In-Depth: भारत को ग्लोबल पावर बनना है तो चोल साम्राज्य से सीख सकता है ये 4 चीजें

आज भारत एक ग्लोबल पावर बनना चाहता है, न सिर्फ सैन्य ताकत बल्कि आर्थिक ताकत का भी. भारत एक बार फिर दक्षिण एशिया के समंदरों का शेर बनना चाहता है, जहां कभी राजेंद्र चोल की यहां धाक थी. भारत के इस मिशन में चोल साम्राज्य से कई चीजें सीखी जा सकती है.

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तमिलनाडु के दौरे पर गए पीएम मोदी ने चोल साम्राज्य को प्रेरक बताया.

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  • प्रधानमंत्री मोदी ने तमिलनाडु दौरे पर चोल साम्राज्य को विकसित भारत के लिए एक प्रेरणादायक रोडमैप बताया.
  • चोलों की मजबूत नौसेना ने श्रीलंका, इंडोनेशिया और मलेशिया तक सैन्य अभियान चलाकर क्षेत्रीय प्रभुत्व बनाया.
  • चोल साम्राज्य का व्यापार अरब, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों तक व्यापक रूप से फैला हुआ था.
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PM Modi Tamil nadu Visit: "भारत को अगर विकसित भारत बनना है तो हमारे सामने प्राचीन चोल साम्राज्य का इतिहास एक रोडमैप की तरह है." उक्त बातें तमिलनाडु के दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही. पीएम मोदी ने कहा कि चोल काल में भारत ने जो आर्थिक और सैन्य ऊंचाइयां हासिल कीं, वे आज भी हमें प्रेरित और गौरवान्वित करती हैं. उन्होंने प्राचीन भारत के राजाओं की दूरदर्शिता के बारे में कहा कि राजराजा चोल ने एक शक्तिशाली नौसेना का निर्माण किया, जिसे राजेंद्र चोल ने और मजबूत किया. चोल साम्राज्य इस बात का उदाहरण है कि अगर हमें विकसित भारत बनना है तो सामाजिक ताना-बाना, न्याय प्रणाली,सेना, नौसेना, विदेशी व्यापार, कला, साहित्य और शिल्प की विरासत को और ज्यादा मजबूत करते हुए नए अवसरों की तलाश करनी होगी...

पीएम मोदी का यह बयान चोल साम्राज्य की मजबूत नींव की याद दिलाता है. इस रिपोर्ट में हम ये समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर वो कौन सी महत्वपूर्ण बाते हैं, जो आधुनिक भारत इस प्राचीन भारतीय साम्राज्य से सीख कर ग्लोवल पावर बन सकता है.


1. मजबूत सुरक्षा, मजबूत सेना

कहा जाता है कि चोल सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला भारतीय साम्राज्य था, जो तीसरी सदी से तेरहवीं शताब्दी तक अपने राज को बुलंद रखने में कामयाब रहा था, हालांकि बीच में ये साम्राज्य थोड़ा कमजोर भी हुआ, उतार-चढ़ाव से भी गुजरा, लेकिन राजराजा और राजेंद्र चोल के जमाने में एक बार फिर से अपने गोल्डन एज में चला गया....कहा जाता है कि ये दक्षिण एशिया के समुद्रों के शेर थे, इनकी नौसेना इतनी मजबूत थी कि समुद्र लांघकर पूरे श्रीलंका पर कब्जा कर लिया.

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इतना ही नहीं करीब ढाई हजार किलोमीटर की समुद्री दूरी तय कर के इंडोनेशिया और मलेशिया को हराया. साथ ही अपनी प्रशिक्षित और संगठित सेना के माध्यम से बंगाल और गंगा क्षेत्रों में सैन्य अभियान चलाए.

उदाहरण के लिए, राजेंद्र चोल 1019-1022 ई. में पाला और अन्य स्थानीय शासकों के खिलाफ अभियान चलाकर गंगा नदी तक पहुंचे. एक दिलचस्प पहलू ये भी है कि जामुन, कटहल की लकड़ियों और रस्सियों से इन्होंने ऐसे पानी के जहाज बनाए जिनपर बड़ी सेना और हाथी तक जाते थे. जाहिर है ऐसे जहाजी बेड़ों के कारण ही इन्होंने दूर देशों को जीता.

