रुपये की गिरती कीमत को लेकर कांग्रेस ने PM मोदी पर कसा तंज, कहा- 'मार्गदर्शक मंडल की उम्र तक भी जाएगा'

सुरजेवाला ने कहा, " मोदी सरकार हर रोज 4,000 करोड़ रुपये का कर्ज लेती है. देश के हर नागरिक पर एक लाख रुपये का कर्ज है. महंगाई ने आम जनजीवन नर्क बना दिया है."

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कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला
नई दिल्ली:

रुपये की गिरती कीमत को लेकर देश में विवाद जारी है. अंतरराष्ट्रीय बजार अन्य मुद्राओं से मुकाबले रुपये की तेजी से नीचे आती कीमत को लेकर विपक्ष केंद्र की बीजेपी सरकार पर हमलावर है. इसी क्रम में गुरुवार को कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पीएम मोदी पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा, " गिरता रुपया मोदी सरकार की साख की तरह है. वो पीएम मोदी की उम्र तो पार कर ही चुका है. लेकिन जिस तेजी से गिर रहा है, वो जल्द ही मार्गदर्शक मंडल के लिए तय उम्र की सीमा भी पार कर लेगा." 

कांग्रेस नेता ने कहा, " देश में बढ़ती आर्थिक असमानता के चलते 142 सबसे बड़े अमीरों की सम्पति तो एक साल में 30 लाख करोड़ रुपये बढ़ गई पर देश के 84 प्रतिशत घरों की आय घट गई. 15 लाख हर खाते में आना तो दूर, बचत का पैसा भी लुट गया. गर्त में गिरती अर्थव्यवस्था के चलते एक अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले हमारे रुपये की कीमत गिर कर 77.56 हो गई, जो 75 साल में सबसे बड़ी गिरावट है. दूसरी ओर देश का कर्ज जो साल 2014 में 55 लाख करोड़ रुपये था वो उससे बढ़ कर साल 2022 में 135 लाख करोड़ हो गया."

सुरजेवाला ने कहा, " मोदी सरकार हर रोज 4,000 करोड़ रुपये का कर्ज लेती है. देश के हर नागरिक पर एक लाख रुपये का कर्ज है. महंगाई ने आम जनजीवन नर्क बना दिया है. साल 2014 में 410 रुपये में मिलने वाला रसोई गैस सिलेंडर अब एक हजार का हो गया, पेट्रोल 71 रुपये लीटर पर था, आज 105.41 रुपये लीटर हो गया, डीज़ल 56 से 95.87 रुपये प्रति लीटर पहुंच गया. अकेले पेट्रोल-डीजल पर टैक्स लगा मोदी सरकार ने तो 27 लाख करोड़ रुपये कमाए, पर जनता को क्या मिला?"

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उन्होंने कहा कि यही हाल आटा, दाल, खाने का तेल, सब्जी, साबुन, टूथपेस्ट, टीवी, फ्रिज और रोज जरूरत की हर वस्तु का है. देश में बेरोज़गारी की दर आठ प्रतिशत से अधिक है. भारत सरकार, सरकारी उपक्रमों व प्रांतीय सरकारों में मिलाकर 30 लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हैं. सेनाओं में 2,55,000 पद खाली हैं. निजी क्षेत्र में लघु और छोटे उद्योग तालाबंदी की कगार पर हैं. दो करोड़ रोजगार हर साल देना तो दूर, करोड़ों रोजगार चले गए हैं.

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