नक्सल प्रभावित इलाके में रील और रियल वोटिंग में क्या आया फर्क? Newton के कलाकारों ने बताया

फिल्म Newton में राजकुमार राव को छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में चुनावी ड्यूटी के लिए भेजा जाता है. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ के एक ऐसे दुर्गम इलाके में उन्हें चुनाव करवाना है, जहां पहुंचना काफी मुश्किल है. यहां सिर्फ 76 मतदाता हैं.

Advertisement
Read Time: 4 mins
रायपुर:

साल 2017 में एक फिल्म आई थी 'न्यूटन' (Newton). इसमें राजकुमार राव (Rajkumar Rao) लीड रोल में थे. फिल्म का एक डॉयलॉग था, जो बहुत मशहूर हुआ था. ये डायलॉग था... "जबतक कुछ नहीं बदलोगे ना दोस्त, कुछ नहीं बदलेगा." ये फिल्म छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में सालों बाद चुनाव करवाने के विषय पर बनाई गई थी. इसमें राजकुमार राव के अलावा पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi), संजय मिश्रा (Sanjay Mishra) और अंजलि पाटिल ने भूमिका निभाई थी.

फिल्म में राजकुमार राव को छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में चुनावी ड्यूटी के लिए भेजा जाता है. सुरक्षा बलों के अजीब से रवैये और नक्सलियों के डर के बीच वो चुनाव करवाने की कोशिश करते हैं. अबूझमाड़ के एक ऐसे दुर्गम इलाके में उन्हें चुनाव करवाना है, जहां पहुंचना काफी मुश्किल है. यहां सिर्फ 76 मतदाता हैं. इस फिल्म का बस्तर के कोंडागांव जिले से गहरा नाता है. फिल्म के कई कलाकार कोंडागांव ज़िले के कोंगरा गांव के रहने वाले हैं. NDTV ने ऐसे ही दो कलाकारों जूनो नेताम और सुखधर से खास बातचीत की. इन कलाकारों ने बताया कि नक्सल प्रभावित इलाके में रील और रियल वोटिंग में क्या फर्क आया है. 

कोंडागांव से नारायणपुर के रास्ते में लगभग 20 किलोमीटर के बाद रास्ता बाएं तरफ मुड़ता है. यहां से कच्चा रास्ता शुरू हो जाता है. कच्चे रास्ते पर चलते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांव की हालत बेहद खराब होगी. लेकिन फिर 'न्यूटन' फिल्म का एक डायलॉग याद आता है, "बड़े बदलाव एक दिन में नहीं आते, बरसों लग जाते हैं जंगल बनने में." जूनो नेताम के परिवार ने बताया कि इस गांव में एक साल पहले नल का कनेक्शन आया. चार-पांच साल पहले स्कूल और अस्पताल भी बन चुके हैं. 

सुखधर से फिल्म 'न्यूटन' में उनके किरदार के बारे में पूछा गया. सुखधर एक वोटर के किरदार में थे. उन्होंने बताया कि उन्हें कहना था- 'अगर वोट दोगे तो हाथ काट देंगे.' फिल्म के लिए गांव में 14 दिनों तक शूटिंग हुई. इसके लिए उन्हें 1400 रुपये मिले. उन्होंने ये भी बताया कि शूटिंग के बाद फिल्म की टीम फिर कभी गांव नहीं आई.

Advertisement

जूनो नेताम ने तीन साल पहले बेटे के शादी करवाई है. उनकी बहू ने बताया कि उन्हें पहले पता नहीं था कि उनके परिजनों ने फिल्म में काम किया है. उनके पति ने उन्हें बताया, जिसके बाद उन्होंने 'न्यूटन' फिल्म देखी. जूनो नेताम से पता लगा कि पहले गांव में स्कूल बिल्डिंग नहीं थी. पानी की व्यवस्था नहीं थी. चार-पांच सालों में ये सब काम हुआ है.

Advertisement
गांव में अभी तक केंद्र सरकार की योजनाएं नहीं पहुंची हैं. जूनो नेताम की बहू सुखवती नेताम रसोई में चूल्हे में खाना बना रही थीं. उन्हें उज्जवला योजना का लाभ नहीं मिला है. महतारी वंदन योजना के 1000 रुपये भी परिवार के पास नहीं पहुंचे हैं.  


   
यहां के लोग बहुत सीधे और साफ दिल के हैं. जब हमने पूछा कि फिल्म की शूटिंग कहां हुई, तो जूनो और सुखधर ने कहा कि वो दिल्ली गए थे. उनके लिए गांव से बाहर निकलना ही दिल्ली है. जबकि फिल्म की शूटिंग दल्ली राजहरा में हुई थी, जो कोंडागांव से 170 किलोमीटर दूर है.
     
गांव के मानकर नेताम कहते हैं, "मैंने नक्सलियों के बारे में सुना है, लेकिन कभी देखा नहीं." ये इलाका माड़ डिविजन के तहत आता था. नक्सली यहां से मूवमेंट करते थे. अबूझमाड़ में शूट हुए फिल्म के एक हिस्से में एक पुलिस अफसर न्यूटन को अपनी बंदूक देकर कहते हैं, "ये देश का भार है, जिसे जवान अपने कंधे पर उठाते हैं." लोकतंत्र के इस पर्व में ये भार पूरा देश उठता है.
 

Advertisement
Featured Video Of The Day
UNGA में S Jaishankar की Pakistan को खरी-खरी-'आतंक का परिणाम विनाशकारी होता है'