फिर क्यों तेज हो गई है लोकसभा उपाध्यक्ष का चुनाव कराने की मांग, क्या कहता है सदन का नंबर गेम

लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद 17वीं लोकसभा से ही रिक्त चल रहा है. आइए जानते हैं कि इस पद सत्ता पक्ष और विपक्ष में क्यों हो रही है रस्साकशी.

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नई दिल्ली:

नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा कर लिया है. इसके साथ ही लोकसभा उपाध्यक्ष चुनाव की मांग एक बार फिर तेज होने लगी है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर लोकसभा उपाध्यक्ष का चुनाव जल्द से जल्द कराने की मांग की है.उन्होंने पद के खाली रहने को संविधान के खिलाफ बताया है. यह पद 17वीं लोकसभा से ही खाली पड़ा है. 

मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने पत्र में क्या लिखा है

कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने अपने पत्र में इस तरफ ध्यान दिलाया है. उन्होंने लिखा है कि पहली से लेकर 16वीं लोकसभा तक में उपाध्यक्ष चुना जाता रहा है. सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी को यह पद देने की परंपरा रही है. लेकिन स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार यह पद लगातार दो लोकसभा कार्यकाल से खाली है. 17वीं लोकसभा के दौरान कोई उपाध्यक्ष नहीं चुना गया था. यह चिंताजनक मिसाल मौजूदा 18 लोकसभा में भी जारी है.खरगे ने लिखा है कि संविधान के अनुच्छेद 93 में लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों के चुनाव का प्रावधान है. संवैधानिक रूप से उपाध्यक्ष, अध्यक्ष के बाद सदन का दूसरा सबसे बड़ा पीठासीन अधिकारी होता है.कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है कि लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद खाली रहना भारत की लोकतांत्रिक राजनीति के लिए शुभ संकेत नहीं है. यह संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है. कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री से बिना देर किए इस पद पर चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने की अपील की है. 

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पिछले साल 18वीं लोकसभा के गठन के साथ ही लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कराया गया था.इस पद पर आमतौर पर चुनाव की नौबत नहीं आती है. लेकिन लोकसभा उपाध्यक्ष पद पर सरकार की ओर से कोई आश्वासन न मिलने के बाद विपक्ष ने अध्यक्ष पद के चुनाव में अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया था. केरल से कांग्रेस सांसद कोडिकुन्निल सुरेश विपक्ष के उम्मीदवार थे. यह एक औपचारिक चुनाव था, क्योंकि विपक्ष के पास संख्याबल नहीं था. इस चुनाव में बीजेपी ने ओम बिरला अध्यक्ष चुने गए थे. 

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भारतीय संसद में यह चौथा मौका था, जब लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए मतदान कराना पड़ा था. इससे पहले 1952, 1967 और 1976 में लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराए गए थे. इनके अतिरिक्त हर बार सत्ता पक्ष और विपक्ष में इस पद के लिए सहमति बन जाती थी.लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव तो हो गया, लेकिन लोकसभा उपाध्यक्ष का पद का चुनाव अब तक नहीं पाया हैं. यह पद विपक्ष को मिलने की परंपरा रही है. लेकिन मोदी सरकार ने इसका पालन नहीं किया. इससे पहले 2019 में 17वीं लोकसभा में भी यह पद खाली रह गया था. उससे पहले 2014 में चुनी गई 16वीं लोकसभा में एआईएडीएमके के के थंबीदुरई लोकसभा के उपाध्यक्ष थे.

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लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद

अब तक लोकसभा के 14 उपाध्यक्ष रह चुके हैं. यह पद विपक्ष को देने की परंपरा इसलिए रही ताकि संसद में संतुलन और निष्पक्षता बनी रहे.लेकिन ऐसी कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है. पिछली लोकसभा में कांग्रेस के पास 55 सदस्य थे. यह संख्या लोकसभा में नेता विपक्ष के लिए जरूरी संख्याबल से कम थी. इसलिए सरकार ने उसे उपाध्यक्ष का पद भी नहीं दिया. लेकिन इस बार कांग्रेस के पास 99 सदस्य हैं, इसके बाद भी सरकार ने अभी लोकसभा उपाध्यक्ष पद पर चुनाव नहीं कराया है. 

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18वीं लोकसभा में बीजेपी के 240 सीटें हैं. उसे जेडीयू, तेदपा समेत कई और दलों का समर्थन हासिल है. इस तरह उसके पास सदन में 293 सदस्यों का समर्थन हासिल है. वहीं इंडिया गठबंधन बनाकर 18वीं लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले विपक्ष अब बिखरता हुआ नजर आ रहा है. विपक्ष में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है, जिसके पास 99 सदस्य हैं. वहीं सदन में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी के पास 37 सदस्य हैं. इस तरह सदन में अभी भी पड़ला सत्ता पक्ष का ही भारी है.

संविधान में लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव की व्यवस्था अनुच्छेद 93 में दी गई है. यह कहता है कि लोकसभा के सदस्य अपने दो सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनेंगे. अगर इन दोनों में से कोई भी पद रिक्त होता है तो सदन उसका जल्द से जल्द फिर चुनाव करेगा. इसमें यह नहीं बताया गया है कि चुनाव कितनी समय में करा लिया जाना चाहिए.इसे देखते हुए ही सरकार लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव नहीं करा रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार विपक्ष को सदन में और ताकतवर नहीं बनाना चाहती है. 

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