मोहन लाल मिश्र कैसे बन गए पंडित छन्नू लाल मिश्र जानिए नाम की क्या थी पूरी कहानी

मोहन लाल मिश्र कैसे बने पंडित छन्नू लाल मिश्र, इसकी कहानी सिर्फ नाम बदलने की नहीं बल्कि परंपरा और मान्यता से भी जुड़ी है. आज़मगढ़ से लेकर बनारस और फिर दुनिया भर में ‘छन्नू’ नाम ने ही उन्हें अमर बना दिया.

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  • पंडित छन्नू लाल मिश्र का असली नाम मोहन लाल मिश्र था और उनका जन्म 1936 में आज़मगढ़ के हरिहरपुर गांव में हुआ था
  • बचपन में उन्हें 'छन्नू' नाम दिया गया था जो बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिए पारंपरिक नाम था
  • बनारस की गंगा-जमुनी संस्कृति ने उनकी गायकी को विशेष मुकाम दिया और वे ठेठ बनारसी अंदाज के प्रमुख गायक थे
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नई दिल्ली:

पंडित छन्नू लाल मिश्र का गुरुवार की सुबह मिर्जापुर में निधन हो गया. उनके निधन से भारतीय शास्त्रीय संगीत को बड़ी क्षति हुई. भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में जब भी गंगा-जमुनी तहज़ीब और ठेठ बनारसी अंदाज़ की चर्चा होती है, तो पंडित छन्नू लाल मिश्र का नाम सबसे पहले लिया जाता है.  लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस सुरों के साधक का असली नाम मोहन लाल मिश्र था?

नाम बदलने की यह अनोखी कहानी उतनी ही दिलचस्प है जितनी उनकी गायकी. आज़मगढ़ के हरिहरपुर गांव में 1936 में जन्मे मोहन लाल मिश्र को बचपन में घरवालों ने ‘छन्नू' नाम से पुकारना शुरू किया. उस दौर में बच्चों की लंबी उम्र और उन्हें बुरी नज़र से बचाने के लिए ऐसे नाम रखे जाते थे. जैसे घोरू, पतवारू, या फिर छन्नू. इस नाम का आध्यात्मिक अर्थ भी जुड़ा है. जो शरीर के छह विकारों से मुक्त हो, वही कहलाता है छन्नू.  धीरे-धीरे यही नाम उनकी पहचान बन गया और मोहन लाल मिश्र से पूरी दुनिया ने उन्हें पंडित छन्नू लाल मिश्र के रूप में पहचाना. 

मोहन लाल नाम पीछे रह गया और छन्नू के नाम से हो गए विख्यात

बचपन के नाम अक्सर परिवार की परंपरा और सामाजिक मान्यताओं से जुड़ते हैं. पंडित मिश्र के मामले में भी यही हुई. उनके पिता ने उन्हें मोहन लाल नाम दिया था, लेकिन दादी और घर की औरतों ने प्यार से उन्हें ‘छन्नू' बुलाना शुरू कर दिया. ग्रामीण समाज में यह मान्यता थी कि अगर बच्चे का नाम बहुत अनोखा या मजाकिया होगा तो उस पर किसी की बुरी नज़र नहीं लगेगी. यही वजह रही कि मोहन लाल नाम कहीं पीछे छूट गया और छन्नू नाम आगे बढ़ता चला गया. 

बनारस की मिट्टी से मिली पहचान

छन्नू लाल मिश्र का बचपन आज़मगढ़ के हरिहरपुर गांव में बीता, लेकिन उनकी पहचान बनारस से जुड़ी. हरिहरपुर गांव वैसे भी अपने संगीतकारों और परंपरा के लिए प्रसिद्ध रहा है.  यहां की गलियों में ही मोहन लाल यानी छन्नू लाल ने सुर-साधना की नींव रखी.  बाद में बनारस की गंगा-जमुनी संस्कृति ने उनकी गायकी को एक मुकाम दिया. 

पीएम मोदी के लोकसभा चुनाव में प्रस्तावक रह चुके थे पंडित छन्नूलाल

बता दें कि पंडित छन्नूलाल का पीएम मोदी से खास कनेक्शन था.वह चुनाव के लिए पीएम मोदी रे प्रस्तावक रह चुके हैं.साल 2014 लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने जब वाराणसी से चुनाव लड़ा तो छन्नूलाल मिश्र उनके प्रस्तावक बने थे. पंडित छन्नूलाल को साल 2010 में यूपीए सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया था. वहीं यूपी की अखिलेश सरकार ने उनको यश भारती सम्मान के नवाजा था.

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