चिंतन रिसर्च फाउंडेशन (सीआरएफ) के पहले स्थापना दिवस पर उसके प्रेसिडेंट शिशिर प्रियदर्शी ने एक साल की उपलब्धियों के बारे में बताया कि फाउंडेशन ने जितना सोचा था उससे कहीं अधिक हासिल किया है. एक साल में 50 ओपेड और 150 आर्टिकल प्रकाशित किए हैं और सात-आठ बड़े इवेंट कर चुके हैं. यह काफी संतोषजनक और मेहनत भरी यात्रा रही है. हमने प्रयास किया है कि हम बौद्धिक रूप से ईमानदार रहें. हो सकता है हम जो लिखें वह सबसे उचित न हो, उसमें कुछ लोगों के और विचार हों, लेकिन अपने लिए काफी ईमानदार और एडिटोरियल के स्तर पर आत्मनिर्भर रहना चाहते हैं.
शिशिर प्रियदर्शी ने एनडीटीवी से खास बातचीत में बताया कि सीआरएफ का मोटो है कि चिंतन एक्शन तक जाए, ऐसा एक्शन जो बदलाव लाए. उन्होंने कहा कि परिवर्तन भी ऐसा होना चाहिए जो आम लोगों पर केंद्रित प्रगति का आधार बने. गांव के आखिरी व्यक्ति तक लाभ न पहुंचा पाएं, तो उचित नहीं होगा.
शिशिर प्रियदर्शी ने कहा, "चिंतन रिसर्च फाउंडेशन में, हमने पहले दिन से ही एक बात को आत्मसात करने की कोशिश की और वह यह है कि सबसे चुनौतीपूर्ण विचार सबसे पुरस्कृत मंजिलों की ओर ले जाएंगे. हम देखना चाहते हैं कि भारत जैसे देश अपनी विकास संबंधी आकांक्षाओं से समझौता किए बिना शून्य शुद्ध उत्सर्जन लक्ष्य कैसे प्राप्त कर सकते हैं. जैसे-जैसे भारत '2047 तक विकसित भारत' के अपने दृष्टिकोण की ओर लगातार आगे बढ़ रहा है, इकोनॉमिक गवर्नेंस की फिर से कल्पना करने की आवश्यकता है जो आत्मनिर्भरता और समावेशी समृद्धि का समर्थन करता है. बदलती विश्व व्यवस्था, जो न केवल संघर्षों से बल्कि ग्लोबल साउथ के उद्भव से भी चिह्नित है. यह कुछ ऐसा है जिसे हम चिंतन रिसर्च फाउंडेशन के काम के माध्यम से पेश करना चाहते हैं. हम कठोर सत्य का सामना करने से पीछे नहीं हटेंगे और एक बार जब हम उनका सामना कर लेंगे, तो हम सबसे अच्छे संभव समाधान खोजने की कोशिश करेंगे."