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2. व्यापार का दायरा, अरब, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया तक पहुंचाया

चोल साम्राज्य को आप प्राचीन भारत के ग्लोबल ट्रेडर्स कह सकते हैं. राजेंद्र ने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए बंदरगाहों का विकास किया. जिसके बाद चोलों का व्यापार अरब, चीन, और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ खूब फला-फूला.

नागपट्टिनम और कावेरीपट्टिनम जैसे बंदरगाह चोल साम्राज्य के व्यापार का प्रमुख केंद्र थे. राजेंद्र की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि थी- श्रीविजय साम्राज्य यानी. आज के आधुनिक इंडोनेशिया और मलेशिया पर नौसैनिक अभियान चलाने का. यह अभियान 1025 ई. में हुआ और चोल नौसेना ने श्रीविजय की राजधानी कदरम पर कब्जा कर लिया. इस अभियान का उद्देश्य समुद्री व्यापार मार्गों पर नियंत्रण स्थापित करना था.

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3. लोकतांत्रिक मूल्यों का संरक्षण

ये वो राजा थे जो जिनको महान सिर्फ इसलिए नहीं कहना चाहिए कि उन्होंने जमीनें जीतीं. उस जमाने में उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों का भी पालन किया. राजराजा ने एक केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था बनाई, जिसमें गांवों को स्वायत्तता दी गई, उन्होंने भूमि सर्वेक्षण करवाए और कर संग्रह को भी व्यवस्थित किया. राजा सर्वोच्च शासक था, लेकिन स्थानीय स्तर पर गांवों को स्वायत्तता दी गई थी.

गांवों में ग्राम सभाएं प्रशासनिक और सामाजिक मामलों का प्रबंधन किया करती थीं. गांव स्तर पर पंचायतें और मंदिर समितियाँ न्याय देती थीं. चोल शिलालेखों में कई न्यायिक निर्णयों का उल्लेख भी मिलता है. चोलों से हमें ये सीख भी मिलती है कि अगर वतन में शांति चाहिए तो धार्मिक सहिष्णुता भी जरूरी है. चोल शासक मुख्य रूप से शैव थे, लेकिन उन्होंने वैष्णव, जैन, और बौद्ध धर्मों को भी संरक्षण दिया. उनके मंदिरों में सभी समुदायों के लिए जगह थी.

4. कला और साहित्य का विकास

चोलों के राज में कला और साहित्य की बड़ी तरक्की हुई. उनके बनाए मंदिर आज भी मिसाल हैं. बृहदीश्वर मंदिर, गंगैकोंडचोलपुरम मंदिर, और दरासुरम का ऐरावतेश्वर मंदिर द्रविड़ वास्तुकला के शानदार उदाहरण हैं. राजराज ने तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर बनवाया, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है.

चोल मंदिरों की मूर्तियाँ और भित्तिचित्र नायाब हैं. नटराज की मूर्ति देखी ही होगी, नटराज की कांस्य मूर्तियों को चोलों ने ही विश्व प्रसिद्ध बनाया.

आज देश में भाषा को लेकर जो विवाद होता रहता है. चोल काल में तमिल साहित्य और संस्कृत दोनों का विकास एक साथ हुआ. कंबन द्वारा रचित कंब रामायणम और तिरुक्कुरल जैसे ग्रंथों को संरक्षण मिला.

शिलालेखों में भी तमिल और संस्कृत का प्रयोग हुआ. सैन्य ताकत की तरह सॉफ्ट पावर की भी अपनी अहमियत है, आज कंबोडिया, इंडोनेशिया जैसे दक्षिण एशियाई देशों में भारतीय संस्कृति -धर्म की छाप दिखती है तो ये काफी हद तक चोलों की ही देन है. आज भी इस सॉफ्ट पावर का फायदा इस क्षेत्र में भारत को मिल रहा है.

आज भारत एक ग्लोबल पावर बनना चाहता है, न सिर्फ सैन्य ताकत बल्कि आर्थिक ताकत का भी. भारत एक बार फिर दक्षिण एशिया के समंदरों का शेर बनना चाहता है, कभी राजेंद्र चोल की यहां धाक थी. ऐसे में चोलों की ये भुला दी गई कहानी हमारे लिए एक प्रेरणा है. ये वो बुनियाद है जिसपर हम भविष्य की भव्य इमारत बना सकते हैं. भारत के लोगों को महान चोलों को भुलाना नहीं बल्कि उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए.

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