,204 किलोमीटर हो चुका है. इसका मतलब है कि 55 हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा हाइवे नेटवर्क मोदी सरकार के दौर में तैयार हुआ है, उससे पहले के हाइवे से 60% ज़्यादा. चार लेन वाली हाइवे की लंबाई ढाई गुना हुई है. दो लेन वाली पेव्ड शोल्डर वाली हाइवे की लंबाई 1.8 गुना ज़्यादा हुई है.. पेव्ड शोल्डर का मतलब है हाइवे के किनारे कई जगहों पर अतिरिक्त चौड़ी सड़कें जहां गाड़ियों को आपात स्थिति में रुकना पड़े या फिर कुछ जगहों पर उनका इस्तेमाल साइकिल चलाने या पैदल चालकों द्वारा किया जा सके.

इसके अलावा दो लेन वाली हाइवे अब पहले से क़रीब आधी ही रह गई हैं. अधिकतर को ज़्यादा चौड़ा किया जा चुका है. इसका मतलब ये है कि कुल हाइवे में दो लेन वाली हाइवे अब सिर्फ़ 10% रह गई हैं जबकि 2014 तक ये 30% थीं. नेशनल हाई स्पीड कोरिडोर भी तेज़ी से बढ़े हैं. 2014 में देश में 93 किलोमीटर हाई स्पीड कोरिडोर थे जो 2024 तक 2,474 किलोमीटर हो गए.

नितिन गडकरी के मुताबिक सड़क परिहवन मंत्रालय आने वाले सालों में देश में 25 हज़ार किलोमीटर टूलेन और फोर लेन हाइवे बनाने जा रहा है. इसके लिए पैसे की कमी नहीं है. देश में अभी 57 हाइवे परियोजनाओं पर काम चल रहा है. अगले दो साल में देश में हाइवे को बेहतर करने में 10 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा.

केन्द्रीय मंत्री गडकरी के अनुसार, पूर्वी राज्यों में सड़क नेटवर्क को बेहतर करने के लिए बड़े पैमाने पर काम चल रहा है. इन राज्यों में 784 हाइवे प्रोजेक्ट्स पर काम हो रहा है, जिनकी कुल लागत 3,73,484 करोड़ रुपये है और इनसे 21,355 किलोमीटर सड़कें बनेंगी.

पूर्वी राज्यों में हाइवे प्रोजेक्ट्स की स्थिति:

  •  बिहार: 90 हज़ार करोड़ रुपये की लागत वाले हाइवे प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है
  • पश्चिम बंगाल: 42 हज़ार करोड़ रुपये की लागत वाले हाइवे प्रोजेक्ट्स पर काम हो रहा है
  • झारखंड: 53 हज़ार करोड़ रुपये की लागत वाले हाइवे प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है
  • ओडिशा: 58 हज़ार करोड़ रुपये की लागत वाले हाइवे प्रोजेक्ट्स पर काम हो रहा है
  • असम: 57,696 करोड़ रुपये की लागत वाले हाइवे प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है

देश में हाइवे निर्माण के तहत पूर्व में नेशनल हाईवे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट यानी NHDP के तहत काम हुआ, जिसमें गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल और नॉर्थ साउथ- ईस्ट-वेस्ट कोरिडोर बनाए गए. मोदी सरकार ने अक्टूबर 2017 में भारतमाला परियोजना को मंज़ूरी दी और 2018 में NHDP प्रोजेक्ट को बंद कर दिया. NHDP की क़रीब 10 हज़ार किलोमीटर की परियोजना को भारतमाला में शामिल कर लिया गया. भारतमाला प्रोजेक्ट को दुनिया में हाइवे का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट कहा जा रहा है जिसका मक़सद देश में कनेक्टिविटी को और बेहतर करना है. इसके तहत तमाम औद्योगिक केंद्रों को भी आपस में जोड़ा जा रहा है. बंदरगाहों, हवाईअड्डों के साथ हाइवे संपर्क बेहतर किया जा रहा है. आदिवासी इलाकों, उभरते और नक्सल प्रभावित ज़िलों के बीच भी हाइवे संपर्क बढ़ाना है. गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल और नॉर्थ साउथ- ईस्ट-वेस्ट कोरिडोर के कई सिरों को आपस में जोड़ना है.

