केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट में दिये हलफनामें में कहा कि ये कानून संविधान सम्मत है, क्योंकि इसके प्रावधान विशेष देशों के विशेष समुदायों को राहत देने से जुड़े हैं. ये कानून कुछ खास पड़ोसी देशों के वर्गीकृत समुदायों पर किए जा रहे उत्पीड़न से जुड़ा है, जिस पर 75 साल तक किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया था.सरकारें आईं और गईं लेकिन किसी सरकार ने न तो इस समस्या की ओर गंभीरता से ध्यान दिया और न ही इसके लिए कानूनी उपाय किये.
ये कानून किसी भी भारतीय नागरिक के कानूनी और संवैधानिक अधिकारों पर किसी भी तरह से बुरा असर नहीं डालता है. ये कानून तो तीन पड़ोसी देशों से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में शरणार्थी बनकर आए वहां के धार्मिक अल्पसंख्यक लोगों को यहां भारतीय नागरिकता देना सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है. इससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 का भी किसी नजरिए से उल्लंघन नहीं होता है.
वैसे भी नागरिकता के मानदंड तय करना संसद के अधिकार क्षेत्र में ही आता है. अदालतों को विशेषज्ञ की तरह इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसमें सरकार की विदेश नीति का भी दखल रहता है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होनी है.
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