अगले साल क्या रहेंगी दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की चुनौतियां, टैरिफ वॉर का क्या होगा

भारत जापान को पछाड़ कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. दुनिया की बड़ी आर्थिक संस्थाओं ने भारत की जीडीपी की चमकीली तस्वीर दिखाई है, ऐसे में आइए जानते हैं कि आने वाले साल में भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियां क्या होंगी.

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नई दिल्ली:

सरकार ने मंगलवार को बताया कि भारत 4,180 अरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. सरकार ने उम्मीद जताई है कि 2030 तक भारत जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. मजबूत आंकड़ों के साथ भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था भी बना हुआ है.केवल सरकार ने ही नहीं बल्कि कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी भारत की अर्थव्यवस्था की चमकीली तस्वीर पेश की है. इन संस्थाओं ने भारत के विकास के अनुमान में सुधार करते हुए उसे और बढ़ा दिया है. इन संस्थाओं ने भारत की जीडीपी की विकास दर करीब सात फीसदी रहने का अनुमान लगाया है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आने वाले साल में भारत की अर्थव्यवस्था की चुनौतियां क्या हैं और सरकार से उम्मीदें क्या हैं. 

कैसी रही जीडीपी की विकास दर

वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में भारत की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि 8.2 फीसदी रही. यह आंकड़ा चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 7.8 फीसदी और पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में 7.4 फीसदी थी. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा है कि कई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक चुनौतियां होने के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ रही है. उन्होंने कहा है कि आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से विकास करने को तैयार है.

सरकार की ओर से जारी बयान के मुताबिक,''भारत ने 4,180 अरब अमेरिकी डॉलर के मूल्यांकन के साथ जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल कर लिया है. अनुमान है कि 2030 तक 7,300 अरब अमेरिकी डॉलर की जीडीपी के साथ जर्मनी को तीसरे स्थान से हटाने की स्थिति में है.'' अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. वहीं दूसरे नंबर पर पड़ोसी चीन काबिज है. 

अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का अनुमान क्या है

ऐसे में भारत को आने वाले सालों में अपनी जीडीपी बढ़ोतरी की रफ्तार को बनाए रखना बड़ी चुनौती होगी. विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत की जीडीपी बढ़ोतरी 2026 में 6.5 फीसदी हो सकती है. वहीं मूडीज का अनुमान है कि भारत 2026 में यह 6.4 फीसदी और 2027 में 6.5 फीसदी रहेगा. मूडजी का अनुमान है कि भारत जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा. वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने भारत के विकास को लेकर अपने अनुमान में सुधार किया है. आईएमएफ के मुताबिक 2025 में 6.6 फीसदी और 2026 के लिए 6.2 फीसदी रहने का अनुमान है.वहीं एशियन डेवलपमेंट बैंक  ने वित्त वर्ष 2025–26 के लिए जीडीपी की विकास दर 7.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है.पहले यह अनुमान 6.5 फीसदी का था. एडीबी ने आयकर और जीएसटी में सुधारों और खपत में हुई बढ़ोतरी को इसका आधार बनाया है. 

यह तो हुई भारत की अर्थव्यवस्था के चमकीले पहलू की बात. आइए अब देखते हैं कि नए साल में भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौतियां हैं, जीडीपी की विकास दर को बेहतर स्थिति में बनाए रखने के लिए इन चुनौतियों से पार पाना होगा. 

अमेरिका से टैरिफ वॉर और व्यापार

अमेरिका की व्यापार नीति एशिया-प्रशांत क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को लगातार प्रभावित कर रही है. अमेरिका में निर्यात पर बढ़े टैरिफ की वजह से व्यापार पर दबाव बढ़ा है. इसलिए कंपनियां दूसरे बाजारों की ओर रुख कर रही हैं. इससे कंपटीशन बढ़ रहा है. एशिया में भारत पर अमेरिकी टैरिफ सबसे अधिक है. इससे भारत का निर्यात प्रभावित हो रहा है. इससे निर्यात आधारित उद्योगों की रफ्तार धीमी पड़ रही है. भारत-अमेरिका व्यापार समझौता होने की स्थिति में अनिश्चितता कम होगी और भरोसा बढ़ेगा. इसका असर कपड़ा,रत्न-आभूषण और समुद्री खाद्य जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों को फायदा होगा, जो अमेरिका को भारत के कुल निर्यात का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है. अमेरिका के साथ जारी टैरिव वॉर से निपटना भारत के लिए बड़ी चुनौती होगी.

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भारत के विकास की ताकत

तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थान वित्त वर्ष 2026 और 2027 में जीडीपी वृद्धि करीब सात प्रतिशत रहने की उम्मीद जता रहे हैं. एशिया में केवल वियतनाम ही इस रफ्तार के करीब हो सकता है. मजबूत घरेलू मांग, खपत और निवेश इस बढ़ोतरी का मुख्य आधार होगा. जीएसटी में हुआ व्यापक सुधार, आयकर में राहत और ब्याज दरों में कटौती से मध्यम वर्ग को फायदा हुआ है, इससे महंगाई के काबू में रहने का अनुमान है. ऐसे में अगले साल निवेश से अधिक खपत होने की उम्मीद जताई जा रही है. हालांकि निवेश बना रहेगा, लेकिन उसका स्वरूप बदल सकता है. लंबे समय तक तेज विकास बनाए रखने के लिए सुधारों को जारी रखना होगा. शहरी बुनियादी ढांचे पर जोर देने से उत्पादकता बढ़ेगी. 

महंगाई और मौद्रिक नीति 

आने वाले साल में भारत में महंगाई का दबाव कम हो सकता है. कम खाद्य और तेल कीमतों और जीएसटी में सुधार के कारण इस वित्त वर्ष के लिए कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स ( सीपीआई) अनुमान घटाकर 2.5 फीसदी किया गया है. हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य महंगाई में उतार-चढ़ाव का जोखिम रहेगा. अत्यधिक बारिश जैसे मौसमी घटनाक्रम से कभी-कभी महंगाई बढ़ सकती हैं.

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भारत के रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति 2025 के मुताबिक 2026 में महंगाई कुछ कम होने की संभावना है.लोगों की आय बढ़ रही है, रोजगार के बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं. वहीं आरबीआई ने जो दरें घटाई हैं, उससे लोगों को ईएमआई पर राहत मिल रही है. इसे देखते हुए अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था का इंजन 2026 में घरेलू मांग ही बनेगा.

बजट से उम्मीदें

आर्थिक विश्लेषकों ने उम्मीद जताई है कि फरवरी में पेश होने वाले केंद्रीय बजट में और अधिक आर्थिक सुधारों की घोषणा हो सकती है. विश्लेषकों को उम्मीद है कि सरकार व्यापार को आसान बनाने और विभिन्न क्षेत्रों में नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने की दिशा में कदम उठाएगी. नए श्रम कानूनों, जीएसटी में सुधार और आयकर कानून में संशोधन की दिशा में कदम उठाकर सरकार ने इस दिशा में कदम पहले ही उठा दिए थे. 

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