मंत्रालय की 2024-25 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक भारतमाला परियोजना के पहले चरण के तहत देश के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 550 ज़िलों से होकर 34,800 किलोमीटर नेशनल हाइवे बनाने की योजना है. इसमें से 26,425 किलोमीटर लंबाई की सड़कों पर काम शुरू हुआ, जिनमें से 19,201 किलोमीटर हाइवे तैयार हो चुका है. यानी भारतमाला परियोजना के पहले चरण का 55% पूरा हो चुका है. भारत माला परियोजना के पहले चरण के तहत 25 ग्रीनफील्ड हाई स्पीड कोरिडोर बनाए जाने हैं जिनमें से 20 ग्रीनफील्ड हाई स्पीड कोरिडोर या तो पूरे हो चुके हैं या निर्माण के अलग अलग चरणों में हैं. कई जगहों पर जहां काम पूरा नहीं हुआ है वहां ज़मीन अधिग्रहण या पर्यावरण से जुड़ी मंज़ूरी जैसे मुद्दों के कारण देरी हुई है जिससे लागत काफ़ी बढ़ गई है.

देश में हाइवे निर्माण का एक मकसद सड़क दुर्घटनाओं को कम करना भी है, जिस पर सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का खास ध्यान रहता है. इसकी वजह ये है कि दुनिया में सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज़्यादा लोग भारत में मारे जाते हैं. इस सिलसिले में ड्राइवर एज्युकेशन से जुड़ी एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी Zutobi ने अपनी मार्च महीने में अपनी सालाना रिपोर्ट जारी की.

रिपोर्ट में ड्राइविंग के लिए सबसे बेहतर और सबसे ख़तरनाक देशों की लिस्ट तैयार की गई. 53 देशों का सर्वे किया गया और इनमें ड्राइविंग के लिए सबसे खतरनाक देश के तौर पर भारत 49वें स्थान पर है. यानी पीछे से पांचवें स्थान पर. ड्राइविंग के लिहाज से सबसे ख़तरनाक देश दक्षिण अफ्रीका पाया गया है जो लगातार दूसरे साल सबसे खतरनाक माना गया है. अमेरिका इस मामले में भारत से भी खराब स्थिति में है. अमेरिका को 53 देशों में 51वां स्थान मिला है. यानी वहां की सड़कों पर भी ड्राइविंग सबसे खतरनाक मानी गई है. ड्राइविंग के लिहाज से सबसे खतरनाक पांच देशों में बाकी दो देश हैं- थाइलैंड और अर्जेंटीना.

Zutobi.com का सर्वे भी इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि भारत में सड़कों पर चलना काफी ख़तरनाक है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक भारत में गैर इरादतन चोटों से मौत के लिए सड़क दुर्घटनाएं सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. करीब 43.7% लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. इसके बाद दूसरा स्थान डूबने से हुई मौतों का आता है जो 7.3 से लेकर 9.1% तक है. इसके बाद जलने से 6.8% लोगों की मौत होती है. ज़हर से 5.6% की मौत होती है और 4.2 से लेकर 5.5% तक लोग गिरने से जान गंवाते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने National Strategy for prevention of unintentional injury नाम से ये रिपोर्ट तैयार की जो पिछले साल सितंबर में चोट से बचाव और सुरक्षा को बढ़ावा के मुद्दे पर 15वीं विश्व कॉन्फ्रेंस में पेश की गई.

रिपोर्ट के मुताबिक सड़कों पर मौत के मामले में 75.2% मौत ओवर स्पीडिंग के कारण होती हैं. 5.8% ग़लत दिशा में गाड़ी चलाने से और 2.5% मौत शराब या ड्रग्स के नशे में गाड़ी चलाने से. नेशनल हाइवे जो पूरे देश में सड़कों के नेटवर्क का महज 2.1% है, उसमें सड़क दुर्घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं. साल 2022 में नेशनल हाइवे पर प्रति 100 किलोमीटर पर 45 जानें सड़क दुर्घटनाओं में गईं.

