- राहुल गांधी ने कर्नाटक में मतदाता सूची में हेराफेरी और वोट चोरी के गंभीर आरोप लगाए थे
- पूर्व केंद्रीय मंत्री सी.एम. इब्राहिम ने सिद्धरमैया पर 2018 में 3000 वोट खरीदने का आरोप लगाया है
- सिद्धरमैया की जीत का अंतर 1696 वोट था जबकि NOTA को 2007 वोट मिले थे. अब इस पर विवाद की शुरुआत हो गई है
कर्नाटक की राजनीति इन दिनों आरोप-प्रत्यारोप के तूफान में घिरी है. राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले बेंगलुरु में आकर मतदाता सूची में हेराफेरी और वोट चोरी के गंभीर आरोप लगाए थे, लेकिन अब उसी कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया पर उनके पुराने सहयोगी से आए चौंकाने वाले आरोपों ने सियासी हलचल तेज कर दी है. बीजेपी अब इसे राहुल गांधी का “सबसे बड़ा सेल्फ-गोल” बता रही है.
मामला 2018 के विधानसभा चुनाव में बदामी सीट से सिद्धरमैया की जीत का है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और सिद्धरमैया के दशकों पुराने करीबी सहयोगी, सी.एम. इब्राहिम ने हाल ही में खुलासा किया कि उन्होंने और वरिष्ठ कांग्रेस नेता बी.बी. चिम्मनकट्टी ने मिलकर 3,000 वोट खरीदने में मदद की थी, ताकि सिद्धरमैया सीट बचा सकें. दिलचस्प बात यह है कि उस चुनाव में उनकी जीत का अंतर महज 1,696 वोट था, जबकि NOTA के वोट 2,007 थे यानी उनकी जीत का मार्जिन NOTA से भी कम था.
इब्राहिम के मुताबिक, इन वोटों की खरीद के लिए भुगतान खुद सिद्धरमैया ने किया, लेकिन रकम चुकाने में उन्हें छह महीने का समय लगा. इस खुलासे ने बीजेपी को बड़ा मौका दे दिया है. बीजेपी सांसद लहर सिंह सिरोया ने एनडीटीवी से कहा है कि इब्राहिम का यह बयान बेहद गंभीर है. सिद्धरमैया पर वोट खरीदने के आरोप की निष्पक्ष और गहन जांच होनी चाहिए.
बीजेपी का आरोप है कि यह सिर्फ 2018 का मामला नहीं है. सिरोया ने 2006 के चामुंडेश्वरी उपचुनाव पर भी सवाल उठाए, जिसमें कांग्रेस जॉइन करने के बाद सिद्धरमैया ने महज 257 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी. सिरोया का कहना है कि तब भी कांग्रेस केंद्र में सत्ता में थी, और यह पता लगाया जाना चाहिए कि क्या तब भी वोट खरीदे गए थे और किन अधिकारियों ने चुनाव करवाया था.
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