2011 में एक कथित फर्जी मुठभेड़ में एक आदिवासी लड़की की मौत के आरोप में दो पुलिसकर्मियों को छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की एक अदालत ने "काफी संदेह" के बावजूद बरी कर दिया क्योंकि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ मजबूत सबूत पेश करने में विफल रहा. दो पुलिसकर्मियों के बरी होने पर मृतक लड़की का परिवार सदमे में है और दुख के साथ कहा कि उनके पास हाईकोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए साधन नहीं हैं.
रायपुर की सत्र न्यायाधीश शोभना कोष्टा ने दो पुलिसकर्मियों- धर्मदत्त धनिया और जीवन लाल रत्नाकर को बरी करते हुए कहा, "आरोपी द्वारा अपराध किए जाने का पर्याप्त संदेह होने के बावजूद,
अदालत आरोपियों को पूरी तरह से अनुचित जांच और सबूत की कमी के कारण दोषी नहीं ठहरा सकती है, जो आरोपी को सजा दिलाने के लिए जरूरी था."
धर्मदत्त धनिया वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) में तैनात हैं और जीवन लाल रत्नाकर छत्तीसगढ़ सशस्त्र पुलिस में कांस्टेबल के रूप में कार्यरत हैं.
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16 वर्षीय मीना खलखो 5 जुलाई, 2011 को बलरामपुर जिले के चंदो गांव के पास बलरामपुर में जिला पुलिस और छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल की एक संयुक्त टीम द्वारा एक मुठभेड़ में मार दी गई थी. तब पुलिस ने दावा किया था कि वह एक माओवादी थी, जबकि ग्रामीणों ने कहा था कि पुलिस ने युवती का सामूहिक दुष्कर्म करने के बाद हत्या कर दी थी.
उसके पोस्टमॉर्टम में उसके गुप्तांगों पर चोट, उसके कपड़ों पर वीर्य की मौजूदगी और कई बार यौन संबंध बनाए जाने की पुष्टि हुई थी. काफी हल्ला-हंगामे के बाद, घटना की जांच के लिए जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक न्यायिक आयोग का गठन किया गया था.
2015 में अपनी रिपोर्ट में, न्यायमूर्ति अनीता झा ने पुष्टि की कि पुलिस की गोली से मीना की मौत हुई थी, लेकिन पुलिस के मुठभेड़ के दावों और नाबालिग लड़की के नक्सली होने के तथ्य पर भी गंभीर सवाल उठाए. राज्य विधानसभा में पेश की गई 45 पन्नों की रिपोर्ट ने पुलिस के उस दावे को खारिज कर दिया कि लड़की एक माओवादी थी और कहा कि उसे "पुलिस की गोली से मारा गया" था और उसके शरीर पर चोटों ने "उसके साथ जबरन यौन सबंध" की बात की पुष्टि की.
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आयोग ने सिफारिश की कि सरकार एक और जांच का आदेश दे, जिसके बाद अपराध जांच विभाग (CID) ने मामले में आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 34 (सामान्य इरादे) के तहत एक नया मामला दर्ज किया. बाद में धर्मदत्त धनिया, जीवन लाल रत्नाकर और चंदो थाना प्रभारी निकोडिन खेस (जिनकी सुनवाई के दौरान मौत हो गई) सहित 3 पुलिस कर्मियों पर आईपीसी 302 के तहत मामला दर्ज किया गया था.
आदिवासी लड़की के परिवार का कहना है कि वे कानूनी लड़ाई से थक चुके हैं. मीना की मां गुटियारी खलखो ने एनडीटीवी को बताया, "पुलिसकर्मियों ने बलात्कार के बाद उसकी गोली मारकर हत्या कर दी, लेकिन हम उसे केवल याद कर सकते हैं, हम और क्या कर सकते हैं."
मीना की भाभी कलवंती खलखो ने कहा, "उस दिन वह अपनी सहेली के घर गई थी, हमने सोचा कि अंधेरा है, इसलिए वह अपने दोस्तों के घर पर रुकी होगी लेकिन अगले दिन हमें पता चला कि उसकी हत्या कर दी गई है. उन्होंने बलात्कार किया और मार डाला और बाद में उसे माओवादी करार दिया. उन्हें दंडित किया जाना चाहिए था, लेकिन अब हमारे पास मामले को आगे बढ़ाने के साधन नहीं हैं."