अगर सड़क हादसों में दुनिया के मुकाबले भारत की स्थिति देखें तो समझ में आता है कि भारत में हालात कितने गंभीर हैं. वर्ल्ड बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में दुनिया के कुल वाहनों के महज 1% वाहन हैं. लेकिन दुनिया की कुल सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौत की 11% मौत भारत में होती हैं.

अगर पिछले कुछ वर्षों में हुई सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों को देखें तो 2023 में 4 लाख 80 हज़ार से ज़्यादा सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1 लाख 72 हज़ार लोगों की मौत हुईं.. 2022 में 4.61 लाख से अधिक सड़क दुर्घटनाएं हुई थीं, जिनमें 1 लाख 68 हज़ार लोगों ने जान गंवाईं. 2022 के मुक़ाबले 2023 में दुर्घटनाओं की तादाद 4.2% बढ़ीं और मौत 2.6% बढ़ीं.

2023 में भारत में हर रोज़ औसतन 1317 सड़क दुर्घटनाएं हुईं. 474 लोग हर रोज़ मारे गए. हर घंटे 55 दुर्घटनाएं और 20 मौतें. यानी हर तीन मिनट पर एक मौत. स्कूल कॉलेजों के आसपास 35 हज़ार दुर्घटनाएं हुईं और 10 हज़ार मौत हुईं.

 ये आंकड़े बताते हैं कि सड़कों का निर्माण इस तरह से हो कि सड़क दुर्घटनाएं कम से कम की जा सकें. इसके लिए सड़कों के डिजाइन में भी जरूरी बदलाव करने होते हैं. सड़कों के निर्माण का काम बहुत खर्चीला होता है. लोगों को बेहतर सड़कें मिलें जिनमें वो तेज रफ़्तार से बिना रुके सुरक्षित आगे जा सकें. इसके लिए नेशनल हाइवे और एक्सप्रेस वे बनाई गईं. लेकिन इस सुविधा के एवज में यात्रियों से इसका खर्च वसूला जाता है टोल टैक्स के जरिए.

टोल नाकों पर अक्सर भारी जाम लग जाता है. अगर एक भी गाड़ी को थोड़ा समय लग जाए. उसका फास्टैग रीड करने में कैमरे को देरी लग रही हो या फिर कोई फास्टैग न होने या एक्सपायर होने या ब्लैकलिस्ट होने के कारण कैश में पैसा दे रहा हो तो उसमें समय लग जाता है और तब तक पीछे गाड़ियों की लंबी कतार लग जाती है. इस दौरान धैर्य की कमी दिखाते हुए कई लोग हॉर्न बजाने में परहेज नहीं करते. कई बार ट्रैफिक बहुत ज़्यादा होने के कारण भी टोल नाकों पर गाड़ियों की लंबी लाइन लग जाती हैं और इससे यात्रियों का समय भी ख़राब होता है. कई लोग टोल बूथ पर बैठे कर्मचारियों से झगड़ने लगते हैं, क्योंकि वो टोल देने से बचने की कोशिश करते हैं. लेकिन सड़क परिवहन मंत्रालय अब नई टोल नीति के जरिए इसका जल्द ही हल निकालने जा रहा है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एलान किया है कि नई टोल नीति अगले महीने तक आ जाएगी, इस नीति के तहत physical booths यानी जिस तरह के बूथ अभी आप देखते हैं जहां आप टोल देते हैं या फास्टैग से टोल कटता है वो खत्म हो जाएंगी. गाड़ियों को टोल देने के लिए रुकना नहीं पड़ेगा. वो बिना रूके आगे बढ़ जाएंगी. लेकिन टोल फिर भी कटेगा वो भी ऑटोमैटिकली यानी खुद ब खुद आपके एकाउंट से. ये काम होगा सैटलाइट ट्रैकिंग और नंबर प्लेट की पहचान से. इसके लिए फिजिकल टोल बूथ्स की ज़रूरत नहीं रहेगी.

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